डा.मनोज कुमार.
वंदना आज स्कूल नही गयी।अभी तक सो रही है। दिन के कोई ग्यारह बजे है।कार्यालय की जाने की जल्दी में शर्मा जी लगभग चिल्लाते हुए बच्चे को कोस रहे हैं।…शालिनी अपने क्लास में इतनी तेज बात करती है कि टीचर हो रहे हैं परेशान।…नीतिन पहले की तरह एग्जाम में सफल नही हो रहा।उसके परीक्षा के परिणाम से बैंक मैनेजर पिता घबराये हुए परेशान है।
कमोबेश ऐसी परेशानी अधिकांश अभिभावकों मे देखी जा रही है।उनके बच्चे हमेशा की तरह रिजल्ट नही दे पा रहें हैं। स्कूलगोइंग स्टुडेंट में पियर प्रेशर का आतिरिक्त दबाव बच्चों के साथ उनके माता-पिता में भी देखी जा रही है।
क्या होता है यह दबाव-
यह दबाव होना किशोरवय में आम बात माना जाता रहा है।कुछेक मामलों मे यह दबाव लाभदायक साबित होता है तो कई बार बच्चे के योग्यता को यह झीण भी करता है।
आप यह समझ लीजिए की आपको चावल खाना है और आप किसी से आगे बढने के लिए चावल अधपका खा लेते है। मलाल आपको बाद में होता है कि आप स्वाद नहीं ले पाये और पेट खराब भी हो गया।
लक्षण-
इस समस्या से जुझ रहा व्यक्ति आसपास की घटनाओं से तुलना करता है।अक्सर ऐसे बच्चे माता-पिता से बहस करते है।टीचर की बातों का असर नही होता।बार बार कोचिंग व ट्यूशन की दरकार रखते है।पढाई का ग्राफ दिन ब दिन गिरता है।हौसले पस्त दिखते है।मानसिक थकावट की वजह से दूसरे पर आश्रित रहने लगते है।ऐसे बच्चे गलत लोगों की बातों मे जल्दी आते है और सही बात करने वाले पर अविश्वास करते है।अत्याधिक चिंता में डूबकर समय की बर्बादी करते है।
संभव है समाधान-
इस समस्या से बाहर आने में विधार्थी को किसी विशेषज्ञ की आवश्यकता होती है जो उनकी भावनाओं को समझ सके।माता-पिता को भी इनके साथ दोस्ताना रवैया अपनाना पङता है।आप किसी विशेषज्ञ व काउंसलर से मिल कर समाधान ढूढने में मदद ले सकते हैं।(लेखक- काउंसलिंग साइकोलाजिस्ट हैं।संपर्क –9835498113,8298929114)