प्रमोद दत्त.
पटना.प्रवासी मजदूरों को लेकर पूरी फजीहत झेलने के बाद अब बिहार सरकार की नींद टूटी है. जिलाधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि बाहर से आने वाले मजदूरों का उनके स्किल्ड से संबंधित आंकड़ा तैयार करे ताकि उन्हें उनकी योग्यतानुसार यहां काम दिया जा सके.15 वर्षों तक लगातार शासन करने वाली सरकार को अब अपने उन मजदूरों का ख्याल आया हैं जो पेट भरने के लिए अपने परिवार से हजारों किलोमीटर दूर रहने पर विवश हैं.
बिहार में उसी एनडीए की सरकार है जिनके नेता बिहार विभाजन व झारखंड गठन से संबंधित बिल पर बहस के दौरान शेष बिहार (वर्तमान बिहार) को हरियाणा-पंजाब बनाने का दावा कर रहे थे. खुशहाल बिहार बनाने के बड़े-बड़े दावे किए गए थे.बिहार विभाजन के बाद बिहार में पांच वर्ष( 2000-2005) राजद-कांग्रेस की सरकार रही और 2005 से अब तक यानि 15 वर्षों से नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार है.खुशहाल बिहार बनाने के लिए आपने मांगा पांच साल और राज्य की जनता ने आपको दिया 15 साल.
वर्तमान एनडीए सरकार पर यह आरोप भी नहीं लगाया जा सकता है कि विकास के हर मापदंड पर यह सरकार असफल रही.बल्कि सड़क,पुल,बिजली,भवन,नए शिक्षण संस्थान,समाज कल्याण आदि अनेक क्षेत्रों में इस सरकार ने बिहार को विकास की पटरी पर लाया.लेकिन औद्योगिक विकास या कृषि आधारित उद्योग या पर्यटन उद्योग पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया.अगर इन सेक्टरों पर निवेश किया जाता तो मजदूरों का पलायन बहुत हद तक कम हो जाता.
और इस काम पर किसी सरकार द्वारा ध्यान नहीं दिया गया.अविभाजित बिहार में कांग्रेस सरकार,लालू-राबड़ी सरकार या वर्तमान में एनडीए सरकार- सभी सिर्फ एक दूसरे पर आरोप ही लगाते रहे.आज भी यही हो रहा है.कोरोना संक्रमण के कारण जब लॉकडाउन-1 के बाद लॉकडाउन-2 आया तब दिल्ली,मुंबई व अन्य राज्य सरकारों ने मजदूरों की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ना शुरू किया.मजदूरों की मजबूरी आक्रोश में बदला तब केन्द्र व बिहार सरकार ने नोटिस लेना शुरू किया.लॉकडाउन-3 में मजदूरों की घर वापसी को लेकर भी खूब राजनीति हुई.नीतीश सरकार को घेरने के लिए राजद ने बसों की व्यवस्था करने लगी तो ट्रेन की व्यवस्था के बाद किराया का सवाल उठा तो कांग्रेस किराया देने को तैयार हो गई.तब राजनीतिक बाजी पलटने के लिए केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा मिलकर किराया देने की बात सामने आई.इसके बाद लंबी लकीर खींचते हुए नीतीश सरकार ने घोषणा की कि प्रवासी मजदूरों व छात्रों का किराया राज्य सरकार वहन करेगी.लेकिन सब की घोषणाएं मजदूरों के लिए लॉलीपॉप साबित हुई.जगह जगह मजदूरों से किराया वसूले गए.कहीं कहीं तो भाड़ा से अधिक राशि वसूल की गई.पटना पहुंचने वाले छात्रों और मजदूरों के साथ भोजन लेकर भेदभावपूर्ण रवैया अख्तियार किया गया.कोटा से आने वाले छात्रों को वीआईपी लंच पैकेट तो मजदूरों को ऐसा भोजन जो उन्हें फेंकना पड़ा.
कोरोना का कहर नहीं होता तो बिहार के मजदूरों का यह कड़वा सच आम लोगों के सामने नहीं आता.सरकारी दावों के बड़े-बड़े पोस्टरों-बैनरों के पीछे छिपी रहती 25-30 लाख मजदूरों के दास्तान.दिल्ली-मुंबई से लौट रहे हर मजदूरों की जुबान पर एक ही बात है-कोई मजदूर कमाने के लिए परिवार से दूर नहीं जाना चाहता.उसे अपने राज्य,जिला,प्रखंड में काम मिल जाए तो कभी बाहर नहीं जाए.
प्रवासी मजदूरों को लेकर आरोप-प्रत्यारोप के दौर चल रहे हैं.इस परिस्थितियों के लिए एनडीए-महागठबंधन के नेता एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. बिहार को हरियाणा-पंजाब बनाने का दावा करने वाले 15 वर्षों तक शासन करने के बाद भी अपनी गलतियों को छिपाने के लिए पिछली सरकार को जिम्मेदार बता रहे हैं. राज्य के मजदूरों को भगवान भरोसे छोड़ने के बाद मई दिवस(मजदूर दिवस) पर उन्हें बधाई-शुभकामना देकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ले रहे हैं.