निशिकांत सिंह.पटना.बाढ़ पीड़ितों के बीच राहत वितरण में अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार फरक्का बराज और गाद प्रबंधन नीति का मुद्दा उठा रहे हैं. नई दिल्ली में जल संसाधन मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया है कि फरक्का बराज की वजह से बिहार में बाढ़ आने का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है.मुख्यमंत्री बयान देकर भ्रम पैदा कर रहे हैं.यह आरोप लगाते हुए भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी ने कहा कि मुख्यमंत्री का यह बयान भी बेबुनियाद है कि बिहार सरकार के आग्रह पर फरक्का बराज के गेट खोले गए. हकीकत है कि मानसून के मौसम में बराज के सभी गेट हमेशा खुले रहते हैं.
अपने बयान में सुशील मोदी ने कहा कि मुख्यमंत्री स्वयं भी अभियंता हैं. उन्हें भ्रामक बयान देने के बजाय भारत सरकार की संस्था डब्लूएपीसीओपी की अध्ययन रिपोर्ट का इंतजार करना चाहिए जिसे बिहार सरकार ने ही फरक्का बराज के प्रभाव और गंगा के प्रवाह व गाद आदि के अध्ययन के लिए अधिकृत किया है. भारत सरकार ने भी अप्रैल,2016 में सेन्ट्रल वाटर पावर रिसर्च स्टेशन के डायरेक्टर डा. एम के सिन्हा की अध्यक्षता में गंगा व ब्रह्मपुत्र में कटाव व गाद के अध्ययन के लिए एक समिति का गठन किया है.
फरक्का बराज को तोड़ने का तर्क देने से पहले नीतीश कुमार को एक बार ममता बनर्जी से पूछ लेना चाहिए. फरक्का बराज का निर्माण 1975 में 38 किमी लम्बी फिडर कैनाल के जरिए हुगली में पानी डायवर्ट करने के लिए किया गया था ताकि कलकत्ता बंदरगाह पर आवागमन की सुगमता बनी रहे. दरअसल बराज कोई भंडारण निर्माण नहीं है बल्कि इसके जरिए पानी के प्रवाह को डायवर्ट किया जाता है. ऐसे में इस बराज की वजह से बाढ़ आने का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है.
मोदी कहते हैं,दरअसल बिहार में बाढ़ से बचाव व राहत कार्य की पूर्व से कोई तैयारी नहीं थी. इसलिए मुख्यमंत्री भ्रामक बयानों के जरिए लोगों का ध्यान भटका रहे हैं जबकि उन्हें लाखों बाढ़ पीड़ितों को त्वरित राहत व उनके बचाव पर ध्यान देना चाहिए.