बहती हुई नदी मां होती है

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 डॉ नीतू नवगीत.

उच्च पर्वत श्रृंगों से निकल कर मैदानी इलाकों से गुजरते हुए सागर की अतल गहराइयों में विलीन होने वाली नदियों ने विश्व की कई संस्कृतियों को जन्म दिया है । भारत के प्राचीन हड़प्पा सभ्यता सिंधु नदी की गोद में विकसित हुई थी तो मेसोपोटामिया की सभ्यता दजला और फरात नदियों के आंचल तले । मिश्र की सभ्यता का विकास नील नदी के किनारे-किनारे हुआ तो चीन की पुरानी सभ्यता ह्वांगहो नदी के तट पर पुष्पित-पल्लवित हुई । भारत की वैदिक संस्कृति का विकास गंगा यमुना और सरस्वती नदियों के विस्तार क्षेत्र में हुआ । सभ्यताओं के विकास में नदियों ने मां की भूमिका निभाई । लोगों को न सिर्फ पोषित किया बल्कि उन्हें सामाजिकता का ककहरा भी पढ़ाया । जीवन के बचपना, यौवन और बुढ़ापे को सही ढंग से जीने की कला भी नदियों ने ही सिखाई । बिल्कुल मां की तरह ।

एक मां का दूध पीकर ताकत पाने वाला, मां की अंगुली पकड़कर कर पहली बार दो-चार डग भरने वाला बच्चा बड़ा होकर मां और उसके संस्कारों को भूलने लगता है । नदियों के मामले में भी ऐसा ही हुआ है । जिस मानव समुदाय को अपने आशीष से नदियों ने विकास के पथ पर आगे बढ़ने लायक बनाया, उसी मानव ने नदियों को उपेक्षित कर दिया ।  जीवनदायिनी मां को गंदगी साफ करने वाली महिला बना दिया । फिर भी नदी बहती रही । अपने सारे आंसुओं को आंचल में बांध अपने मां होने का कर्तव्य पूरा करती रही ।

भारत हो या जर्मनी,  चीन हो या जापान; मनुष्य ने अपनी बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए नदियों को माध्यम बनाया । पहले उसका स्वच्छ पानी लेकर बड़ी-बड़ी औद्योगिक इकाइयों की प्यास को बुझाया और फिर जहरीले रसायन और कचरे से युक्त पानी को नदियों में बहाया । नदी सिसकने पर मजबूर रही । प्रतिवर्ष 100 करोड़ लीटर गंदगी अपनी गोद में समेटने के बावजूद गंगा बहती रही । यमुना नदी का 80% पानी प्रदूषित हो गया । फिर भी नदी ने उफ नहीं किया । आधे अधूरे मन से नदियों की सफाई का अभियान भी चलाया गया । लेकिन नतीजा सिफर रहा । अब उम्मीद की एक नई किरण दक्षिणी गोलार्द्ध से दिखी है । न्यूजीलैंड की संसद ने वहां की तीसरी सबसे लंबी बांगनूई नदी को मनुष्य के समान वैधानिक अधिकार प्रदान किए हैं । ऐसा करीब 150 सालों के संघर्ष के बाद किया गया । वहां की स्थानीय माओरी जनजाति के लोग वांग नूई नदी को परंपरागत रूप से मनुष्य का दर्जा देते रहे हैं । वैसे ही जैसे भारत में गंगा को मां का दर्जा हम देते आए हैं । इसी समुदाय ने 1870 के दशक में वांगनूई नदी को मनुष्य का दर्जा देने की मांग की थी । लंबे संघर्ष के बाद 2016 में न्यूजीलैंड के संसद में बांगनूई नदी को मनुष्य का दर्जा देने संबंधी विधेयक लाया गया गया था जिसे 2017 के मार्च महीने में लागू कर दिया गया । 145 किलोमीटर लंबी बांगनूई नदी को सजीव मानते हुए मनुष्य को प्रदत्त सभी अधिकार दे दिए गए हैं ।

न्यूजीलैंड में उठाए गए इस ऐतिहासिक कदम का विश्वव्यापी असर संभावित है । नदियों के प्रदूषण से संबंधित मामले अब आसानी से दरकिनार नहीं किए जा सकेंगे । सरकारों और औद्योगिक घरानों पर दबाव बनेगा कि नदियों के साथ भी मानवीय व्यवहार किए जाएं और उनके अस्तित्व एवं पवित्रता की रक्षा के लिए सभी जरूरी कदम उठाए जाएं ।

 

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