किसानों के आंसुओं की कीमत

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डॉ नीतू नवगीत.

चंपारण के किसानों के आंसू पोछने के लिए सौ साल पहले मोहनदास करमचंद गांधी चंपारण आए थे । किसान तब बेहाल थे । किसान अब भी बेहाल हैं । उनका दर्द समंदर सा है । विशाल । लेकिन कोई भी इस दर्द को अपनाता नहीं है । राजनीति खूब होती है । बड़े-बड़े वादे होते हैं । वार्षिक बजट में लंबे-लंबे प्रावधान किए जाते हैं । लेकिन किसान हाशिए पर ही रहता है । जो नीति बनाते हैं , तरक्की की राह पकड़ते हैं । नीतियों के पालन के लिए बहाल किए गए सरकारी कर्मचारी और संस्थाएं भी तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ती चली जाती हैं । लेकिन किसान जस का तस वहीं पर खड़ा रहता है । उसकी समस्याएं पहले जैसे ही बनी रहती है ।

किसानों की स्थिति  में सुधार के लिए नई पहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई है । उन्होंने अगले 5 साल में किसानों की आय को दुगना करने का लक्ष्य निर्धारित किया है । उनके द्वारा दिए गए निर्देशों के आलोक में नीति आयोग द्वारा एक समिति का गठन किया गया है । इस समिति को एक ऐसी योजना तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई है जिसमें कृषि नीति को उत्पादन केंद्रित की जगह आय केंद्रिंत बनाया जा सके । यह समिति उन संभावनाशील क्षेत्रों की भी पहचान करेगी जिसमें ज्यादा निवेश होना चाहिए । कृषि आय को बढ़ाने के लिए हॉर्टिकल्चर, पशुपालन और मत्स्य पालन जैसे कृषि संबंधित सहायक क्षेत्रों की ओर विविधीकरण पर जोर दिया जा रहा है, ताकि कृषि में जोखिम को कम किया जा सके । खेती की लागत कम करने,  मौसम की अनिश्चितता के बावजूद किसानों की स्थिति को सुदृढ़ बनाए रखने तथा कृषि क्षेत्र में दाम के उतार-चढ़ाव से किसानों को बचाए रखने के लिए भी यह समिति काम करेगी । समिति द्वारा कृषि क्षेत्र में नई तकनीक के इस्तेमाल, मृदा की गुणवत्ता के अनुसार कृषि, रसायनिक उर्वरकों की जगह नीम लेपित यूरिया के इस्तेमाल तथा हर बूंद से ज्यादा फसल उगाते हुए खेती की लागत को कम करने के संबंध में भी सुझाव देना है । किसानों को उनके उत्पादों का सही मूल्य प्राप्त हो, इसके लिए इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार की स्थापना तथा नई फसल बीमा योजना के संबंध में भी यह समिति अपनी सिफारिशे देगी ।      भारत की कुल आबादी का 58 प्रतिशत हिस्सा अभी भी कृषि क्षेत्र में लगा हुआ है । 2015-16  में कृषि तथा इससे संबंधित क्षेत्रों की सकल घरेलू उत्पाद में भागीदारी 17.5 प्रतिशत रही । जाहिर है देश की अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्व बना हुआ है । किसानों की आंखों में बहते आंसुओं को रोके बिना देश के विकास की हर बात बेमानी है । फिर भी किसानों की समस्याओं के प्रति वह गंभीरता नहीं दिखती जो दिखनी चाहिए थी । पिछले साल दीर्घकालिक सिंचाई कोष को 20,000 करोड़ रुपए से बढ़ाकर ₹40000 करोड़ कर दिया गया । लेकिन 28.5 लाख हेक्टेयर जमीन को सिंचित करने का लक्ष्य अधूरा रह गया । इसी तरह 2016-17 में 14 करोड़ फार्म होल्डिंग को सॉइल हेल्थ कार्ड के दायरे में लाना था ।लेकिन मात्र 5 करोड़ फार्म होल्डिंग के सॉइल हेल्थ कार्ड बनाया जा सके ।इसमें भी मात्र ढाई करोड़ खेतों के मिट्टी के सैंपल जांच किए जा सके ।

किसानों को मौसम के उतार-चढ़ाव से बचाने के लिए व्यापक स्तर पर फसल बीमा योजना को लागू किया गया है । 2016 ई. में इस मद पर 1,41,625 करोड़ रुपए खर्च किये गये हैं । लेकिन उसका वास्तविक लाभ किसानों को कितना मिल पा रहा है, इसके संबंध में कोई भी विश्वसनीय अध्ययन उपलब्ध नहीं है । सच तो यह है कि किसान आंकड़ों की बाजीगरी को नहीं समझते । न ही आंकड़ों की बाजीगरी में उलझना चाहते हैं । यदि उनके उत्पादों के सही मूल्य उपलब्ध करा दिए जाएं तो उनकी अनेक समस्याएं अपने आप समाप्त हो जाएगी । लेकिन कालाबाजारियों और अधिकारियों के मकड़जाल में फंसी व्यवस्था इस दिशा में उचित कदम उठाने से हिचकती रही है । नतीजन बाजार में जिस दाल को ₹200 किलो बेचा जाता है, उसके लिए किसानों को मात्र ₹50 प्रति किलो का मूल्य अदा किया जाता है । किसानों के जो आलू दो रुपए किलो खेतों में खरीदे जाते हैं, उसे चिप्स के रूप में बाजार में ₹1000 प्रति किलो के हिसाब से बेचा जाता है । आजकल गर्मियों के दिन हैं । किसानों के टमाटर ₹2 किलो खरीदने वाला भी कोई नहीं है । लेकिन वही टमाटर सॉस के रूप में बाजार में 200 से 300 रुपए प्रति किलो की दर पर उपलब्ध है । ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि किसानों को ना सिर्फ खेती-बारी में आधुनिक बनाया जाए बल्कि उन्हें बाजार की कला में भी पारंगत किया जाए । उत्पादों के सही मूल्य दिलाने के लिए बड़े स्तर पर गोदामों और बाजारों का निर्माण भी करना होगा । निश्चित रुप से यह एक दिन का काम नहीं है । हमारे प्रधानमंत्री इस बात को समझते हैं  । इसीलिए नीति आयोग भी  तीन स्तरीय फार्मूले पर काम कर रहा है । 15 सालों की दीर्घकालिक नीति बनाई जा रही है तो 7 सालों की मध्यकालिक और 3 सालों की अल्पकालिक नीति । इन  नीतियों के आलोक में बनने वाली योजनाओं के सही क्रियान्वयन से ही किसानों की स्थिति में सुधार लाया जा सकता है । पिछले 15 सालों में करीब दो लाख उनचालीस हजार किसानों  और खेतिहर मजदूरों को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा है । उम्मीद करें कि किसानों की आय को दुगना करने के प्रधानमंत्री के नए फार्मूले के बाद अगले 15 साल किसानों के जीवन में समृद्धि और उल्लास के फुहार लाएंगे

 

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डॉ नीतू नवगीत लेखन के साथ-साथ संगीत व समाज सेवा में भी अपना योगदान दे रहीं हैं.छात्र जीवन से ही लिखना शुरू किया और यह यात्रा जारी है.इन्होंने सेंट जेवियर कॉलेज(रांची) से स्नातक और लेडी श्रीराम कॉलेज(दिल्ली) से हिन्दी साहित्य से स्नातकोत्तर करने के बाद पुन: रांची विश्वविद्यालय से पीएचडी की और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लगातार लिखती रहीं.डॉ नवगीत अच्छी गायिका भी हैं.इनका भोजपुरी लोकगीत का एलबम काफी लोकप्रिय है.

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