जानिए…माणिक रत्न धारण करने से पहले ये बातें

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मुकेशश्री.

ज्योतिष विद्या में सूर्य को ग्रहों का राजा माना जाता है. कुंडली में यह यश-प्रतिष्ठा,सम्मान,धन,पिता और राज्याधिकार का कारक माना जाता है.यह सिरदर्द,नेत्रविकार,ज्वर,मधुमेह,टाइफाइड,पित रोग,हैजा,हिचकी और हड्डी रोग का भी कारक माना गया है.

राष्ट्रपति,राज्यपाल,मंत्री,प्रधानमंत्री,मुख्यमंत्री,राजदूत,सांसद,विधायक, न्यायाधीश,सेक्रेट्री जैसे उच्च पद सूर्य की कृपा से ही प्राप्त होते हैं.

कुंडली में सूर्य लग्न,नवम एवं दशम भाव का स्थिर कारक माना जाता है. इसलिए जरुरी है कि सूर्य रत्न- माणिक धारण करने के पहले कुंडली को अच्छी तरह परख लें.कुंडली में अगर सूर्य नवमेश,दसमेश एवं लग्नेश हो तो माणिक या रुबी स्टार धारण किया जा सकता है.सूर्य अगर चतुर्थ या पंचम भाव का स्वामी हो तो भी सूर्य रत्न धारण किया जा सकता है.

लेकिन अगर षष्ठम या अष्ठम भाव या दूसरे भाव का स्वामी सूर्य हो तो कभी भी माणिक धारण नहीं करें.ऐसी स्थिति में नुकसान की आशंका ज्यादा होती है. सूर्य की महादशा के अनुसार भी अगर माणिक धारण करना हो तो पहले यह देख लेना चाहिए कि सूर्य कुंडली में अनुकूल स्थिति में अनुकूल भावेश के रुप में है या नहीं.

रविवार को ही सूर्योदय के समय माणिक या सूर्य के अन्य उपरत्न धारण करना चाहिए.वैसे तो इसके लिए दाहिने हाथ की अनामिका उंगली को सर्वोत्तम माना जाता है लेकिन इसे ल़ॉकेट में डालकर गले में भी डाला जा सकता है.(लेखक ज्योतिष के जानकार हैं,9097342912 पर इनसे संपर्क किया जा सकता है)

 

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