कहीं आपका लाडला टेंपर टेंट्रम का शिकार तो नहीं

2463
0
SHARE

PSYCO SIGN 5

डा.मनोज कुमार ( काउंसलिंग साइकोलोजिस्ट)

सुमन और प्रीत के माता-पिता कई दिनों से परेशान हैं. दोनों ही बच्चों के पास महंगे खिलौनों व कपड़ों की भरमार है पर जरा सी बात पर वे अपना आपा खो बैठते हैं. मसलन स्कूल में लंच नहीं करना, रोज बस में किसी से झगड़ लेना. बात-बात में रूठना, सामानों को इधर उधर फेंक देना. जिद्दी स्वभाव की वजह से लोग उससे मिलना नहीं चाहते. यही नहीं जरा सी टोकने पर भी घर के महंगे फर्नीचर तोड़ना सुमन और प्रीत की आदत बन गई है. इनके मां-पापा को यह समझ नहीं आ रहा है कि ऐसा क्यों हो रहा है?

दरअसल आजकल के स्कूल गोइंग बच्चें अपना संयम तुरंत खो टेंपर टेंट्रम के शिकार हो जाते हैं. यह समस्या 6-12 साल के बच्चों में बड़े पैमाने पर देखा जा रहा है. किशोरवस्था की दहलीज पर कदम बढ़ाते बच्चें जरा सी बात पर बिगड़ रहे हैं तैश में आना, बात-बात पर नाक-भौं सिकोड़ना कई बार बड़ों की परेशानी तो बन जाती है लेकिन अपने अड़ियल रवैया इनके खुद के लिए भी परेशानी का सबब बन जाता है.

बच्चों की यह समस्या टेंपर-टेंट्रम है जो व्यवहारात्मक विकृति का एक रूप है. इस समस्या में बड़े हो रहे बच्चे अपने मजबूत संवेगों को सामाजिक मान्यताओं पर खड़ा उतारना चाहते हैं और जब उसमें कमी होती है तो वह पूरी तरह अपने व्यवहार को असंतुलित कर लेते हैं. कभी-कभी माता-पिता की गलत अभिवृतियां भी बच्चों को गुस्सैल बनाती हैं तो कई बार स्कूल में टीचरों से प्रताड़ित बच्चें घर में अपना गुस्सा जाहिर करते हैं.

बढ़ती पैरेंट्स वर्किंग  संस्कृति

बदलते समय में माता-पिता दोनों कामकाजी होते जा रहे हैं लिहाजा बच्चों के लिए उनका समय कम होता जा रहा है. अकेलापन और कम दोस्ती भी इस समस्या का कारण है. खेल-कूद से दूर होने से बच्चें सेलफिश हो रहे हैं. इन सब कारणों से बच्चे कुंठित और दबाव महसूस करते हैं, जिससे बाहर निकलने के लिए टेंपर-टेंट्रम की गिरफत में आ रहे हैं.

गुस्से का असर तन-मन पर

हमेशा कुढ़ते बच्चों का चेहरा तमतमाया हुआ और आंखे लाल रहने लगती हैं. शरीर में कंपन और ज्यादातर सांस फूलते रहता है. भृकुटी तनी रहने से नींद की समस्या आम हो जाती है. चीखने-चिल्लाने से बच्चे का गला बैठा रहता है. उनमें घबराहट, बेचैनी, अपच, सिरदर्द आदि की समस्याएं शुरू हो जाती हैं. कई बार हार्ट अटैक, ब्रेन हैमरेज तक हो जाता है.

अकारण ही नहीं होते टेंट्रम

मनचाहा कार्य न होना, सामाजिक धारणाओं को परखने की चाहत, दूसरे से तुलना करना, गलत तरीके से सीखा व्यवहार, असफलताएं, उदासी, अकेलापन आदि से ही बच्चें टेंट्रम का शिकार होते हैं.

संभालिए अपने लाडले को

  • बच्चों से तर्कसंगत उम्मीदें पालें.
  • उनकी क्षमता से अधिक पाने की अपेक्षा न करें.
  • बच्चों की कुंठा मिटाने का प्रयास करें.
  • बच्चा जब शांत हो या खुश हो उस समय उसकी इस समस्या पर बात करें.
  • टेंपर-टेंट्रम बच्चों को दंड या पुरस्कार न दें.
  • जब बच्चा गुस्सा में हो उस समय नुकसान पहुंचाने वाली चीजें हटा दें.
  • साइकोथेरेपी की मदद से बच्चों के व्यवहार में परिवर्तन लाएं.
  • काउंसिलिंग द्वारा बच्चें को इस समस्या से छुटकारा दिलाने में मदद कर सकते हैं.

LEAVE A REPLY