इशान दत्त.
पटना.लोजपा में टूट के बाद अलग थलग पड़े चिराग पासवान का अगला कदम क्या होगा? यह सवाल राजनीतिक गलियारे में चर्चा का विषय बन गया है।इसे लेकर विभिन्न तरह के कयास लगाए जा रहे हैं।लोजपा के नए नेता बने पशुपति पारस ने साफ कह दिया है कि वह एनडीए के साथ हैं और साथ रहेंगे। हालांकि चिराग पासवान भी लगातार अपने आप को भाजपा के हनुमान के तौर पर पेश करते रहे हैं। वे भी एनडीए के साथ रहने का लगातार दावा करते रहे है।लेकिन परिस्थितियां बदली है। लोकसभा में लोजपा संसदीय दल के नेता के तौर पर पशुपति पारस को मान्यता दे दी गई है और श्री पारस को पार्टी अध्यक्ष मानकर चुनाव आयोग को लिखित सूचना दी जा रही है।
लोजपा के नए नेतृत्व के बाद बिहार से लेकर केंद्र तक की राजनीति में बदलाव आना स्वाभाविक है। लोजपा के छ: सांसदों में पांच का समर्थन पारस को है।लोजपा के नए नेता पारस ने स्पष्ट किया है कि वो एनडीए के साथ हैं। ऐसे में इस हफ्ते होने वाले मंत्रिमंडल विस्तार में उनको जगह मिल सकती है।चर्चा है कि पशुपति पारस को कैबिनेट मंत्री या फिर स्वतंत्र राज्य मंत्री का दर्जा दिया जा सकता है। वहीं पशुपति पारस अब लोजपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बने हैं, तो वह अपनी पार्टी को बिहार में स्टैब्लिश करेंगे या फिर नई रणनीति के तहत अपनी पार्टी का विलय जदयू में कर देंगे।
इस पूरे प्रकरण में अलग-थलग पड़े चिराग पासवान के लिए बहुत विकल्प नहीं हैं। दरअसल, चिराग पासवान की विधानसभा में जो भूमिका थी, उससे पार्टी के कई वरिष्ठ नेता नाराज चल रहे थे। उनके चाचा पशुपति पारस ने पूरे विधानसभा में कहीं भी खुलकर चुनाव प्रचार नहीं किया। वहीं बाहुबली सूरज भान सिंह, काली पांडे, सुनील पांडे, हुलास पांडे सहित कई नेता पार्टी से तितर-बितर हो गए। चिराग पासवान ने कभी भी उन्हें संगठित करने की कोशिश नहीं की। रामविलास पासवान के करीबी रहे काली पांडे ने कांग्रेस से चुनाव लड़ा। तो सुनील पांडे निर्दलीय होकर चुनाव हारे। 135 सीटों पर चुनाव लड़ने वाले चिराग पासवान ने सपने में भी यह नहीं सोचा कि उनकी पार्टी एक सीट पर सिमट जाएगी।
विधानसभा चुनाव के दौरान चिराग पासवान ने अकेले नीतीश कुमार पर कई हमले किए, यहां तक कि चिराग पासवान ने यहां तक कह दिया कि यदि उनकी सरकार बनेगी तो नीतीश कुमार जेल में होंगे। चिराग पासवान के इस पूरे प्रकरण में भाजपा ने न खुलकर नितीश कुमार का साथ दिया और ना ही चिराग पासवान का। विधानसभा चुनाव के दौरान चिराग पासवान यह भी दोहराते रहे वह नरेंद्र मोदी के हनुमान हैं। उनकी पूरी आस्था भाजपा के साथ है। बिहार विधानसभा में उन्हें जीत मिलती है तो वह भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाएंगे। लेकिन उनकी पूरी रणनीति फेल हो गई।
प्रेक्षकों का मानना है कि अब चिराग पासवान के लिए बहुत ज्यादा विकल्प है। अगर भाजपा उनका साथ देती है तो जदयू और लोजपा का नया नेतृत्व भाजपा से नाराज हो सकता है।लेकिन पारस केन्द्र में मंत्री बना दिए जाते हैं तो भाजपा से नाराज होना उनके लिए मुश्किल हो सकता है।इसलिए ज्यादा संभावना यह बनती है कि लोजपा का अस्तित्व बनाए रखते हुए एनडीए का हिस्सा बने रहें और भाजपा व जदयू से दोस्ताना रिश्ता बनाए रखें। उधर, चिराग पासवान अगले तीन सालों तक जमुई के सांसद तो रहेंगे ही और फिर उनके चाचा और लोजपा के नए नेता पारस ने कहा भी है कि चाहे तो चिराग पासवान लोतपा में बने रह सकते हैं।वैसे कांग्रेस और राजद ने चिराग पासवान को ऑफर दिया है।लेकिन अधिक संभावना है कि चिराग लोजपा में बने रहेंगे या फिर भाजपा में शामिल होने की जुगत में लग जाऐंगे।क्योंकि पिता के नेतृत्व में काम करने वाले चिराग को चाचा के नेतृत्व में काम करने से परहेज नहीं हो सकता है।