पैथोलॉजिकल गैम्बलिंग लाभ-हानि से अपनी मानसिकता ( वन टू का फोर)

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PSYCO SIGN 4

डा.मनोज कुमार ( काउंसलिंग साइकोलोजिस्ट)

पूजा मिश्र पेशे से बिल्डर है उनकी कई परियोजनाओं पर अभी काम चल रहा है, फिलहाल कुछ प्रोजेक्ट्स पूरे हुए हैं और उनमें मामूली लाभ भी हुआ है लेकिन इतने कम मुनाफे के बाद वह मार्केट से बहुत ज्यादा लोन उठा चुकी हैं इस बाबत उनके पति खासा नाराज हैं और बात तलाक तक पहुंच चुकी है. यही हाल एडवोकेट विरेन साहू का है जो वकालत में नाकामयाब होने पर सट्टा और शेयर बाजार में पैसे लगा चुके हैं. कई बार थोड़े फायदे हुए हैं लेकिन वह फिर भी कर्ज में धीरे-धीरे डूब रहे हैं. पत्नि के लाख आगाह करने के बावजुद उनका परिवार बिखरने के कगार पर है.

    दरअसल, वर्तमान समय में हर व्यक्ति के जीवन में कोई न कोई पुराना व्यक्तिगत जीवनशैली टूटा-फूटा होता ही है चाहे वह सामाजिक बिखराव हो, पारिवारिक सामंजस्य में दरार हो या उनके व्यवसायिक जीवन का उतार-चढ़ाव. इन सब में अगर वह आसानी से प्रतिरोध नहीं कर पाये तो वो अपना आवेग नियंत्रण खो देता है और पैथोलॉजिकल गैम्बलिंग का शिकार हो जाता है.

यह बिमारी हानि से उपजी मानसिकता की फसल है जिसमें व्यक्ति को यह विश्वास हो जाता है कि उसका घाव जुआ खेलने या नए काम में पूंजी लगाने से ही भर जाएगा. अपने इस विश्वास की वजह से वह अपने-पराये किसी की नहीं सुनता और कर्ज और लगातार व्यवसायिक हानियों से घिर जाता है और इससे निकलने की परिकल्पना धन लगाने या कर्ज मांगने से करता है.

लक्षण-

    इस समस्या में ग्रसित व्यक्ति पहले नुकसान के बारे में सोचता रहता है. कभी-कभी थोड़े से आमदनी से रोमांचित हो जाता है और बड़ा लक्ष्य बना डालता है. इस तरह के लोग बेचैन व कुंठिर जीवन जी रहे होते हैं. उनमें खुद को दोष भावना से ग्रसित रहना, असहाय दिखना, चिंता और अवसाद का एक ही मार्ग जुआ और नए जगह पर पैसे लगाना हा होता हैं लगातार झूठ बोलकर रिश्तेदारों से पैसे कर्ज लेना, हानि की बात छिपाना और परिवारल के लोगों द्वारा बताया जाने वाला परंपरिक कार्य से परहेज रखना भी शामिल है.

क्यों होते हैं शिकार-

    इस तरह की समस्या वाले व्यक्ति में भागने की प्रवृति होती है वह किसी एक चीज में नहीं टिके रहते, हमेशा अस्थिरता के पैटर्न पर चलते हैं और इसका नतीजा आपसी रिश्तों में करवाहट पनपने लगता है. यह शुरू से ही आदर्श-वादिता के राहपर चलने से तौबा कर लेते हैं. कई बार खुद की पहतान भी यह बेमानी साबित कर लेते हैं. और आत्मघाति कदम उठाने लगते हैं या परिवार को धमकाना. चिंता और चिड़चिड़ापर की वजह से यह लंबे समय तक अपने जीवन में खालीपन का एहसास करते रहते हैं और तुरंत अपना आपा खो देते हैं.

     कई बार इन सब की वजह से समाज के लोग उनसे किनारा कर लेते हैं और परिवार में कलह की स्थिति उतिपन्न हो जाती है. व्यक्ति खुद पर से नियंत्रण हटा लेता है और असमाजिक कामों में दिलचस्पी लेने लगता है. दीन-प्रिदिन उसका उत्साह जुएं और पैसे लगाने में बढ़ता जाता है. इस प्रकार के लोगों की कांउसलिंग पारिवारिक चिकित्सा की जाती है. व्यवहार परिवर्तन पर जोर दिया जाता है और मामले की गंभिरता के हिसाब से दवा भी देनी परती हैं.

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