निशिकांत सिंह.पटना.पटना की नाव दुर्घटना में 24 लोगों की मौत का जिम्मेदार कौन?यह सवाल एनआईटी घाट से लेकर राजनीतिक गलियारे में उठती रही.इस बीच एनडीआरएफ की टीम ने 2 बजे के बाद घोषणा की कि अब कोई लाश गंगा नदी में नहीं है. और उसने अपना कार्य बंद कर दिया.इतनी बड़ी दुर्घटना हुई कैसे यह सोचने वाली बात है. प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि प्रशासन द्वारा लोगों को गंगा उस पार पहुंचाया तो गया लेकिन वापस लाने के पूर्व ही स्टीमर खराब हो गया और प्रशासन द्वारा वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई.
इधर, शाम होते ही ठंढ बढ़ने लगी और लोग घर लौटने की जल्दबाजी करने लगे. वैसे में लोग निजी नावों पर चढ़ने लगे.नाविक द्वारा मना करने के बाद भी लोग नहीं माने और चढ़ गए.ऐसे में नाव कुछ ही दूर जाने के बाद डूब गई. इस हादसे में प्रशासन की माने तो 24 लोगों की जाने गई.आज 4 लाशे और निकाली गई. तथा कल 20 लाशें निकाली गई थी. कुल मिलकर इस दुर्घटना में 24 जाने गई है ,राज्य सरकार ने 4 लाख तथा केंद्र ने 2 लाख मुआवजा देने का घोषणा की है.
नाव दुर्घटना में एक ही बात सबसे सुनने को मिली की नाव में क्षमता से बहुत ज्यादा लोग सवार हो गए थे जिसके कारण नाव खुलने से कुछ मीटर आगे बढ़ने के बाद डूब गई.
अहम सवाल यह है की नाव में क्षमता से अधिक लोग बैठे कैसे? दरअसल गंगा के उस पार पिछले 5 सालों से पर्यटन विभाग द्वारा पतंग उत्सव का आयोजन होता आ रहा है. कल भी पतंग उत्सव का आयोजन था जिसमें मुफ्त में इस पार से उस पार जाना, वहां खिचड़ी चोखा तथा अन्य सरकारी व्यवस्था के अंतर्गत भोज्य पदार्थ का सेवन करना था. उसपार का विधि व्यवस्था सारण पुलिस के अंतर्गत था लेकिन पटना पुलिस के भी जवान तैनात थे.विधि व्यवस्था पूरी चौकस भी थी लेकिन फिर भी इतनी बड़ी घटना हो गई. राज्य सरकार की तरफ से कल के लिए शुरूआती तैयारी तो अच्छी थी, लाने ले जाने के लिए एक बड़ी वोट की व्यवस्था थी जिसमें एक साथ सैकड़ों लोग बैठकर उस पार जा रहे थे. मुफ्त में खाने की व्यवस्था भी थी इसे प्रसारित प्रचारित भी किया गया था.
कल सुबह से एक बड़ा वोट पटना छोर से उस पार कई फेरियो में लोगो को ले गया,जिसके कारण अप्रत्याशित भीड़ उस पार पहुंच गई. कुछ स्थानीय दुकानदारों या लोगो की माने तो इतनी भीड़ पहले कभी नहीं देखी गई थी. हालांकि खाने के दरमियान पुलिस से लोगों की नोकझोंक भी हुई थी लेकिन उसका इस घटना से कोई लेने लेना देना नहीं था.
घटना शाम के करीब 5:45 की है. अधिकृत स्थल से करीब 300 मीटर की दूरी पर यह घटना घटी है.सरकार द्वारा जो अधिकृत जगह था वहां पर वापसी के लिए छोटी नावे उपलब्ध थी लेकिन उतनी भीड़ को लाने में असमर्थ थी, जिसके कारण उस पार गए लोगों में सूरज ढलने के बाद घर वापसी के लिए व्यग्रता बढ़ती गई.
जो बड़ा बोट इन लोगों को उस पार ले गया था वह बोट वापसी कराने के लिए उपलब्ध नहीं था. जिसकी वजह से लोग उपलब्ध नावो पर संख्या से अधिक बैठकर पार भी हुए. हालांकि वहां पुलिस व्यवस्था थी जिसके कारण बहुत ज्यादा ओवरलोड नहीं हो रही थी.
इसी दरमियान लोगो को बड़ी वोट आती हुई दिखी, जिसके कारण लोग उस तरफ दौड़ गए क्योंकि अधिकृत स्थान पर पानी का स्तर कम होने के कारण बड़ा बोट का ठहरना संभव नहीं था.जब लोग उस बड़े बोट का इंतजार कर रहे थे इसी दरमियान एक छोटी नाव आ कर लगी, जिस पर लोग बैठने लगे कुछ लोगों का मानना है कि नाविक ने मना भी किया लेकिन लोग नहीं माने और नाव में बैठ गए.नाव खुलते ही करीब 10 से 15 मीटर गंगा में गई थी कि अचानक हलचलों के साथ डूबने लगी. 20 के स्थान पर 50 से ऊपर लोगों की भीड़ जब नाव डूबता हुआ देखे जान बचाने के लिए अफरा तफरी मची. तब तक पूरी नाव गंगा में समा गई.
एक बात और सामने आई थी दो नावो के बीच टक्कर की जिसे प्रशासन से लेकर सभी मौजूद लोगो ने नकारा. लेकिन एक वीडियो फुटेज में दिख रहा यह जांच का विषय है.इस पर बात करना मुनासिब नहीं समझा.
कुछ लोगों का मानना है कि ज्यादातर मौतें गर्म कपड़े पहनने की वजह से पानी में भीगने के कारण बहुत भारी हो गई और बचाव कार्य में तकरीबन एक से डेढ़ घंटे का फासला रहा. अगर बचाव कार्य तुरत हो जाता तो कुछ जानो को बचाया जा सकता था.
एनडीआरएफ की माने तो उनकी टीम को 7.15 में सूचना दी गई और उनकी टीम 8:00 बजे घटनास्थल पर पहुंची तब तक 20 लाशों को निकाला जा चुका था . दूसरी तरफ इतने बड़े आयोजन के दौरान अक्सर लोगों की सुरक्षा के लिए पुलिस वालों के साथ गंगा में अधिकृत नाविकों को लगाया जाता है. हालांकि सरकार कह रही है कि नाविक की व्यवस्था थी लेकिन जो अधिकृत नाविक साहनी है उसका कहना है कि ऐसी कोई सूचना नहीं थी.घटना होने के बाद हमें सूचना दी गई जिसके बाद हम पहुंचे. मैं और मेरी टीम ने जो भी हो सकता था हमने किया. जो लोग बचे है वह अपनी किसमत और उस वक्त उपलब्ध लोगो की तत्परता से बचे है न की सरकार की मशीनरी से बचे है,यह सत्य है.
अब सरकार ने जांच भी बैठाई है जो भी सरकारी तथ्य होंगे या इस घटना की बारीकियां होगी वह जांच के बाद सामने आएगी. लेकिन पत्रकारिता की नजर से लोगों से बात करने के बाद लगा कि अगर थोड़ा सी प्रशासनिक गंभीरता होती तो इस पूरे कार्यक्रम को तो 24 घरों मातम नहीं पसरते.अब देखना होगा कुछ दिन बाद सरकारी जांच में क्या आता है. लेकिन हर घटना के बाद जांच होती है उसकी कमियों की मुकम्मल व्यवस्था भी होती है तब तक दूसरी घटना घट जाती है. कार्यक्रम छोटा हो या बड़ा अगर प्रशासनिक स्तर पर उसकी तीव्रता का पैमाना एक हो तो ऐसी घटनाओं की पुनरावृति पर रोक लगाई जा सकती है. इंतजार करते हैं सरकार की रिपोर्ट जो कुछ दिनों बाद आएगा देखते है क्या आता है और 24 मौतों का कातिल किसे ठहराया जाता है.