साल भर होती है सरस्वती की पूजा,यहां कालीदास ने भी की थी पूजा

1268
0
SHARE

इशान दत्त.

उत्तर भारत में बसंत पंचमी का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है.बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है.ऐसा माना गया हैं कि आज के दिन ही मां सरस्वती का जन्म  हुआ था. जिसके कारण आज का दिन कला और संगीत की देवी मां सरस्वती को समर्पित होता है. बसंत पंचमी के दिन लोग अपने-अपने घरों में माता सरस्वती की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना करते हैं.

सरस्वती जयंती यानी की बसंत पंचमी के अवसर पर हम आपको ऐसी जगह के बारे में बता रहे हैं, जहां मां सरस्वती साल भर पूजी जाती हैं। कटिहार जिले के बारसोई प्रखंड स्थित बेलवा गांव के प्राचीन सरस्वती स्थान मंदिर में पूरे साल मां सरस्वती की पूजा  की जाती है। यह मंदिर बारसोई अनुमंडल मुख्यालय से लगभग 11 किलोमीटर दूर बेलवा गांव में है।

बिहार व पश्चिम बंगाल की सीमा पर स्थित सीमांचल के इस इकलौते सरस्वती मंदिर के प्रति बिहार ही नहीं पश्चिम बंगाल के लोगों की असीम आस्था है। इस मंदिर के बारे में लोगो का यह भी माना हैं की यहां कालीदास ने भी पूजा की थी।

इस प्राचीन मंदिर से बहुत से लोगों की भक्ति भावना जुड़ी हुई है। लोग यहां आकर नियमित पूजा-अर्चना करते हैं। गांव  के लोग की आराध्य मां सरस्वती ही हैं। इस प्राचीन सरस्वती स्थान में स्थापित मूर्ति महाकाली, महागौरी और महासरस्वती का संयुक्त रुप है। यहां के लोग इसे नील सरस्वती के नाम से जानते हैं ।

लोगों का माना हैं की ज्ञान ही समृद्धि का सबसे बड़ा स्रोत है।मंदिर के पुजारी के अनुसार  बेलवा से चार किमी दूर पर वाड़ी हुसैनपुर स्थित है, जहां अब भी राजघरानों के अवशेष हैं। माना  जाता हैं कि महाकवि कालीदास की ससुराल यहीं थी।कालीदास ने अपनी पत्नी से डाँट खाने के बाद इसी सरस्वती स्थान में आकर पूजा  की थी। इसका इतिहास कहीं नहीं है कि उन्हें कहां ज्ञान प्राप्त हुआ। ऐसे में बेलवा में उनकी सिद्धि की बात को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। कहा जाता है कि महाकवि कालीदास उज्जैन में जाकर प्रसिद्ध हुए थे।

पहले इस मंदिर में तीनों देवियों के संयुक्त रूप के कारण बलि देने की प्रथा भी थी। लेकिन, सात्विक प्रवृत्ति की देवी मानी जाने के कारण मां सरस्वती स्थान में सन 1995 से बलि पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है।

इस मंदिर से जुडी एक रोचक बात यह भी हैं की उसमें विराजमान प्राचीन व बेशकीमती तीनों मूर्तियां को 1983 में चोरों ने चुरा लिए थे। इससे मंदिर प्रबंधन समिति की ओर से उसी शक्ल की दूसरी मूर्तियां वहां स्थापित की गई हैं। मंदिर में मूर्तियां बदले जाने के बाद भी लोगों की आस्था में कोई कमी नहीं आई। आज भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां की पूजा करने मंदिर आते हैं। उनमें मुख्य रूप से बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड व नेपाल के श्रद्धालु शामिल हैं।

बिहार के उप मुख्यमंत्री तार किशोर यादव ने इस मंदिर के लिए यह भी कहा कि बेलवा गांव स्थित सरस्वती मंदिर कटिहार ही नहीं पूरे बिहार के लिए एक अनूठा धार्मिक व सांस्कृतिक केंद्र है। इसके विकास के लिए आवश्यक पहल की जाएगी।

LEAVE A REPLY