कोरोनाकाल में कहां गायब है बिहारी फर्स्ट वाली लोजपा ?

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इशान दत्त.पटना. ”बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट“ का नारा देने वाले लोजपा नेता इस कोरोना काल में कहां गायब हैं?ऐसे सवाल बिहार के उन 6 लोकसभा क्षेत्र के लोग उठा रहे हैं जिन्होंने अपना सांसद लोजपा का चुना और अभी कोरोना महामारी से संघर्ष कर रहे हैं.लोजपा की राजनीति बिहार पर टिकी है इसके बावजूद लोजपा की चुप्पी के क्या मायने हैं?

दरअसल,रामविलास पासवान की मृत्यु के साथ ही पार्टी कमजोर हो गई.बाकी कसर पिछले विधानसभा चुनाव में अलग राह पकड़ने के चिराग पासवान ने निर्णय ने पूरी कर दी.नीतीश कुमार का विरोध और नरेन्द्र मोदी का समर्थन कर उन्होंने दो नावों की सवारी की और चुनाव में वोटकटवा बनकर रह गए.मुश्किल से एक विधायक जीते भी तो उन्होंने जदयू का दामन थाम विधानसभा में लोजपा का अस्तित्व समाप्त कर दिया.उससे पूर्व विधान परिषद के इकलौते सदस्य भी जदयू में शामिल होकर परिषद में लोजपा का अस्तित्व समाप्त कर चुके थे.रामविलास पासवान की मृत्यु को भी चिराग पासवान सहानुभूति वोट के रूप में लाभ नहीं उठा पाए.

विधान मंडल में अस्तित्वविहीन हो चुके लोजपा के 6 सांसद हैं.जमुई से चिराग पासवान,हाजीपुर से पशुपति कुमार पारस,समस्तीपुर से प्रिंस राज,वैशाली से वीणा देवी,खगड़िया से महबूब अली कैसर और नवादा से चंदन सिंह लोजपा के सांसद हैं.कोरोना काल में निष्क्रिय होने के कारण इन 6 लोकसभा क्षेत्र के लोग अपने अपने सांसदों से नाराज बताए जाते हैं.

लोजपा सूत्र चिराग पासवान के लगातार बीमार होने की बात करते हैं.यह मान लिया जाए कि चिराग अस्वस्थ्य हैं तो शेष सांसद और पार्टी कार्यकर्ता क्या कर रहे हैं.दरअसल पार्टी के अंदर नीतिगत मामले में मतभेद है.एक खेमा जहां चिराग के हर निर्णय के साथ रहा तो दूसरा खेमा विधानसभा चुनाव में नीतीश-विरोध और एनडीए से अलग-थलग पड़ने की चिराग-नीति के विरोधी हो गए हैं.पार्टी के अंदर कार्यकर्ताओं का एक खेमा ऐसा भी है जो रामविलास पासवान के प्रति समर्पित रहा है लेकिन अब चिराग पासवान की नेतृत्व क्षमता का आकलन कर रहा है.उनके संतोष को पार्टी नेतृत्व द्वारा दूर नहीं किया गया तो उनमें बिखराव आ सकता है.

प्रेक्षकों का मानना है कि कोरोना की महामारी में लोजपा का बिहारी फर्स्ट… नारे का खोखलापन सामने आ गया है और पार्टी के स्तर पर जनसेवा से संबंधित ठोस कदम नहीं उठाए गए तो बिहार में पार्टी का बचाखुचा जनाधार भी समाप्त हो जाएगा.बिहार की राजनीति में सुप्रीमो वाली पार्टी- हम(जीतन राम मांझी) और वीआईपी (मुकेश सहनी) ने एक नाव की सवारी कर अपनी पार्टी को बचा रखा है वहीं थकहार कर रालोसपा (उपेन्द्र कुशवाहा) ने जदयू में पार्टी का विलय कर एक रास्ता तय कर लिया है.लेकिन लोजपा अभी भी अपने लिए रास्ता तय नहीं कर अपनी मुश्किलें बढा रही है.

 

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