संवाददाता.पटना.शराबबंदी के बाद सरकार के पास पैसा नहीं है, इसलिए एक-एक कर अधिकांश अनुदानों व रियायतों को समाप्त कर उसने मान लिया है कि अब यहां कोई उद्योग आने वाला नहीं है. पूर्व की औद्योगिक नीति जब इतनी उदार और आकर्षित करने वाली थी तब तो इक्के-दुक्के उद्यमी यहां आए. बिहार सरकार की नई औद्योगिक नीति पर भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने सवाल उठाते हुए कहा कि अब जब सारे अनुदानों व रियायतों को समाप्त कर दिया गया है तो कोई आने के लिए क्यों आकर्षित होगा?
भारतीय जनता पार्टी के नेता व पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि राज्य सरकार की नई औद्योगिक नीति 2016 में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को दिए जाने वाला 35 प्रतिशत पूंजीगत अनुदान (CAPITAL SUBSIDY) और अन्य उद्योगों को मिलने वाले 20 प्रतिशत तक के पूंजीगत अनुदानों को समाप्त कर दिया गया है. इसके साथ ही स्वीकृत परियोजना लागत की 300 प्रतिशत तक की जाने वाली वैट प्रतिपूर्ति को भी मात्र 70 से 130 प्रतिशत तक सीमित कर दिया गया है. जब अनुदान व अन्य प्रोत्साहन दिए जाने के बावजूद बिहार में खाद्य प्रसंस्करण को छोड़ कर अन्य प्रक्षेत्रों में कोई उद्योग नहीं लगा, अब तो यहां कोई उद्यमी शायद झांकने भी नहीं आयेगा.
मोदी ने कहा कि इसके अलावा सरकार ने डीजल जेनरेटर लगाने, प्रोजेक्ट रिपोर्ट, तकनीकी ज्ञान व भूमि विकास आदि पर दिए जाने वाले अलग-अलग अनुदानों को भी समाप्त कर दिया है. पहले जहां उद्योगों के लिए जमीन की रजिस्ट्री में स्टाम्प शुल्क और कृषि से उद्योग भूमि में परिवर्तन शुल्क में पूरी तरह से छूट थी वहीं अब पहले भुगतान करना होगा और बाद में सरकार प्रतिपूर्ति करेगी. इसी तरह से 100 से ज्यादा लोगों को रोजगार देने वाले उद्योगों को कर्मचारी भविष्य निधि में मिलने वाली एक वर्ष की छूट को भी नई औद्योगिक नीति में समाप्त कर दिया गया है.
सुशील मोदी ने कहा कि पूर्व की औद्योगिक नीति में खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में परियोजना लागत का 35 प्रतिशत कैपिटल अनुदान दिए जाने के कारण बिहार में चावल मिल, दाल मिल, कोल्ड स्टोरेज के तौर पर अन्य उद्योगों की तुलना में सर्वाधिक निवेश हुआ, मगर नई औद्योगिक नीति में सरकार ने इसे समाप्त कर दिया है.इसी प्रकार अन्य उद्योगों को दिए जाने वाले 20 प्रतिश त कैपिटल अनुदान को भी सरकार ने समाप्त कर दिया है.