इस्तीफा प्रकरण और नीतीश सरकार का भविष्य

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प्रमोद दत्त.पटना.बिहार में नौकरशाही से नाराज समाज कल्याण मंत्री मदन सहनी के दिल्ली रवाना होने से राजनीतिक गलियारे में  नीतीश सरकार के भविष्य को लेकर चर्चा शुरू हो गई है।अपने विभाग के प्रधान सचिव से नाराज मंत्री ने इस्तीफे की घोषणा की थी और यह मान रहे थे कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बुलाकर बातचीत कर हल निकालेंगे।जदयू के कुछ नेताओं ने मदन सहनी से जरूर बात की।लेकिन जब सीएम का बुलावा नहीं आया तो रविवार को वे अचानक दिल्ली रवाना हो गए।

इस्तीफे की सार्वजनिक घोषणा कर सरकार की फजीहत कराने वाले मंत्री को सीएम ने भाव नहीं दिया।हालां कि यह माना जा रहा था कि संख्याबल में कमजोर नीतीश कुमार कोई रिस्क न लेकर मंत्री का मान मनौव्वल करेंगें लेकिन ऐसा नहीं हुआ।और इस्तीफे के ऐलान के 52 घंटे बाद मंत्री मदन सहनी दिल्ली कूच कर गए हैं।

सूत्रों के अनुसार दिल्ली में मदन सहनी राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद से मिलेंगे।वैसे लालू प्रसाद नीतीश सरकार को अस्थिर करने का मौका ढूंढ ही रहे हैं।हम और वीआईपी जैसे एनडीए के छोटे पार्टनर पर पहले से नजर बनाए हुए हैं।इधर तेजस्वी यादव लगातार नीतीश सरकार के गिरने की बात दोहरा रहे हैं।

मदन सहनी की नाराजगी की असल वजह समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव अतुल कुमार हैं। सहनी की मानें तो अतुल कुमार ने ट्रांसफर-पोस्टिंग की उस फाइल को रोक रखा है जो उन्होंने फाइनल कर जारी करने के लिए प्रधान सचिव को दी थी। सहनी का आरोप है कि सरकार में अफसर, मंत्रियों को काम नहीं करने दे रहे हैं और मनमानी कर रहे हैं। इसी को लेकर मदन सहनी ने इस्तीफे का ऐलान किया था।

इस्तीफे के बाद मदन सहनी और भाजपा के मंत्री जीवेश मिश्रा ने जब कहा कि श्री सहनी अधिकारियों से तालमेल नहीं बिठा पा रहे हैं तो गुस्से में सहनी ने उन्हें दलाल तक कह दिया और सीमा में रहने की सलाह दे दी।इस्तीफा प्रकरण पर नीतीश मंत्रिमंडल के दो मंत्रियों के बीच वाकयुदध् को प्रेक्षक कमजोर नेतृत्व का परिणाम मान रहे हैं।और इस कमजोरी को सरकार के भविष्य से जोड़ कर देखा जा रहा है।

अब इस इस्तीफा प्रकरण के अंत का इंतजार है।जोड़-तोड़ में माहिर लालू प्रसाद सक्रिय होकर मदन सहनी के बहाने मुकेश सहनी और जीतनराम मांझी को पटाने में कामयाब हुए तो नीतीश सरकार संकट में पड़ सकती है।राजनीतिक सूत्रों की माने तो हम और वीआईपी को उपमुख्यमंत्री बनाने का प्रलोभन दिया जा सकता है।इसके साथ साथ नीतीश कुमार के साथ मजबूती के साथ खड़े अतिपिछड़ों को और लोजपा टूट प्रकरण पर दलितों को भड़काया जा सकता है।जदयू और भाजपा को भी लालू के इस दावपेंच की आशंका है इसलिए जदयू की नजर कांग्रेस पर टिकी है।ऐसी स्थिति आने पर कांग्रेस में टूट ही नीतीश सरकार को बचाने का एकमात्र विकल्प बचता है।

 

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