उपेक्षित लोगों को राजनीति में हिस्सेदारी देने की मुहिम

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हिमांशु शेखर.रांची.आजादी के 71 वर्ष बीत गये, देश की एक बड़ी आबादी राजनीति की चौखट पर आजतक दस्तक भी नहीं दे सकी है। वास्तव में हाशिये के इन लोगों को राजनीति में हिस्सेदारी मिलनी चाहिए थी। जो काम राजनीतिक दलों और अन्य संगठनों को करना चाहिए था, वह काम दो छात्र कर रहे है।लोकसभा और राज्य की विधानसभाओं के सदस्य किसी भी राजनीतिक पार्टियों का भाग्य बदल सकते हैं, लेकिन देश की आबादी का एक बड़ा तबका अपना भाग्य नहीं बदल पाया है।

देश-समाज में अब तलक हाशिए पर रहे लोगों की राजनीति में भागीदारी हो, इस मकसद से रांची के दो लॉ ग्रेजुएट युवा योगेंद्र यादव और कुणाल पटेल ऑल इंडिया साइकिल टूर पर निकले हैं। दोनों ने अपनी यात्रा की शुरुआत 21 मार्च को रांची से की।लालपुर स्थित पटेल भवन में सुबह साढ़े सात बजे एक समारोह में दर्जनों लोगों और नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी रांची के छात्रों ने उन्हें शुभकामनाओं के साथ यात्रा के लिए रवाना किया।

यात्रा के पहले चरण में रामगढ़, हजारीबाग, चतरा, गया, वाराणसी, कानपुर होते हुए नई दिल्ली और उसके बाद वहां से मुंबई, बेंगलुरू होते हुए कन्याकुमारी तक जाएंगे। इस दौरान तकरीबन 800 से भी अधिक शहरों-कस्बों और दस हजार से भी अधिक गांवों से गुजरते हुए दोनों युवा जगह-जगह लोगों से मिलेंगे और राजनीति में हाशिए के लोगों की हिस्सेदारी तय करने पर विमर्श करेंगे।

बीपीएल परिवार से आनेवाले योगेंद्र यादव और रांची के एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखनेवाले जवाहर लाल पटेल के पुत्र कुणाल पटेल ने अखिल भारतीय स्तर पर होनेवाली क्लैट की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद नेशनल लॉ यूनवर्सिटी रांची से लॉ के पांचवर्षीय पाठ्यक्रम की पढ़ाई की है। अब योगेंद्र ने झारखंड हाईकोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस और कुणाल ने मशहूर लॉ फर्म हम्मूराबी एंड सोलोमन की नौकरी छोड़कर राजनीति में समाज के दबे, कुचले, गरीब और सामान्य लोगों के हिस्से की जमीन तलाशने की मुहिम शुरू की है।

पितीज के ही रहनेवाले योगेंद्र के पिता दिहाड़ी मजदूरी करते हैं और मां जमीन के छोटे से टुकड़े में खेती करती हैं। योगेंद्र कहते हैं कि बेहद संघर्ष के साथ प्रतिष्ठित संस्थान से लॉ की पढ़ाई पूरी करने के बाद जब उनके लिए एक आकर्षक करियर की राह खुल रही है, तब वंचित-शोषित लोगों की राजनीति में हिस्सेदारी की खातिर एक पथरीली राह पर निकलने का निर्णय लेने के लिए उन्हें खुद के भीतर एक बड़े मानसिक जद्दोजहद से जूझना पड़ा है।

उन्होंने कहा कि पढ़ाई और इंटर्नशिप के दौरान उन्होंने यह महसूस किया है कि चूंकि हमारी पूरी व्यवस्था मूल तौर पर राजनीति से प्रभावित और संचालित होती है, इसलिए सबसे जरूरी यही है कि राजनीति में सबके लिए एक वाजिब जगह बने। बाहुबल और धनबल से प्रभावित इस व्यवस्था में बदलाव की सोच बेशक आसान नहीं है, लेकिन इसके लिए कहीं न कहीं एक छोटी शुरुआत तो करनी ही होगी। संभव है कि देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीके से ऐसी कोशिशें चल भी रही हों, तो इन्हीं कोशिशों के बीच हमारी ओर से भी यह एक छोटी कोशिश है।

कुणाल ने कहा कि इस यात्रा से उन्हें पूरे देश की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्थिति से अवगत होने का मौका तो मिलेगा ही, लोगों से विचारों की साझेदारी से हमारी मुहिम को बल मिलने की उम्मीद है।

 

 

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