साहित्य के साधक और मनुष्यता के कवि थे डा दीनानाथ शरण

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Dinanath Sharan

संवाददाता.पटना. डा दीनानाथ शरण हिन्दी के कुछ उन थोड़े से मनीषी साहित्यकारों में थे, जो यश की कामना से दूर, जीवन पर्यन्त साहित्य और पत्रकारिता की एकांतिक सेवा करते रहे। वे मनुष्यता और जीवन-मूल्यों के कवि और विद्वान समालोचक थे। नेपाल में हिन्दी के प्रचार में भी उनके अत्यंत महनीय कार्य हुए। त्रीभुवन विश्वविद्यालय, काठमांडू में ‘हिन्दी-विभाग’ की स्थापना का सारा श्रेय भी शरण जी को जाता है। वे ‘नेपाली साहित्य का इतिहास’ लेखन तथा नेपाली कृतियों के हिन्दी अनुवाद के लिए भी सम्मान पूर्वक स्मरण किए जाते हैं।
यह बातें सोमवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती एवं सम्मान-समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, शरण जी की ख्याति उनके द्वारा प्रणीत आलोचना-ग्रंथ ‘हिन्दी काव्य में छायावाद’ से हुई। उन्होंने साहित्य की प्रायः सभी विधाओं; कविता, कहानी, संस्मरण, उपन्यास, ललित निबंध, भेंट-वार्ता तथा शोध-निबंध में भी अधिकार पूर्वक लिखा। एक सजग कवि के रूप में उन्होंने पीड़ितों को स्वर दिए तथा शोषण तथा पाखंड के विरुद्ध कविता को हथियार बनाया।
समारोह का उद्घाटन पूर्व केंद्रीय मंत्री और दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डा सी पी ठाकुर ने किया। इस अवसर पर डा ठाकुरने, नेपाल हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष और हिन्दी और नेपाली के वरिष्ठ साहित्यकार डा राम दयाल ‘राकेश’ को, इस वर्ष का ‘डा दीनानाथ शरण स्मृति सम्मान’ से विभूषित किया। सम्मान-स्वरूप उन्हें ग्यारह हज़ार रूपए की सम्मान-राशि सहित वंदन-वस्त्र, स्मृति-चिन्ह और सम्मान-पत्र प्रदान किया गया। डा शरण की विदुषी पत्नी और लेखिका शैलजा जयमाला के नाम से इस अवसर पर प्रतिवर्ष दिया जाने वाला’शैलजा जयमाला स्मृति-सम्मान’ नेपाल की ही कवयित्री संगीता ठाकुर को प्रदान किया गया। उन्हें पाँच हज़ार एक सौ रूपए की सम्मान राशि के साथ वंदन-वस्त्र, प्रशस्ति-पत्र तथा पुष्प-हार प्रदान कर सम्मानित किया।
त्रिभुवन विश्वविद्यालय, काठमांडू में हिन्दी की प्राध्यापिका डा पूनम झा को भी अंग-वस्त्रम से अलंकृत किया गया। डा झा, शरण जी की पुस्तक ‘शैला के प्रति’ का नेपाली अनुवाद कर रही हैं। इस अवसर पर डा शरण की उसी पुस्तक का रूसी और अर्मेनियायी में हुए अनुवादों ‘ओ शैला’ का लोकार्पण भी किया गया। आर्मेनिया में इसका अनुवाद आवाक एफ़रेम्यान ने तथा रूसी में डा संतोष कुमारी अरोड़ा ने किया है।
इस अवसर पर अपने उद्गार में डा राकेश ने कहा कि भारत एक महान देश है। जो आभा में रत है वही भारत है। इस तरह के आयोजनों से भारत और नेपाल के बीच सामाजिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक संबंध और प्रगाढ़ होगा। नेपाल हिन्दी साहित्य सम्मेलन भी, काठमांडू में शीघ्र ही एक भव्य आयोजन करेगा, जिसमें भारत के साहित्याकारों का सम्मान किया जाएगा। उन्होंने कहा कि डा शरण जब, हिन्दी के प्रचार के लिए नेपाल आए, तभी से उनका निकट का सान्निध्य रहा। डा शरण ने ‘नेपाली साहित्य का इतिहास’ लिख कर नेपाल की भी बड़ी सेवा की। अनेक नेपाली साहित्य का हिन्दी में अनुवाद कर उन्होंने अविस्मरणीय कार्य किया है, जिससे नेपाल उनका सदैव ऋणी रहेगा।
समारोह के मुख्य अतिथि और पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि भारत और नेपाल के संबंधों में विस्तार तथा एकता के लिए साहित्य का सबसे बड़ा योगदान हो सकता है। नेपाल के एक वरिष्ठ साहित्यकार का सम्मान कर साहित्य सम्मेलन ने इस दिशा में एक बड़ा योगदान किया है।
दूरदर्शन बिहार के कार्यक्रम प्रमुख डा राज कुमार नाहर, इसी आयोजन के लिए अमेरिका से आए डा शरण के पुत्र कौशल अजिताभ, सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष जियालाल आर्य, डा शंकर प्रसाद, कवि बच्चा ठाकुर, आरपी घायल, डा पूनम आनन्द, डा शलिनी पाण्डेय, विभा रानी श्रीवास्तव, सागरिका राय, डौली बागड़िया, चंदा मिश्र, पूनम सिन्हा श्रेयसी, तारा देवी, डा मेहता नगेंद्र सिंह, डा सुषमा कुमारी, श्याम बिहारी प्रभाकर, ई अशोक कुमार, ब्रह्मानन्द पाण्डेय, सदानंद प्रसाद, कमल नयन श्रीवास्तव आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। रोम में भारतीय दूतावास में द्वितीय सचिव और डा शरण के ज्येष्ठ पुत्र शम्भु अमिताभ भी अन्तर्जाल के माध्यम से जुड़े रहे। मंच का संचालन कुमार अनुपम ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।
मशहूर शायरा तलत परवीन, प्रो सुशील कुमार झा, श्रीकांत व्यास, पंकज प्रियम, बिन्देश्वर प्रसाद गुप्ता, सुजाता मिश्र, अभय सिन्हा, राजेश राज, डा नीतू चौहान, अनिल बागड़िया, राम प्रसाद ठाकुर, डा विजय कुमार दिवाकर, सरिता कुमारी, कन्हैया किशोर, अमीर नाथ शर्मा, समेत बड़ी संख्या में, प्रबुद्धजन उपस्थित थे।

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