विघटनकारी शक्तियां देश को कमजोर कर रही हैः राष्ट्रपति

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नई दिल्ली.देश की आजादी के 70वीं वर्षगांठ के पूर्व संध्या पर देश के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने राष्ट्र के नाम संदेश में कहा कि विघटनकारी और असहिष्णु शक्तियों को सिर उठाते हुए देखा है. हमारे राष्ट्रीय चरित्र के विरुद्ध कमजोर वर्गों पर हुए हमले पथभ्रष्टता है,जिससे सख्ती से निपटने की आवश्यकता है. हमारे समाज और शासनतंत्र की सामुहिक समझ ने मुझे यह विश्वास दिलाया है कि ऐसे तत्त्वों को निष्क्रिय कर दिया जाएगा और भारत की शानदार विकास गाथा बिना रुकावट के आगे बढ़ती रहेगी.

आतंकवाद का जिक्र करते हुए प्रणव मुखर्जी ने कहा कि विश्व में उन आतंकवादी गतिविधियों में तेजी आई है जिनकी जड़ें धर्म के आधार पर लोगों को कट्टर बनाने में छिपी हुई हैं. ये ताकतें धर्म के नाम पर निर्दोष लोगों की हत्या के अलावा भौगोलिक सीमाओं को बदलने की धमकी भी दे रही हैं जो विश्व शांति के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है. ऐसे समूहों की अमानवीय, मूर्खतापूर्ण और बर्बरतापूर्ण कार्यप्रणाली हाल ही में फ्रांस, बेल्जियम, अमरीका, नाइजीरिया, केन्या और हमारे निकट अफगानिस्तान तथा बांग्लादेश में दिखाई दी है. ये ताकतें अब सम्पूर्ण राष्ट्र समूह के प्रति एक खतरा पैदा कर रही हैं. विश्व को बिना शर्त और एक स्वर में इनका मुकाबला करना होगा.

राष्ट्रपति ने कहा कि महिलाओं और बच्चों को दी गई सुरक्षा और हिफाजत देश और समाज की खुशहाली सुनिश्चित करती है. एक महिला या बच्चे के प्रति हिंसा की प्रत्येक घटना सभ्यता की आत्मा पर घाव कर देती है. यदि हम इस कर्तव्य में विफल रहते हैं तो हम एक सभ्य समाज नहीं कहला सकते.

लोकतंत्र का अर्थ सरकार चुनने के लिए समय-समय पर किए गए कार्य से कहीं अधिक है,स्वतंत्रता के विशाल वृक्ष को लोकतंत्र की संस्थाओं द्वारा निरंतर पोषित करना. समूहों और व्यक्तियों द्वारा विभाजनकारी राजनीतिक इरादे वाले व्यवधान,रुकावट और मूर्खतापूर्ण प्रयास से संस्थागत उपहास और संवैधानिक विध्वंस के अलावा कुछ हासिल नहीं होता है. परिचर्चा भंग होने से सार्वजनिक संवाद में त्रुटियां ही बढ़ती हैं.

राष्ट्रपति ने कहा कि एक अनूठी विशेषता जिसने भारत को एक सूत्र में बांध रखा है, वह एक दूसरे की संस्कृतियों, मूल्यों और आस्थाओं के प्रति सम्मान है. बहुलवाद का मूल तत्त्व हमारी विविधता को सहेजने और अनेकता को महत्त्व देने में निहित है. आपस में जुड़े हुए वर्तमान माहौल में, एक देखभालपूर्ण समाज धर्म और आधुनिक विज्ञान के समन्वय द्वारा विकसित किया जा सकता है.सशक्त राजनीतिक इच्छाशक्ति के द्वारा, हमें एक ऐसे भविष्य का निर्माण करना होगा जो साठ करोड़ युवाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाए, एक डिजीटल भारत, एक स्टार्ट-अप भारत और एक कुशल भारत का निर्माण करे. हम सैकड़ों स्मार्ट शहरों, नगरों और गांवों वाले भारत का निर्माण कर रहे हैं, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे ऐसे मानवीय, हाइटेक और खुशहाल स्थान बनें जो प्रौद्योगिकी प्रेरित हों परंतु साथ-साथ सहृदय समाज के रूप में भी निर्मित हों. हमें अपनी विचारशीलता के वैज्ञानिक तरीके से मेल न खाने वाले सिद्धांतों पर प्रश्न करके एक वैज्ञानिक प्रवृत्ति को प्रोत्साहन देना चाहिए और उसे मजबूत करना चाहिए. हमें यथास्थिति को चुनौती देना और अक्षमता और अव्यवस्थित कार्य को अस्वीकार करना सीखना होगा.एक स्पर्द्धात्मक वातावरण में, तात्कालिकता और कुछ अधीरता की भावना आवश्यक गुण होता है.

राष्ट्रपति ने कहा कि भारत तभी विकास करेगा, जब समूचा भारत विकास करेगा. पिछड़े लोगों को विकास की प्रक्रिया में शामिल करना होगा. आहत और भटके लोगों को मुख्यधारा में वापस लाना होगा. प्रौद्योगिक उन्नति के इस दौर में, व्यक्तियों का स्थान मशीनें ले रही हैं. इससे बचने का एकमात्र उपाय ज्ञान और कौशल अर्जित करना और नवान्वेषण सीखना है. हमारी जनता की आकांक्षाओं से जुड़े समावेशी नवान्वेषण समाज के बड़े हिस्से को लाभ पहुंचा सकते हैं और हमारी अनेकता को भी सहेज सकते हैं. एक राष्ट्र के रूप में हमें रचनात्मकता, विज्ञान और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना चाहिए. इसमें, हमारे स्कूल और उच्च शिक्षा संस्थानों का एक विशेष दायित्व है.

उन्होंने कहा कि हम अकसर अपने प्राचीन अतीत की उपलब्धियों पर खुशी मनाते हैं, परंतु अपनी सफलताओं से संतुष्ट होकर बैठ जाना सही नहीं होगा. भविष्य की ओर देखना ज्यादा जरूरी है. सहयोग करने, नवान्वेषण करने और विकास के लिए एकजुट होने का समय आ गया है. भारत ने हाल ही में उल्लेखनीय प्रगति की है, पिछले दशक के दौरान प्रतिवर्ष अधिकतर आठ प्रतिशत से ऊपर की विकास दर हासिल की गई है. अंतरराष्ट्रीय अभिकरणों ने विश्व की सबसे तेजी से बढ़ रही प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में भारत के स्तर को पहचाना है और व्यापार और संचालन के सरल कार्य-निष्पादन के सूचकांकों में पर्याप्त सुधार को मान्यता दी है. हमारे युवा उद्यमियों के स्टार्ट-अप आंदोलन और नवोन्मेषी भावना ने भी अंतरराष्ट्रीय ध्यान आकृष्ट किया है. हमें अपनी मजबूत विशेषताओं में वृद्धि करनी होगी ताकि यह बढ़त कायम रहे और आगे बढ़ती रहे. इस वर्ष के सामान्य मानसून ने हमें पिछले दो वर्षों, जब कम वर्षा ने कृषि संकट खड़ा कर दिया था, के विपरीत खुश होने का कारण दिया है. यह तथ्य कि दो लगातार सूखे वर्षों के बावजूद भी, मुद्रा-स्फीति 6 प्रतिशत से कम रही और कृषि उत्पादन स्थिर रहा, हमारे देश के लचीलेपन का और इस बात का भी साक्ष्य है कि स्वतंत्रता के बाद हमने कितनी प्रगति की है.

उन्होंने कहा-मैं इस अवसर पर, हमारे सैन्य बलों, अर्द्धसैन्य और आंतरिक सुरक्षा बलों के उन सदस्यों को विशेष बधाई और धन्यवाद देता हूं जो हमारी मातृभूमि की एकता, अखंडता और सुरक्षा की चौकसी तथा रक्षा इन्हें कायम रखने के लिए अग्रिम सीमाओं पर डटे हुए हैं.

 

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