जानिए…क्यों मनाते हैं मकर संक्राति ?

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संवाददाता.पटना.मकर संक्रांति भारत में प्रसिद्ध त्योहारों में से एक है जो लगभग हर हिंदू उत्साह  के साथ मनाता है। संक्रांति आमतौर पर हर महीने की 13, 14 या 15 तारीख को होती है जिसमे सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रांति को भारत में आमतौर पर  पतंगों का त्यौहार और  फसलों का त्यौहार भी कहा जाता है और इसे विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है.इस त्योहार का कृषि और कटाई से गहरा संबंध है। इसलिए, यह किसानों, खाद्य पदार्थों और अनाजों से जुड़ा है।

लेकिन क्या आप जानते हैं  यह त्योहार पिता और पुत्र के बीच आपसी संबंध को भी दर्शाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि सूर्य (सूर्य देव) इस दिन अपने पुत्र शनि देव (शनि) के यहां यात्रा करते हैं जो हिंदू और पश्चिमी ज्योतिष के अनुसार मकर राशि (मकर राशि) के स्वामी हैं।

पुराण के एक कथा के अनुसार, शनिदेव अपने पिता सूर्यदेव को बिलकुल पसंद नहीं करते थे। एक दिन सूर्यदेव ने शनिदेव की मां छाया को उनकी दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेदभाव करते देख लिया था। इससे सूर्यदेव बेहद क्रोधित हो गए और उन्होंने शनिदेव को उनकी माता छाया से अलग कर दिया था। जिस वजह से छाया बेहद क्रोधित हो जाती और क्रोध में आकर सूर्यदेव को कुष्ठ रोग का श्राप दे दिया। छाया के श्राप की वजह से सूर्यदेव कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गए और इस बात से क्रोधित सूर्यदेव ने शनिदेव का घर जला दिया।

घर जलने के वजह से शनिदेव और उनकी माता को काफी कष्टों का सामना करना पड़ा। फिर सूर्यदेव को उनकी दूसरी पत्नी के पुत्र यमराज ने काफी समझाया था कि वो माता छाया और शनि के साथ ऐसा व्यवहार न करें। उनके समझाने के बाद सूर्यदेव खुद शनिदेव के घर पहुंचे। शनिदेव कुंभ में रहते थे। शनिदेव का पूरा घर जल चुका था और उनके पास केवल काले तिल ही थे। शनिदेव ने उन काले तिलों से ही अपने पिता सूर्यदेव की पूजा की। तब सूर्यदेव ने प्रसन्न होकर शनिदेव को आशीर्वाद दिया कि मकर राशि जो कि शनि का दूसरा घर है, उनके आने से धन-धान्य हो जाएगा। यही वजह है की शनिदेव को तिल बेहद प्रिय हैं  और मकर संक्रांति में काले तिल का बहुत महत्त्व हैं।

इसके अलावा मकर संक्रांति के दिन से जुडी और कई सारे रोचक घटनाये हैं .आज के ही दिन, गंगा लाने के बाद भागीरथ ने अपने पूर्वजों को श्राप से मुक्त किया। पश्चिम बंगाल में गंगा सागर मेला के रूप में इस दिन बड़े उत्सव मनाए जाते हैं। ऋषि कपिल आश्रम इस शुभ दिन पर बहुत से पर्यटकों को आकर्षित करता है। इस दिन भीष्म ने इस धरती को छोड़ दिया। उन्हें इक्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था और उन्होंने पृथ्वी से प्रस्थान करने के लिए इस शुभ दिन को चुना।इसके अलावा, एक और मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन भगवान विष्णु ने राक्षसों पर विजय प्राप्त की थी। पवित्र कथा अनुसार इस दिन भगवान विष्णु ने राक्षसों का वध किया और मंदरा पार्वत के नीचे दफन किया जो अन्याय पर न्याय की जीत का प्रतीक है।

 

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