बिहार में इनदिनों एक से एक सपने दिखाए जा रहे हैं.सपने दिखाकर मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की जा रही है.कोई 1.25 लाख करोड़ का विशेष पैकेज दिखा रहे हैं तो कोई 2.70 लाख करोड़ की योजनाओं का विकास सूत्र सामने रख रहे हैं.चुनाव करीब है तो हसीन सपने दिखाए जाऐंगे ही.प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक वर्ष बाद बिहार का ख्याल आया है तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को दस वर्षों तक शासन करने के बाद बिहार का दर्द महसूस हो रहा है.दरअसल, चुनाव और विकास की पंचवर्षीय योजनाओं के समान ये सपने भी पंचवर्षीय हैं.ठीक चुनाव के पहले बड़े-बड़े वादों के सुनहरे सपने दिखाए जाते हैं.चुनाव के बाद इरादे बदल जाते हैं.सपने टूट जाते हैं.देखते देखते पांच वर्ष निकल जाते हैं.फिर चुनाव का मौसम आते नए नए सपनों की दुनिया में जनता को सैर कराना शुरू हो जाता है.
1972 चुनाव में इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया था.43 वर्षों बाद गरीबी आज भी बरकरार है.1974 में जेपी आंदोलन में संपूर्ण क्रांति का नारा दिया गया था.इसी नारे के बलबूते 1977 के चुनाव में जपा की लहर चली और कांग्रेस का सफाया हो गया था.लेकिन संपूर्ण क्रांति के सपने अधूरे रह गए.1989 में वी.पी.सिंह ने देश से भ्रष्टाचार मिटाने का नारा दिया था.इस चुनाव में भ्रष्टाचारमुक्त भारत के सपने का जादू मतदाताओं पर तो चल गया लेकिन देश में भ्रष्टाचार में बढोतरी ही हो गई.एक के बाद एक भ्रष्टाचार का नया कीर्तिमान स्थापित हुआ.1995 में लालू प्रसाद को सामाजिक न्याय और सांप्रदायिक सौहार्द के नाम पर वोट मिला.लेकिन लालू-राबड़ी सरकार के दौरान समाज को तोड़कर रख दिया गया.आतंक व जंगल राज से त्रस्त जनता विकास भूल गई और विधि-व्यवस्था उनकी प्राथमिकता सूची में आ गई.2005 में नीतीश कुमार ने इसका लाभ उठाया.जंगल राज से बिहार को मुक्त करने का सपना दिखाया.विकास के नए नए मॉडल दिखाए गए.फिर 2010 चुनाव में पूर्व भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध का ऐलान किया गया.बाद में सपने तोड़ दिए गए.जंगल राज के खिलाफ मिले जनादेश का अपमान तो किया ही गया भ्रष्टाचारमुक्त बिहार भी नहीं बनाया जा सका.एक बार फिर सपने बेचे जा रहे हैं.एक-एक वोट के बदले कई-कई सुनहरे सपने. सपनों के इन सौदागरों को जनता एक बार फिर अपनी तराजू पर तौलेगी.