मेघ है तो मल्हार है

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डॉ नीतू नवगीत.

सावन और भादों के महीने में आसमान में उमड़ने-घुमड़ने वाले बादल विरह से व्याकुल प्रेमी-प्रेमिकाओं की विरहाग्नि को शांत करते हैं । ये बादल गर्मी की ताप से झुलसती धरती को भी ठंडक पहुंचाते हैं । इसी मौसम के प्राकृतिक सौंदर्य को स्वरों के माध्यम से अभिव्यक्त करने का सबसे सशक्त राग है मल्हार । वैसे तो हिंदुस्तानी संगीत परंपरा में राग मल्हार काफी पुराना राग है, लेकिन इसे प्रसिद्धि मध्यकाल में मिली । मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक तानसेन ने राग मल्हार के स्वरों के साथ कई अभिनव प्रयोग किए और उसकी एक नई रागिनी तैयार की जिसे मियां का मल्हार कहा जाता है । इस काल में तानसेन के अलावा बैजू बावरा, बाबा रामदास, नायक चरजू,   तनरस खान,  बिलास खान, हमीर सेन, सूरत सेन और  मीराबाई ने भी राग मल्हार में अनेक सुंदर सुंदर गीत गाए । लेकिन जो बात मियां तानसेन में थी, उसकी चर्चा दूर-दूर तक होती रही । कई जनश्रुतियों में तानसेन की गायकी के चर्चे मिलते हैं । एक जनश्रुति के अनुसार एक बार तानसेन को स्वरों से राजमहल को प्रकाशित करने की चुनौती मिली । उन्होंने राग दीपक गाना चालू किया जिससे उनका शरीर तप्त हो गया । रागों के ताप से राजमहल के सारे दीपक जल उठे । सभी उनकी आवाज के जादू से मंत्रमुग्ध हुए जा रहे थे लेकिन तानसेन स्वयं राग दीपक की गर्मी को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे । अपनी जान बचाने के लिए वह नदी में कूद गए । इससे उन्हें थोड़ी राहत मिली । उनके शरीर का ताप इतना ज्यादा था कि नदी का पानी उबलने लगा । फिर भी शरीर की गर्मी पूरी तरह शांत नहीं हो पाई । शांति और शीतलता की तलाश में वह गुजरात के वडनगर  गए, जहां दो बहनों तारा और रिरी ने राग मल्हार गाया जिसकी शीतलता से तानसेन के शरीर की गर्मी समाप्त हुई । माना जाता है कि तानसेन और बैजू बावरा जैसे गायकों द्वारा जब राग मल्हार गाया जाता था तो मेघ घनीभूत हो जाया करते थे और मूसलाधार बारिश होती थी । वस्तुतः राग मल्हार पूर्णतया वर्षा से जुड़ा हुआ राग है । शुद्ध मल्हार के अलावा इसके कई अन्य प्रकार भी हैं जिसमें मियां मल्हार, रामदासी मल्हार, गौड़ मल्हार, सुर मल्हार, देश मल्हार, नट मल्हार, धूलिया मल्हार और मीरा की मल्हार शामिल है ।

हिंदी सिनेमा के प्रादुर्भाव के बाद अनेक संगीतकारों ने भी राग मल्हार में गाए गीतों को फिल्मों में शामिल किया । ऐसे गीतों में झिरी झिरी बरसे सावनी रतियां, शराबी शराबी ये सावन का मौसम, गरजत बरसत सावन आयो रे, दुख भरे दिन बीते रे  भैया आदि शामिल है । ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म गुड्डी का प्रसिद्ध गाना बोले रे पपीहरा अब घन गरजे मियां की मल्हार की एक पारंपरिक बंदिश पर आधारित है । यह गीत वाणी जयराम की आवाज में है । यशुदास और  हेमंती शुक्ला की  आवाज में  फिल्म चश्मे बद्दूर  का गीत कहां से आए बदरा , फिल्म लगान का लोकप्रिय गीत काले मेघा, काले मेघा; पानी तो बरसाओ।  बिजुरी की तलवार नहीं, बूंदों के बाण चलाओ और ‘गुरु’ फिल्म का गीत बरसो रे मेघा-मेघा, बरसो रे मेघा- मेघा,बरसो रे भी राग मल्हार पर ही आधारित है।( लेखिका बिहार की लोकप्रिय लोक गायिका भी हैं)

 

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