के. विक्रम राव.
रामजन्मभूमि विवाद के पांच सदियों बाद हल हो जाने की तुलना में काशी ज्ञानवापी मस्जिद का समाधान भी अब सुगमता से होता दिख रहा है। शायद इसीलिये कि सभी भक्त अपने इष्टदेव मर्यादा पुरुषोत्तम रामचन्द्र की भांति सौहार्द्रता, सहनशीलता तथा सौम्यता के दायरे में ही रहे। मगर भोले शंकर तो औघड़ हैं, प्रगल्भ हैं, प्रचण्ड हैं। त्रिनेत्रधारी, त्रिशुल लहराते। आदि हैं, अनंत हैं। कौन टकरा सकता है उनसे ? संसद और सुप्रीम कोर्ट भी हिमायती न रहे, फिर भी कोई अड़चन नहीं पड़ेगी। कोर्ट ने पूछा था कि क्या मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनी?
क्योंकि अयोध्या पर तो कहा गया था कि बाबर ने खाली भूमि पर अपने हमराहों हेतु नमाज अता करने की ईमारत बनवायी थी। न किसी मंदिर पर अतिक्रमण था, न हमला। कितना बड़ा फर्जीवाड़ा था ? मगर ज्ञानवापी पर कल (17 मई 2021) फाजिले बरेल्वी (1892) आला हजरत अहमद रजा खां रहमुतल्लाह अलय के वंशज इत्तिहादे मिल्लत कांउसिल के मुखिया जनाब तौकी रजा साहब ने फरमा दिया कि : ”जहां—जहां हिन्दुओं ने इस्लाम स्वीकारा वहां—वहां मंदिर तोड़कर मस्जिद बनायी गयी।” इसीलिये वे नहीं चाहते कि मुसलमान किसी मुकदमें में पड़े। (टाइम्स आफ इंडिया, बुधवार, 18 मई 2022, लखनऊ, पृष्ठ—5, कालम 4—6)। यूं सिविल जज (सीनियर डिविजन) आदरणीय आशुतोष तिवारी (वाराणसी) ने आर्कियोलाजिक सर्व आफ इंडिया के महानिदेशक को सर्वेक्षण का आदेश दे दिया।
लेखक के. विक्रम राव देश के जानेमाने पत्रकार व पत्रकार संगठन IFWJ के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.
याचिकाकर्ताओं के वकील मदन मोहन यादव ने अगस्त 2021 में ही मां श्रृंगार गौरी की आरती, पूजा और दैनिक दर्शन की मांग की थी। वकील यादव के अनुरोध पर वरिष्ठ न्यायाधीश रवि कुमार दिवाकर ने 26 अप्रैल 2022 को ज्ञानवापी की वीडियोग्राफी का निर्देश दिया था। इस पर आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एएसआई द्वारा सर्वे का जोरदार विरोध किया था। उनकी चेतावनी थी कि सर्वे अवैध कृत्य है (9 अप्रैल 2022)। बोर्ड का दावा था कि धर्मस्थल पर 1991 (नरसिम्हा राव वाली कांग्रेस सरकार द्वारा) संसदीय कानून बनाने के बाद ज्ञानवापी का कोई मसला नहीं रहा।
मस्जिदवाले इलाहाबाद हाई कोर्ट गये थे, इस मांग के साथ, कि ज्ञानवापी मंस्जिद का कोई विवाद नहीं रहा, अत: यह सर्वे अवैध है। इस पर 29 मार्च 2022 से उच्च न्यायालय ने लगातार सुनवाई की। न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने अंजुमन इंतजामिया मस्जिद (वाराणसी) की ओर से दायर याचिका को सुना। सुनवाई के दौरान विश्वेश्वर नाथ मंदिर के अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी ने अतिरिक्त लिखित बहस दाखिल की और कहा कि याची ने सीपीसी के आदेश 7, नियम 11डी के तहत वाद की पोषणीयता पर आपत्ति अर्जी दाखिल की थी। लेकिन उस पर बल न देकर जवाबी हलफनामा दाखिल किया है। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनकर वाद बिंदु तय किये।
उधर उच्चतम न्यायालय ने मुस्लिम पक्ष की अपील पर वाराणसी स्थित ज्ञानवापी—श्रृंगार गौरी परिसर में सर्वे रोकने की मांग संबंधी याचिका पर तत्काल आदेश देने से इंकार कर दिया। अदालत ने कहा कि वह अभी कोई आदेश पारित नहीं कर सकती। हालांकि, वह याचिका सूचीबद्ध करने को लेकर विचार करने पर राजी हो गया।
मामले में मुस्लिम पक्ष की पैरवी कर रहे वकील हुजेफा अहमदी ने मुख्य न्यायाधीश एनवी रमणा की अगुवाईवाली पीठ को बताया कि वाराणसी—स्थित परिसर में कराए जा रहे सर्वेक्षण के खिलाफ अर्जी दायर की गयी है। मगर तत्काल सुनवाई करने की जरुरत है। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ”मुझे विचार करने दीजिए। यथास्थिति रखने का आदेश दिया जाये” वकील ने कहा, यह (ज्ञानवापी) पुरातन काल से मस्जिद है। यह (सर्वेक्षण) उपासना स्थल अधिनियम 1991 के तहत स्पष्ट रुप से प्रतिबंधित है। सर्वे करने का निर्देश पारित किया गया है, अत: यथास्थिति बनाये रखने का आदेश चाहिये। मुख्य न्यायाधीश रमणा ने कहा कि ”मुझे कोई जानकारी नहीं है। मैं ऐसा आदेश कैसे पारित कर सकता हूं ? मैं पढूंगा। मुझे विचार करने दीजिए।” इस बीच 14 मई से सर्वे तथा वीडियोग्राफी शुरु हो गयी।
अब गौर करें इस भय को जिसे कई कथित सेक्युलर हिन्दुओं तथा मुसलमानों ने सर्जाया है। यह बिजूका माफिक है जिससे किसान पक्षियों को डराते हैं। इसे अवधी में ऊढ़ तथा मैथिल में धूवा कहते हैं। यह 18 सितम्बर 1991 का पूजास्थल (विशेष प्रावधान) नियम है। (एक्ट का नम्बर 42)। इसे कांग्रेसी पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने बहुमत से पारित कराया था। मकसद था भारतीय मुसलमानों का ढांढस बंधाने हेतु कि अयोध्या आखिरी है। इसके बाद अब बस। इस तेलुगुभाषी नियोगी विप्र ने सोचा होगा कि ऐतिहासिक अत्याचारों को सुधारने की राष्ट्रवादी प्रक्रिया में विराम लग जायेगा। इसका तब लोकसभा में 120 भाजपायी सदस्यों ने विरोध किया था। अब तो वे संख्या में 303 हैं। राज्यसभा में भी भाजपा का बहुमत है। नरेन्द्र मोदी को जनादेश मिला है कि वह इन जंगली और असभ्य तुर्की, अरब और मुगल लुटेरों द्वारा सैन्यबल के बूते बहुसंख्यकों पर ढाये जुल्मों का प्रतिकार करें। राष्ट्रवादी आकांक्षा है कि नरेन्द्र मोदी अब अटल बिहारी वाजपेयी की लिबलिब नीति की फोटोकॉपी नहीं बनेंगे। इतिहास की मरम्मत करेंगे।
इस 1991 के कानून को खत्म कर सनातनी आस्था—स्थलों पर से अतिक्रमण हटवाया जाये। यूं भी अतिक्रमण पर बुलडोजर बाबा कारगर कदम उठा रहें हैं। गोरी—गजनवी, बाबर—औरंगजेब तथा उनके वंशजों अंसारी, अतीक आदि द्वारा अतिक्रमण नेस्तनाबूद हो ? यही लोकास्था का तकाजा है।