(-मुकेश महान)…..
एक बार, फिर से नीतीशे कुमार. बिहार में बहार, एक बार फिर नीतीश कुमार जैसे नारे जबर्दस्त सफल रहे इस विधान सभा चुनाव में. …और नतीजों के बाद नीतीश कुमार एक बार महाविजय के महानायक बन कर लोंगों के सामने उभरे हैं. लेकिन उनके लिए इस जीत के मायने कुछ तो अलग हैं .नीतीश जी को आत्मविश्वास से लवरेज रहने के लिए इतना ही काफी है कि महाविजयी हुआ महागठवंधन उनके नेतृत्व में ही चुनावी जंग लड़ रहा था और सामने भाजपा जैसी दिग्गज राष्ट्रीय पार्टी थी. नीतीश के नेतृत्व में यह एक बड़ी उपलब्धि है. बड़ी उपलब्धि इसलिए भी विरोधी दल भाजपा की ओर से इस चुनावी जंग का नेतृत्व खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे थे.ऐसे में एक तरह से ये माना जाने लगा है कि नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी को ही हरा दिया है.लेकिन यह भी सच है कि इस जीत में बड़ी भागीदारी राजद की रही .राजद ही सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी है.ऐसे में असली नायक या महानायक का ताज लालू के ही सिर चढ़ा है .
इन स्थितियों से परे एक सचाई यह भी है कि चुनाव परिणाम के बाद राष्ट्रीय स्तर पर गैर भाजपाई पार्टियों की नजर में नीतीश एक उम्मीद बन कर उभरे हैं. भाजपा खासकर नरेंद्र मोदी के विकल्प के रुप में अब नीतीश कुमार को देखा जा रहा है .इस पूरे गणित की विशेषता ये है कि भाजपा के धूर विरोधी कांग्रेस का साथ भी नीतीश कुमार को मिल रहा है. पी एम मेटेरियल तो वो पहले से ही वो बताये जाते रहे है. हां इसके लिए वो कोशिश नहीं हुई कभी जो होनी चाहिए .अब अगर नीतीश इसके लिए तैयार होते हैं और अपनी तैयारी करते हैं तो वो बिहार से देश को पहला प्रधानमंत्री दे सकते हैं.यह और बात है कि इसके लिए उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर तैयारी करनी पड़ेगी और प्रशांत किशोर जैसे कुछ और प्रोफेशनलों की सेवा लेनी पड़ सकती है.
ये तो राष्ट्रीय स्तर पर नीतीश से उम्मीद की बात हो गई . प्रदेश स्तर पर भी नीतीश को एक बार मुख्यमंत्री बना कर जनता ने उनके सामने कई चुनौति दे दी है. पहली चुनौति इस महागठबंधन की गांठ को मजबूत बनाए रखने की है. ऐसा नहीं कि समय से पहले यह गांठ ढिली हो जाए या बीच मझधार में ही खुल जाए. यह चुनौति सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण है .
इसके साथ साथ गठबंधन दल के दबाव को झेलना भी नीतीश कुमार केलिए कभी कभी मुश्किल भरा हो सकता है. और तो और गठवंधन दलों के कथित समर्थकों की हुड़दंग और दबंगई को नियंत्रित करना भी नीतीश कुमार के लिए थोड़ा मुश्किल का कामहो सकता है .मतलब कि इस गठबंधंन के साथ जंगलराज की छवि से उबरना और सुशासन की छवि को बनाए रखना एक बड़ी चुनौति साबित हो सकती है.
नीतीश कुमार को जनता ने बहुमत दिया है विकास के नाम पर . इसलिए नीतीश का अपना मंत्र न्याय के साथ विकास को भी जगाए रखना होगा .यही नीतीश सरकार की मूल शक्ति भी रही है. अगड़े और पिछड़े के साथ साथ किसी भी वाद में चुनाव को छोड़ दें तो नीतीश कभी नही उलझे .यही उनकी विशेष पहचान रही है. अब एकबार फिर से नीतीश को अपनी वो छवि मेंटेन रखने में गठबंधंन के कारण मुश्किल हो सकती है .
नीतीश कुमार को एक बार फिर से प्रदेश में विकास की नई परिभाषा गढने की जरुरत होगी .अबतक जो उन्होंने प्रयास या विकास किया उसकी आदत प्रदेशकी जनता को हो गई है. ऐसे में उनके लिए यह जरुरी है कि इसबार विकास कुछ नया हो जो सबको भाये , बिहार को भाए .खासकर जिसकी धमक और चमक देश भर में पहुंचे, तभी वो लालू के मिशन 2019 के नायक हो सकते हैं.