ललन कुमार सिंह.
पटना.15 साल के कार्यकाल में साथियों की भावनाओं को समझने के बाद मैं यह निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ, कि अल्प वेतन भोगी संविदा कर्मियों का तबादला एक उम्मीदों की तबाही का मंजर है। उदाहरण स्वरूप जिस तरह बुलडोजर से झुग्गी, झोपड़ी को तोड़ा जाता है।उसके बाद उनका सामान जिस तरह बिखरा पड़ा मिलता है, तो यह लगता है कि कोई बड़ा तूफान आया होगा।
उसके बाद जिस तरह तूफान आती है कई स्थानों को उड़ा कर ले जाती है और बिखरे होते हैं बुनियादी जरूरतें के समान। यदि आप किराए के मकान में रहते होंगे। छात्र जीवन में या परिवारिक जीवन में तो मकान खाली कर दूसरे मकान में जाना होता है तब कितनी परेशानी होती है। एक किराए के मकान से दूसरे किराए के मकान जाने में साथ ही उस सामान को अर्जेस्ट करने में कई महीनों लग जाते हैं। छोटे बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं तो दूसरे स्थान पर बच्चों को विद्यालय में नामांकन कराने में बहुत मोटी रकम लगेंगे।
हमारे संविदा कर्मी भाई निम्न वेतन में इसको कैसे एडजेस्ट करेंगे? क्या इसके लिए कर्ज लेंगे? और इसके कारण मानसिक तनाव में बीमारी से ग्रसित होंगे। साथ ही बच्चों को अच्छी शिक्षा का तबाही हमने लिखा है।तबाही बच्चों की उम्मीदों की, बच्चों के भविष्य का और परिवार के भविष्य की है।
इसलिए मैं कहता हूं, तबादला उम्मीदों की तबाही है। जिन कर्मियों का तबादला होता है वह उसके बच्चे एवं परिवार बहुत उम्मीद के साथ उस स्थान पर इतने कम और निम्न वेतन के आधार पर उम्मीद सजाते हैं। और पढ़ाई एवं कुछ अन्य कार्य शुरू करते हैं तभी एकाएक तबादला हो जाता है। बच्चे के भविष्य की जो तबाही नजर आती है, उस तबाही में संविदा कर्मी ऊपर में शिकायत भी नहीं कर सकते हैं।
मैं इस तबादला का विरोध नहीं कर रहा हूं। मैं तबादला का समर्थक हूं। लेकिन संविदा कर्मियों का तबादला उनके अभ्यावेदन या अनुरोध पर अप्रैल माह में हो और तबादला भत्ता मिलना चाहिए। जिससे नया आशियाना बसाने उनको सहायता मिल पाए। क्योंकि निम्न वेतन भोगी कारण बच्चों को शिक्षा भत्ता मिलना चाहिए। जिसे हम संविदा कर्मियों का तबादला को तबाही के मंजर ना समझकर पुरस्कार के रुप में समझेंगे!
सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि कई संविदा कर्मी 400-300 किलोमीटर दूर अपने परिवार और बच्चा को छोड़ कर नौकरी कर रहे हैं। वह चाहते हैं कि अपने घर के पास पहुंचे और अपने बच्चों की भविष्य एवं उम्मीद को सवारे। अच्छा परवरिश दे। ताकि हमारे बच्चे को संविदा पर बहाली में न जाना पड़े। इसके कारण संविदा कर्मी घर के नजदीक भी आना चाहते हैं। क्योंकि कम वेतन होने कारण अपना जिंदगी ठीक से नही चला पा रहे हैं ना बच्चों की पढ़ाई की फीस जमा कर पा रहे हैं ना घर चला पा रहे हैं। इस मानसिक तनाव में नजदीक आने के कारण को पुरस्कार ही कहेंगे। मनचाहा जगह तबादला होना पुरस्कार के रूप में देखे गए हैं। इसलिए मैं कहता हूं तबादला संविदा कर्मियों की पुरस्कार के रुप में भी परिलक्षित होती है।
एक तरफ तबाही के मंजर दूसरी तरफ अपना आशियाना बनाने की धुन।मैं भी कोशिश करता हूं अपने परिवार के नजदीक पहुंचे। लेकिन पूरे बिहार में जो हो रहा है या हुआ है दर्द भी है तबाही की मार भी। दूसरी तरफ संविदा कर्मियों को चेहरे की मुस्कान भी है। मैं मुस्कान की तरफ या तबाही की मंजिल की तरफ बिहार राज्य स्वास्थ्य संविदा कर्मी संघ बिहार बीचों में बीच में फसा है। बिहार राज्य स्वास्थ्य संविदा कर्मी संघ बिहार, सबके साथ है। इस उम्मीद के साथ बिहार राज्य स्वास्थ्य कर्मी संघ,बिहार तबादला में तबाही का मंजर चेहरे पर हंसी और मुस्कान दोनों को देखने को मिलता है। एक उदाहरण, आज बकरीद के मौके पर खुशी में कटे या दुख में कटे- कटना तो बकरे का ही होता है। अन्यथा नहीं लेंगे यह सिर्फ अपने मन का व्यथा आप लोग के पास रखा है। इसे व्यथा के साथ ही मेरा संघर्ष भी जारी रहेगा।( लेखक-ललन कुमार सिंह बिहार राज स्वास्थ्य संविदा कर्मी संघ,बिहार,के सचिव हैं)
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