जानिए…जन्म कुंडली में गजकेसरी योग का महत्व

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मुकेशश्री.

किसी कुंडली में गज केसरी योग का निर्माण तब माना जाता है, जब गुरु और चंद्र एक दूसरे से केन्द्र में अर्थात लग्न,चौथे, सातवें और दसवें भाव में अवस्थित हों .इसके प्रभाव या फल के बारे में निश्चय करने से पहले यह तय करना जरुरी है कि चन्द्रमा तथा गुरु दोनों की शुभता क्या और कितनी है.

कारण यह है कि विभिन्न कुंडलियों में बनने वाला गज केसरी योग कुंडलियों में अलग अलग स्थितियों और संयोगो के कारण अलग अलग  फल दे सकता है। मसलन किसी कुंडली में चन्द्रमा तथा गुरु दोनों ही शुभ हों और शुभस्थान और शुभ राशि में अवस्थित हों.
कर्क राशि में  गुरु और चंद्र की स्थिति सबसे बेहतर स्थिति मानी जाती है यह तब और उत्तम मानी जाती है जब कर्क राशि केन्द्र या त्रिकोण में अवस्थित हो. ऐसा गज केसरी योग उत्त्म फलदायी वाला माना जाता है.
ठीक इसके विपरित वृश्चिक या मकर राशि में बनने वाला गज केसरी योग बहुत अधिक फलदायी या प्रभावशाली नहीं होता है .इसी तरह शुभ चन्द्रमा तथा शुभ गुरु के एक ही घर में स्थित होने से बनने वाला गज केसरी योग ऐसे चन्द्रमा तथा गुरु के परस्पर सातवें घरों में स्थित होने से बनने वाले गज केसरी योग की तुलना में अधिक प्रभावशाली माना जाता है. ऐसे ही चौथे और दसवें स्थान से दृष्टि के कारण बनने वाला  गज केसरी योग अपेक्षाकृत कम प्रभावशाली माना गया है. इसी तरह योग पर  शुभ अथवा अशुभ ग्रहों की दृष्टि भी योग को प्रभावित करता है.इसके साथ साथ  अन्य शुभ अशुभ योग भी कुंडली में  स्थित गजकेशरी योग को प्रभावित करते हैं .
इस योग से इंसान का जीवन मस्त चलता रहता है ठीक वैसे ही जैसे किसी गज यानी हाथी की चाल होती है .स्वाभाव और प्रभाव केशरी यानी सिंह की तरह होता है.कुल मिला कर यह योग काफी शुभ माना गया है.खास कर उस भाव को मजबूती देता है जिस भाव में ये योग बनता है.(लेखक ज्योतिष विशेषज्ञ हैं,मो-9097342912)

 

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