पटना रंगमंच के लिए मोना झा कोई नया नाम नहीं है, कला के क्षेत्र में वो वर्षों से बिहार का नाम रौशन करती आयी है. रंगमंच से जुड़े विभिन्न मुद्दे पर हमारी संवाददाता कृतिका ने उनसे बातचीत की . प्रस्तुत है इसके प्रमुख अंशः
प्रश्नः रंगमंच की दुनिया में आप कैसे आईं, इसके पीछे क्या कारण है?
उत्तरः मेरे पापा का का लगाव मंच से रहा. उन्हीं के साथ हम सभी बहने थिएटर देखने जाती थीं.और इसी क्रम में मेरी बड़ी दीदी जुड़ी. फिर धीरे- धीरे हम सभी बहनें इससे जुड़ती चली गईं. सच कहे कोई खास वजह नहीं रहा, परिवेश और माहौल मिलता चला गया और हम सब इससे जुड़ते चले गये. मेरा पूरा परिवार ही कला से जुड़ा हुआ है मैंने पेंटिग और कत्थक की शिक्षा भी ली है.
प्रश्नः जब आप थिएटर से जुड़ी तब का माहौल कैसा था ? कितना सहयोग मिला आपको अपने परिवार से ?
उत्तरः तब का माहौल आज जैसा नहीं था. रिहर्सल से देर शाम या रात लौटने पर अड़ोस-पड़ोस में तरह –तरह की चर्चाएं होती थी. लेकिन हमारे परिवार के लोगों ने बहुत सर्पोट किया खासकर पिता जी ने. साथी कलाकारों का भी सहयोग मिलता था. देर हो जाने पर वे घर तक छोड़ने आते थे.
प्रश्नः आपने लव मैरज किया है? तब कोई दिक्कत नहीं हुई?
नहीं कुछ खास नहीं .अब तो सब ठीक है. मेरे पति भी थिएटर से जुड़े थे, इसलिए कोई परेशानी नहीं हुई. मेरे परिवार का सहयोग हमेशा मेरे साथ रहा. चाहे वह रंगमंच से जुड़ने का फैसला हो या शादी का.
परिवार और थिएटर के बीच आपने सामंजस्य कैसे बनाया?
शुरूआत में सबकुछ अच्छा था, पति का पूरा सहयोग मिला. परन्तु मां बनने के बाद मुझे थिएटर से तीन साल दूर रहना पड़ा. बच्चे के साथ रहने की खुशी थी और इस समय मैं घर में ही अभ्यास करती थी लेकिन मंच से दूर रहने की कसक हमेशा मेरे दिल में रही.
तीन साल बाद जब आप दुबारा मंच से जुड़ी, तब घर और मंच में सामंजस्य बैठाना आसान था?
नहीं, आसान नहीं था .परन्तु पति के सहयोग से सारे रास्ते आसान होते चले गऐ.रंगकर्म के दौरान जब मेरा सीन होता था, तब वह बेटी को संभालते थे,और जब ऊनका होता था तब मैं संभालती थी.
एक वाकया है कि हम पति पत्नी को सीन में जाने की जल्दबाजी थी और हम ठंड में बच्ची को यूं ही ठिठुरती छोड़ कर चले गए.लेकिन भगवान का शुक्र है कि जब वापस आई तो देखा की साथी कलाकारों ने बच्ची को कंबल ओढा रखा था.
जब आप रगमंच से जुड़ी थी,तब और अब में क्या फर्क है?
पहले महिला कलाकारों की संख्या बहुत कम थी जो वर्तमान समय में बढी है, पहले संस्थानो की संख्या और प्रस्तुतियां कम होती थी. परन्तु गंभीर प्रस्तुतियां पेश होती थी. कलाकारों का रंगमंच के प्रति समर्पन था,जबकि आज के कलाकारों में थोड़ा कम ही दिखता है. आज रंगमंच पर टेक्निकल उपकरणों का इस्तेमाल होता है, जो उस वक्त कम होता था
स्क्रिप्ट से प्रस्तुति तक जाने में किन–किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है?
प्रैक्टिस के लिए सही जगह का अभाव है. परिवार और रंगमंच में सामंजस्य बैठाना बहुत चुनौतीपुर्ण होता है. अनेक प्रकार के सहयोग से नाटक पूरा होते हैं. सर्वाधिक दुखद तो यह है कि रंगकर्म के लिए बुक हाल को एक दिन के नोटिश पर सरकार कैंसिल कर देती है और अपना कार्यक्रम करती है . इससे रंगकर्मी के कार्यक्रम पर हीं नहीं बल्कि उनके सम्मान पर भी प्रतिकुल असर पड़ता है.
रंगमंच से युवाओं का रूझान कम हो रहा है? इसका मुख्य कारण क्या है?
रंगमंच निरंतर अभ्यास और साधना की चीज है. जबकि आज के युवा शार्ट-कट से ग्लैमर वर्ल्ड का जल्द से जल्द हिस्सा बनना चाहते हैं.ऐसे मे रंगमंच से जुड़ते तो हैं, लेकिन जल्द ही अपनी किस्मत आजमाने मुम्बई जाकर सिर्फ भीड़ का हिस्सा बन कर रह जाते हैं.
अभिभावक भी कला से जुड़ने के बजाए बेटे–बेटियों को कोई और प्रोफशेनल बनाना चाहते हैं ?
आजकल बच्चों पर बहुत कम उम्र से ही अच्छे भविष्य और कैरियर का बोझ डाल दिया जाता है.रंगमंच में पैसा और कलाकारों की बुरी स्थिति होने की वजह से ऐसा है, अभिभावक अपने बच्चों को इस क्षेत्र में आने से मना करते हैं.
आप अपनी भूमिका कैसे तय करती हैं?
कलाकारों की भूमिका निर्देशक द्वारा तय की जाती है,कलाकार तो बस उसमें ढल जाते है.
आप किस तरह के चरित्र करना पसंद करती है?
कलाकारो को हमेशा वरसाटाईल होना चाहिए,कोई कलाकार किसी एक कैरेक्टर में बधंना पसंद नहीं करते है,उसी तरह मुझे हर प्रकार की चरित्र को सजिंदगी से जीना पसंद है.
निर्देशक की भूमिका कलाकारों के साथ कैसी होनी चाहिए?
निर्देशक की भूमिका हमेशा अपने कलाकारो के साथ अनुशासित एवं सहयोगपूर्ण होनी चाहिए ,अपने कलाकारों की खुबियों को सयंम के साथ निखारने में मदद करनी चाहीए.
आप आपनी तैयारी कैसे करती है?
मेरे लिए अपनी कला को मंच पर प्रस्तुत करना एक साधना है. और एक अच्छे चरित्र की प्रस्तुति के लिए पहले उसको समझना पड़ता है, उसमे ढ़लना पड़ता है, उसे पूरी ईमानदारी से आत्मसात करना पड़ता है, तब जा कर उसकी प्रस्तुति रंगमंच पर संपन्न हो पाती है.
इस क्षेत्र में आने से पहले किन बारीकियों पर ध्यान देना चाहिए?
सबसे पहले तो उन्हे अपनी उच्चारण पर ध्यान देनी चाहिए, क्योंकि डायलॉग डिलीवरी मे अक्सर वे मात खा जाते है. साथ हीं रंगमंच नन ग्लैमरस वर्ल्ड है जो निरंतर अभ्यास खोजती है. इसलिए इसक्षेत्र में आने से पहले मेहनत के लिए कमर कस लेनी चाहिए.
सरकार द्वारा आप इसक्षेत्र मे क्या सहयोग चाहती है?
कौशल विकासकी तरफ सरकार की योजनाएं काबिले तारीफ है. परन्तु कला के क्षेत्र मे भी सरकार को कई संस्थान,प्रशिक्षण केन्द्र राज्य के अनेक जिलो में स्थापित करवाना चाहिए. क्योंकि बहुत सारे युवा रंगमंच में रूझाण के बावजूद बाहर जाकर प्रशिक्षण लेने से चुक जाते है,और उनका सपना अधूरा ही रह जाता है.