फिर उसी दोराहे पर बिहार

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प्रमोद दत्त.पटना.बिहार की राजनीति एक बार फिर उसी दोराहे पर खड़ी हो गई है.कभी नरेन्द्र मोदी के पीएम उम्मीदवार घोषित किए जाने पर नीतीश कुमार ने भाजपा से नाता तोड़ा तो कभी राजद से मतभेद होने पर महागठबंधन से नाता तोड़ते हुए फिर एनडीए में वापस लौटने का निर्णय लिया.दोनों मौके पर निर्णय लेने के पहले जो अस्थिरता का माहौल बना था वही राजनीतिक माहौल अभी बन गया है.

शुरूआत केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने से नीतीश कुमार के इंकार से हुई. एनडीए में बने रहने के साथ साथ नीतीश कुमार ने स्पष्ट कहा कि मंत्रिमंडल में वे सांकेतिक भागीदारी नहीं बल्कि हिस्सेदारी चाहते हैं.इसके तत्काल बाद प्रतिक्रिया में आनन फानन में अपने कैबिनेट का विस्तार करते हुए उन्होंने जदयू के आठ मंत्री बनाए.इफ्तार पार्टी का सिलसिला तेज हुआ तो अचानक महागठबंधन के नेता जीतन राम मांझी से नीतीश कुमार की नजदिकियां और भाजपा के इफ्तार पार्टी से दिखी दूरियों पर बदलाव के कयास लगाए जाने लगे हैं.

बदलाव के साथ साथ राजनीतिक बयानबाजियों का सिलसिला तेज हो गया.राजद के रघुवंश प्रसाद सिंह,शिवानंद तिवारी,हम के जीतनराम मांझी,कांग्रेस के प्रेमचन्द्र मिश्रा जैसे नेताओं का नीतीश कुमार के प्रति नरमी वाले और महागठबंधन में वापसी के ऑफर वाले बयान आने लगे हैं तो केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के बयान ने भूचाल मचा दिया.गिरिराज सिंह के बयान पर जदयू नेताओं की जो प्रतिक्रिया आ रही है इससे भाजपा-जदयू रिश्ते में आई खटास से इंकार नहीं किया जा सकता है.

लेकिन वर्तमान बयानबाजी पर कोई स्पष्ट निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दीबाजी होगी.क्योंकि इस पूरे प्रकरण पर भाजपा-जदयू के शीर्ष नेताओं का बयान नहीं आया है.बल्कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने गिरिराज सिंह को विवादास्पद बयानों से बचने की चेतावनी दी है.प्रेक्षक भी यह मानते हैं कि राजनीतिक बयानबाजी पर विराम नहीं लगाया गया तो मामला बिगड़ सकता है.फिलहाल बिहार की राजनीति एक बार फिर करवट लेने से पहले उसी दोराहे पर खड़ी है.

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