अभिजीत पाण्डेय.
पटना.बिहार में आकाशीय बिजली गिरने से हुई करीब सौ लोगों की मौत ने इस प्राकृतिक आपदा से निपटने के उपायों को चर्चा में ला दिया है। बाढ़, भूस्खलन, भूकंप और तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं में होने वाली मौतों में से वज्रपात से होने वाली मौतों की तादाद लगभग 10 फीसदी है। देश में हर साल आसमानी बिजली की चपेट में आकर तीन से साढ़े तीन हजार लोगों की मौत हो जाती है।
राष्ट्राय आपराधिक रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों में कहा गया है कि वर्ष 2005 से देश में वज्रपात की वजह से हर साल लगभग दो हजार लोगों की मौत हो जाती है। लेकिन पुणे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट आफ ट्रॉपिकल मेट्रोलाजी (आईआईटीएम) ने यह तादाद साढ़े तीन हजार होने का दावा किया है।
बीते पांच वर्षों के दौरान यह सिलसिला तेज हुआ है। इस साल भी जम्मू-कश्मीर से लेकर दार्जिलिंग तक हिमालय के तराई इलाकों, पूर्वी व मध्य भारत में ऐसी घटनाएं और बढऩे का अंदेशा है।” इन घटनाओं में होने वाली मौतों की तादाद हर साल लगातार बढ़ रही है। दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले भारत में खेतों या खुले में काम करने वाले लोगों की तादाद बहुत ज्यादा है। इससे यहां आसमानी बिजली की जद में आने वालों की तादाद बढ़ जाती है।
बिजली गिरने से हर साल सैकड़ों लोग मारे जाते हैं। खराब मौसम में बिजली गिरने से 2001 और 2014 के मध्य 40 फीसद लोग मारे गए। 2005 के बाद से हर साल बिजली गिरने से 2 हजार से अधिक की मौत हुई। 2018 में प्रकृति की शक्तियों के कारण 6,891 लोगों की मौत हुई, इनमें 2,357 या 34 फीसद आकाशीय बिजली के कारण हुई। यह एक दिन में छह से अधिक मौतें हैं। यह बाढ़ (500), भूस्खलन (404), ठंड (757) और गर्मी (890) के कारण संयुक्त रूप से हुई मौत के करीब था। शायद आकाशीय बिजली भारत की सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा है।
सबसे अचरज भरी बात यह सामने आयी है कि अभी तक वज्रपात से अधिकतम मौतें प्री-मॉनसून सीजन में आती थीं, अब जून में भी आकाशीय बिजली से लोग मर रहे हैं। बिहार और झारखंड में जलवायुविक परिक्षेत्र में क्यूमिलोनिंबस क्लाउड (खास तरह के कपासी वर्षा मेघ) बन रहे हैं। स्थानीय गर्मी और नमी की अधिकता से यह बादल इतने तेजी से बन रहे हैं कि अपरिपक्व अवस्था में न केवल बरस जाते हैं, बल्कि बिजली (ठनका या वज्रपात) भी गिराते हैं। आसमान में अब ये बादल सामान्य से काफी नीचे बन रहे हैं। इसकी वजह से वज्रपात ज्यादा खतरनाक हो गया है।