प्रमोद दत्त.
पटना.क्या बिहार विधान सभा के चुनाव में “ राष्ट्रवाद “ चुनावी मुद्दा बन सकता है? यह सवाल इसलिए उठाए जा रहे हैं क्योंकि कम्युनिस्ट पार्टी को चीन समर्थक बता कर महागठबंधन में उसे शामिल करने पर प्रमुख विपक्ष राजद की घेराबंदी की जा रही है.चीन का मुद्दा गरमा कर कम्युनिस्ट पार्टी के बहाने राजद पर तीर चलाए जा रहे हैं.
भाजपा के वरिष्ठ नेता व राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने सोमवार को ट्वीट कर यह मुद्दा उठा दिया है.महागठबंधन को सिद्धांतहीन जोड़-तोड़ बताते हुए उन्होंने लिखा- जिस राजद ने वामदलों के लिए एक भी संसदीय सीट नहीं छोड़ी थी उसे विकास की राजनीति के तेज प्रवाह में बचे रहने के लिए चीन समर्थक कम्युनिस्टों का भी हाथ थामना पड़ रहा है.उन्होंने आगे लिखा है कि चार साल पहले जेएनयू में “भारत तेरे टुकड़े होंगे “ जैसा देश-विरोधी नारे लगवा रहे थे वे अब लालू प्रसाद की पार्टी के लिए वोट मांगते दिखेंगें.
श्री मोदी के इस ट्वीट ने बिहार में सियासी पारा को चढा दिया है.सफाई में इसका स्पष्ट जवाब न राजद के पास है और न ही कम्युनिस्ट पार्टी के नेता साफ-साफ कुछ कह पा रहे हैं.ऐसी स्थिति में प्रेक्षकों का मानना है कि यह मुद्दा चुनाव प्रचार अभियान के दौरान बार बार उठाया जा सकता है जिससे बिहार चुनाव में भी राष्ट्रवाद प्रमुख मुद्दा बन जाए.जदयू नीतीश कुमार का कुशल नेतृत्व और “15 साल बनाम 15 साल” को मुद्दा बना चुकी है.भाजपा ने चीन को लेकर राष्ट्रवाद मुद्दा बनाया तो इससे जदयू भी परहेज नहीं करेगी.जैसा कि पहले धारा 370 और राम मंदिर को लेकर पहले परहेज करती रही है.
वैसे भी बिहार में कम्युनिस्ट पार्टियों का जनाधार लगातार गिरते जा रहा है.1972 में सबसे अधिक 35 सीटें लाकर भाकपा प्रमुख विपक्ष बनी थी जो 2015 में शून्य पर आऊट हो गई.माकपा का भी स्कोर 6 से अधिक कभी नहीं गया.1980,1990 और 1995 में माकपा को सर्वाधिक 6-6 सीटें मिली.इसी प्रकार भाकपा(माले) भी कभी दहाई अंक तक नहीं पहुंची.इसे सर्वाधिक 6-6 सीटें 1995 और 2000 में मिली.लेकिन विगत 2015 चुनाव में जहां भाकपा व माकपा की झोली खाली रह गई वहीं भाकपा(माले) ने 3 सीटें जीतकर अपनी उपस्थिति को बनाए रखा.2015 के चुनाव में भाकपा के 98 उम्मीदवारों को कुल 1.36 प्रतिशत,माकपा के 43 उम्मीदवारों को कुल 0.61 प्रतिशत और भाकपा (माले) के 98 उम्मीदवारों को कुल 1.54 प्रतिशत वोट मिले.महागठबंधन में इनका वोट ट्रांसफर हुआ तो राजद व अन्य उम्मीदवारों को इसका लाभ भी मिल सकता है.लेकिन चीन समर्थक मामला गरमाया तो लाभ से अधिक नुकसान भी हो सकता है.