शहाबुद्दीन का बिखरता साम्राज्य,टूटता खौफ

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अमर चन्द्र सोनू.

सीवान. यहां पर अब शांति ही शांति है। लेकिन ये शहर इतना शांत नहीं था। ढ़ाई दशक पूर्व लोगों ने जो भर, भय और खौफ का मंजर देखा था उसे आज तक नहीं भूले। इस खौफ का पर्याय माने जाते थे सांसद डॉ. मो. शहाबुद्दीन। लोग उनका नाम लेने से भी डरते थे, लोग भय, भय या खौफ कहें या फिर इज्जत उन्हें साहेब के नाम से पुकारते थे। सांसद शहाबुद्दीन बिहार में ही नहीं बल्कि पूरे देश में बाहुबली और क्रिमिनल हिस्ट्रीशीटर सांसदों में से एक हैं। जनता तो जनता, जिले के वरिष्ठ आला अधिकारी (के साथ साथ पुलिस अधिकारी) भी उनके सुर में मिलाकर काम करते थे। उनके विरोध में सीवान लोकसभा क्षेत्र में कोई आवाज तक नहीं उठाता था।

भारत का सबसे दबंग राजनेता और सांसद रहे शहाबुद्दीन का जन्म सीवान जिले के प्रतापपुर गांव में 10 मई 1967 में हुआ था। उन्होंने प्रतापपुर में ही प्रारंभिक शिक्षा पूरी की थी। बाद में शहाबुद्दीन ने डीएवी कॉलेज से अपनी एमए की शिक्षा राजनीतिशास्त्र से पास की। पढ़ाई के क्रम में ही वे 1980 में राजनीति में आए। वर्ष 2000 में उन्होंने बी.आर.अंबेदकर विवि, मुजफ्फरपुर से पीएचडी की उपाधि हासिल की, जो कि काफी विवादों में रही। कॉलेज के दिनों में ही वे राजनीति में आए और भाकपा और भाजपा के विरोध में कार्य करने के कारण वे काफी चर्चित भी हुए।

इनकी आपराधिक छवि 1986 से ही उजागर होने लगी थी। जब उनके खिलाफ हुसैनगंज थाने में पहली बार प्राथमिकी दर्ज हुई। इसके बाद मो. शहाबुद्दीन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। देखते ही देखते वे देश के क्रिमिनल हिस्ट्रीशिटर में शामिल हो गए।

1990 से उनका राजनीतिक जीवन शुरू हुआ। वे राजद की सीट से विधायक और सांसद भी बने। 1996 में एचडी देवगौड़ा की सरकार में राज्यमंत्री भी बनने वाले थे। लेकिन मीडिया के पुरजोर विरोध औरआरपाधिक छवि का हवाला देकर उन्हे राज्यमंत्री नहीं बनने दिया गया।

1990 से 2014 तक साहेब शहाबुद्दीन का खूनी खेल लगातार जारी रहा। इस क्रम में वे कभी वे जेल में रहे तो कभी जेल से बाहर। उनके इस करतूत में बिहार में पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव का भी पूरा संरक्षण मिलता रहा। वजह भा थी सीवान लोस के मुस्लिम वोटर की जमात उनके साथ थी। इस दौरान चुनाव में भी कोई उनके विरोध में खड़ा होने की हिमाकत नहीं करता। पूरे लोस क्षेत्र में राजद का लालटेन की दीप्तमान रहता था। उन्होंने ओम प्रकाश यादव को भी सरेआम पीटा जो बाद में जिले के विधायक भी बने। उनका खौफ इतना था कि 31 मार्च 1997 को उनके आदमियों ने उनके इशारे पर जेएनयू के छात्र नेता चंद्रशेखर को जेपी मोड़ पर सरेआम गोली मार दी। विदित हो कि ये जेपी मोड़ जिले का सर्वाधिक व्यस्त रोड और सिवान समाहरणालय से महज 200 मीटर की दूरी पर है। जहां जिले के डीएम और एसपी भी आसन जमाते हैं। इस कांड में भी सांसद मो. शहाबुद्दीन का नाम सुर्खियों में आया था। चंद्रशेखर हत्याकांड मामले में वर्ष 2012 के मार्च में सीबीआई कोर्ट की जस्टिस धीरेंद्र कुमार की अदालत ने ध्रुव कुमार जायसवाल, मुन्ना खां और इलियास बारी को आजीवन कारावास और 40-40 हजार रूपये की जुर्माना की सजा सुनाई।

वर्ष 2001 के दौरान सांदस पर ताकत का नशा इस कदर छाया कि वे पुलिस कर्मियों और अधिकारी को भी कोई तरजीह नहीं दे रहे थे। और विरोध करने पर मारपीट और गोलीबारी से भी नहीं चुकते थे। इसी दौरान 15 मार्च 2001 को डीएसपी संजीव कुमार को खबर मिली की दारोगा राय कॉलेज में मैट्रिक परीक्षा के दौरान कुछ वांटेड अपराधी परीक्षार्थियों के डरा धमका रहे हैं। मामले का संज्ञान लेते हुए संजीव कुमार मौके पर पहुंचे । वहां सांसद शहाबुद्दीन भी मौजुद थे। डीएसपी संजीव कुमार ने जब अपराधियों को गिरफ्तार करने की पहल की तो वे तैश में आकर बोले मेरे आदमियों को गिरफ्तार करोगे। और गुस्से में डीएसपी संजीव कुमार को थप्पड़ जड़ दिया। और उनके गुर्गों ने  पुलिस कर्मियों में फायरिंग शुरू कर दी। मौके की नजाकत को देखते हुए पुलिस कर्मी वापस हो गए। इस मामले पर पुलिस कर्मियों के बीच आक्रोश बढ़ गया। एसपी बच्चु सिंह मीणा ने तत्कालिन डीएम रशीद अहमद खां से सांसद शहाबुद्दीन  की गिरफ्तारी का आदेश मांगा। लोगों में चर्चा तो ये भी थी कि डीएम के मना करने पर सर्किट हाउस में एसपी और पुलिस कर्मियों ने डीएम को बंधक बना उन्हें जमकर पीटा और और छापेमारी और गिरफ्तारी वारंट पर हस्ताक्षर कराया। इतना ही नहीं छापेमारी के लिए 16 मार्च 2001 को डीएम रशीद अहमद खां को भी साथ ले गए। प्रतापपुर पहुंचने के बाद पुलिस कर्मियों पर सांसद शहाबुद्दीन के गुर्गों ने अत्याधुनिक हथियारों से पुलिस कर्मियों पर फायरिंग शुरू कर दी। इस मुठभेड़ में 11 आदमियों की मौत हो गई। इस छापेमारी के लिए पुलिस ने यूपी पुलिस से भी मदद ली थी।

आनन फानन में डीएम, एसपी और डीएसपी का स्थानांतरण कर दिया गया। उस दौरान तत्कालिन मंत्री अब्दुल बारी सिद्दकी और शिवांनंद तिवारी ने पुलिस पर आरोप लगाया कि वे शहाबुद्दीन को तंग तबाह कर रही है। पूर्व सीएम लालू प्रसाद भी सांसद शहाबुद्दीन को मुस्सिलम वोट के कारण के संरक्षण दे रहे थे। वर्ष 2003 में डीजीपी डीपी औझा के बनने के बाद सांसद पर शिकंजा कसना शुरू हो गया। कई पुराने मामले में वारंट जारी होने लगा। इसी दौरान माले कार्यकर्ता मुन्ना चौधरी के अपहरण और हत्या के मामले में उनपर वारंट जारी हुआ और पुलिसिया बंदिस के कारण उन्हे आत्मसमर्पण करना पड़ा। उनके आत्मसमर्पण से सियासत ऐसी गरमाई की डीजीपी डीपी ओझा को वीआरएस लेना पड़ा। 2003 में वो दिखावे के लिए जेल गए। लेकिन खराब स्वस्थ्य का हवाला देकर सदर अस्पताल से ही अपनी हुकूमत चलाने लगे।

उनके जेल में रहने के दौरान ही एक मामला काफी सुर्खियों में रहा। व्यवसायी चंदा बाबु के पुत्रों की तेजाब से नहालाकर हत्या कराने के मामले में भी आरोपी रहे। गौरतलब हो कि तेजाब कांड में कुछ प्रत्यशक्षदर्शियों ने कहा कि तेजाब से नहलाने के दौरान संसद शहाबुदुबीन भी मौके पर मौजूद थे। जबकि पुलिसिया और जेल प्रशासन पर भी प्रश्नचिन्ह उठता है कि जेल में रहने के दौरान वे मौके पर कैसे पहुंचे, सवालों के घेरे में है।

वर्ष 2005 में राष्ट्रपति शासन के दौरान सीवान में डीएम सीके अनिल और एसपी रत्न संजय की युगलबंदी ने शहाबुद्दीन के साम्राज्य पर कहर बरपा दिया। वर्ष 2005 में एक बार फिर शहाबुद्दीन के पैतृक आवास पर एकबार फिर छापेमारी हुई । इस छापेमारी में भारी मात्रा में विस्फोटन, हथियारों का जखीरा, विदेशी मुद्रा। नाइट ग्लास और लेजर गाइडेड (जो सिर्फ मिलिट्री के लिए अधिकृत है) बरादम हुआ। वहां से पाकिस्तान निर्मित गोलियां भी बरामद हुई। जिससे वे क्रिमिनल हिस्ट्रीशीटर में शुमार हो गए।

लंबे अरसे से फरार रहने के बाद उन्हें 6 नवंबर 05 को दिल्ली के उनके पैतृक आवास से गिरफ्तार कर लिया गया। जिसके बाद से वे लगातार जेल में हैं। जेल में रहने के बाद भी उनके सत्ता और शासन में कोई कमी दिखाई नहीं देती। कारण है वर्ष 2014 में तेजाब कांड में चंदा बाबू के दो पुत्रों में से एक ने जब गवाही दी तो उसकी हत्या साहेब के इशारे पर करवा दी गई।

इन सब के बावजूद जिले के आजकल आमलोग अमन चैन से रह रहे है। और शहाबुद्दीन का प्रभुत्व और खौफ भी कम हो गया है।

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