प्रमोद दत्त.
पटना.आगामी 18 अप्रैल को दूसरे चरण में बिहार के जिन पांच सीटों पर मतदान होना है वे सभी सीटें मुस्लिम बाहुल लोकसभा क्षेत्र है.पिछले चुनाव 2014 में इन सभी सीटों पर भाजपा उम्मीदवार दूसरे नंबर पर थे.एक सीट पूर्णिया से जदयू की जीत हुई थी.इसमें भागलपुर और बांका में तो भाजपा उम्मीदवार मामूली अंतर (लगभग 10 हजार) से हारे. इसके बावजूद तालमेल में भाजपा ने सभी सीटें जदयू के लिए छोड़ दी है.इस क्षेत्र में एनडीए खाते में सीटों की संख्या बढाने की जिम्मेदारी जदयू के कंधे पर है.देखना दिलचस्प होगा कि मुस्लिम बाहुल सीटों पर नीतीश के चेहरे का करिश्मा कितना चलता है.
किशनगंज,कटिहार,पूर्णिया,भागलपुर और बांका लोकसभा क्षेत्रों में 18 अप्रैल को मतदान होना है.किशनगंज में सबसे अधिक 67 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं.इसी प्रकार कटिहार में 38,पूर्णिया में 30 और भागलपुर में 22 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं.सिर्फ बांका में 15 प्रतिशत से कम हैं मुस्लिम मतदाता. पिछले चुनाव में जीती सीट पूर्णिया को बचाना और शेष चार सीटों को महागठबंधन से छिनने की चुनौती जदयू व नीतीश कुमार के सामने है.हालांकि इन सीटों पर भाजपा के सक्रिय कार्यकर्ता और मजबूत जनाधार की नींव का सहारा जदयू की जीत में बड़ी भूमिका निभा सकता है.
2014 में किशनगंज से कांग्रेस,कटिहार से राष्ट्रवादी कांग्रेस,पूर्णिया से जदयू, भागलपुर व बांका से राजद की जीत हुई थी.इस क्षेत्र के मतदाताओं ने मोदी लहर को रोक दिया था.मुस्लिम बाहुल इस क्षेत्र में भाजपा के मुस्लिम चेहरा शाहबनाज हुसैन इस बार चुनाव मैदान में नहीं हैं जबकि वे किशनगंज और भागलपुर से चुनाव जीत चुके हैं.
दरअसल,नीतीश कुमार ने अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में अल्पसंख्यकों के लिए कई काम किए हैं.भागलपुर दंगे का दोबारा जांच कराकर दंगा प्रभावित मुसलमानों के पुनर्वास का मामला हो या किशनगंज में अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का शाखा खोलने की पहल हो,उन्होंने लालू प्रसाद की राजनीति के सामने लंबी लकीर खिंचने का प्रयास किया.शिक्षा के क्षेत्र में अल्पसंख्यकों के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही है.नीतीश कुमार के कामकाज के आधार पर जदयू उम्मीदवार मुसलमानों के वोटबैंक में सेंधमारी कर लें तो कोई आश्चर्य नहीं होगा.