गरीब बिहार में उपेक्षित है कीमती खनिज भंडार

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मो. तसलीम उल हक.डिहरी-ओन-सोन. सन 1960 में स्थापित, एक भारतीय उपक्रम पीपीसीएल अमझोर। जो करोड़ों रूपये की विदेशी मुद्रा की बचत देती थी और इस  प्लांट के पाइराइट्स विश्व में अद्वितीय था। लेकिन,अब यह  21 वर्षों से बंद है।कारण था वित्तीय संकट,जिसका समाधान निवर्तमान सरकार नहीं कर सकी और यह खनन और उत्पादन इकाई बन्द पड़ गई।

प्रारम्भ की स्थिति – भारत सरकार का यह उपक्रम पीपीसीएल अमझोर स्थित कैमूर पहाड़ी के 125 वर्ग किलोमीटर में फैली है, और 275 मिलियन  टन आयरन पाइराइट्स का खनन करता था ।आयरन पाइराइट्स से स्वदेशी गन्धकाम्ल  का निर्माण होता था। इस इकाई में केवल पाइराइट्स का खनन कार्य ही होता था। जिसको सिंदरी उर्वरक कारखाना में भेजा जाता था। सिंदरी कारखाना बंद होने के बाद केंद्र सरकार स्वदेशी  पाइराइट्स को उपयोग में लाने एवं उर्वरक के निर्माण के लिए अमझोर में खाद और सल्फ्यूरिक एसिड का कारखाना 17 मई  1987 को शुरू किया था । तब यहां का खाद कारखाना पुरे देश में सिंगल सुपर फास्फेट का निर्माण करने वाला एक मात्र कारखाना था।

तब भारत सरकार ने स्वदेशी एस एस पी खाद कारखाना को पाइराइट्स से  एस एस पी निर्माण पर 500 रूपये प्रतिटन का अनुदान की राशि प्रावधान कर रखा था। प्रारम्भ में खाद कारखाना का  प्रतिवर्ष 2,64,000 लाख टन तथा सल्फयूरिक एसिड की क्षमता 3.5 लाख टन था। कारखाना निर्माण पर 64.87 करोड़ रूपये की लागत आयी थी। सन 1989 में उत्पादन क्षमता को पूरा करने पर केंद्र सरकार ने उत्पादन दक्षता पदक प्रदान किया था। यह कारखाना सबसे अधिक 16 प्रतिशत पी 206 मिश्रित खाद किसानों को देता था। जो अन्य  खाद कारखाना कभी नहीं दे पाया है। उपक्रम में 1150 कर्मी कार्यरत थे।

क्यों हुआ बन्द – स्वदेशी पाइराइट्स के आधार पर निर्मित कारखाना होने के कारण भारत सरकार को आयात रोकने के प्रोत्साहन के रूप में पीपीसीएल अमझोर को 1992 से 1997 के बीच 580 रूपये प्रतिटन के हिसाब से राशि दी गई थी। जिसको भारत सरकार ने 1997 में बंद कर दिया। इत्तेफाक से भारत सरकार में कृषि मंत्री नीतीश कुमार थे। ये उस समय अमझोर में मुआयना करने आये भी थे।लेकिन वे भी कोई समाधान नहीं कर पाए और इस स्वदेशी इकाई में ताला लग गया।

डिश इन्वेस्टमेंट कमीशन की रिपोर्ट को भारत सरकार ने मान्यता दे दिया। जिसमे अमझोर तथा पूरे पी पी सी एल को पूंजीपति के हाथ बेचने का अनुमोदन किया गया था। लेकिन पी पी सी एल के एग्जीक्यूटिव निदेशक का कहना था कि कारखाना में बुनियादी सुविधाओं का अभाव, जर्जर सड़क ही बाधक है। केवल सड़क मार्ग से ही कारखाने से खाद को भेजने साधन है। वित्तीय व्यवस्था में गिरावट बाहरी संस्थान से खनन कार्य में लगे ठेका मज़दूरों को उकसाये जाने एवं श्रमिक संघटन का लगातार अनुचित दबाव बढ़ने के कारण को यूनिट को बंद किया गया।

वर्ष 1999 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी, वित्त मंत्री यशवन्त सिन्हा ,रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज ,कृषि मंत्री नीतीश कुमार ,जल संसाधन मंत्री सी पी ठाकुर ,नागरिक उड्डयन मंत्री शरद यादव,श्रम मंत्री मुन्नी लाल  और उर्वरक मंत्री एस प्रभु  आदि को अलग -अलग मज़दूर संघ की ओर से ज्ञापन सौपा गया था।

अब क्या हो सकता है आगे — भारत को आज भी तात्विक गंधक का आयात करता है जबकि अमझोर में इसका अयस्क भरा पड़ा है। वहीं अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में रिफायनरी बाय प्रोडक्ट में सल्फर की मांग ज्यादा है। सल्फर का आयात आज भी भारत को करना पड़ता है। भारत चाहे तो सल्फर का खनन का काम शुरू कर आयात में कमी ला सकती है। विदेशी मुद्रा को बचा सकती है। बिहार के मुख्यमंत्री की पहल अगर हो तो सल्फर का बंद पड़ा खनन पुनः चालू हो जाये। क्योकि बिहार और केंद्र में एक ही पार्टी की सरकार है।

 

 

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