चारा घोटाला:तब CBI जांच की मांग पर लालू ने कहा था,UNO से करा देगें

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प्रमोद दत्त.
                    पटना.चारा घोटाला की सीबीआई जांच को लगातार नकारने वाले तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने कभी विधान सभा में मजाकिया अंदाज में कहा था कि सीबीआई क्या,इसकी जांच यूएनओ से करा देंगे। लेकिन यूएनओ से जांच कराने की बात करने वाले लालू प्रसाद जब 1996 में घोटाला पकड़ा गया तब भी वे सीबीआई जांच का विरोध करते रहे। नतीजतन  पटना हाईकोर्ट को सीबीआई जांच का आदेश देने के साथ-साथ जांच की मॉनेटरिंग भी करनी पड़ी।
तब चारा घोटाले की सीबीआई जांच की मांग लगातार उठ रही थी।सबसे पहले बिहार विधान सभा की निवेदन समिति ने निवेदन संख्या 1160/85 के आलोक में 21 करोड़ 18 लाख 53 हजार के गबन के मामले की जांच सीबीआई से कराने की अनुशंसा की थी।अगस्त 1990 में ही तत्कालीन पशुपालन मंत्री रामजीवन सिंह ने महालेखाकार की शिकायत पर 30 करोड़ के घोटाले पर विभागीय जांच पर संदेह व्यक्त करते हुए सीबीआई की जांच की अनुशंसा की थी।
तत्कालीन भाजपा सांसद ललित उरांव ने 16 दिसम्बर 91 को केन्द्रीय कृषि मंत्री बलराम जाखड़ को पत्र लिखकर मेसो परियोजना में गड़बड़ी की जांच सीबीआई से कराने की मांग की थी।श्री उरांव ने पुन: 6 अप्रैल 92 को पशुपालन माफिया के खिलाफ दस्तावेज के आधार पर सीबीआई जांच की मांग दोहराई थी।तब के भाजपा विधायक जो बाद में लालू की पार्टी (जनता दल) में आ गए,रामदास राय ने 19 जून 92 को प्रधानमंत्री व अन्य केन्द्रीय मंत्रियों को लिखे पत्र में घोटाले की चर्चा करते हुए सीबीआई से जांच कराने की मांग की थी।
तब के केन्द्रीय उर्वरक व रसायन मंत्री रामलखन सिंह ने भी चारा घोटाले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की थी।घोटाला सामने आने के बाद कांग्रेस के तत्कालीन सांसद रामशरण यादव ने भी 31 जनवरी 96 को पीएम को लिखे पत्र में इस घोटाले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की थी।सीबीआई से जांच नहीं कराने की लालू की जिद पर तब विराम लगा जब भाजपा-समता के नेताओं की याचिका पर पटना हाईकोर्ट का फैसला आया।
चारा घोटाला को लेकर बिहार विधान सभा और विधान परिषद में लगातार सवाल उठाए जाते रहे और सीबीआई जांच की मांग की जाती रही लेकिन सरकार के जवाब में हमेशा माफिया का बचाव किया जाता रहा।विधान परिषद में 18 मार्च 91 को कृपानाथ पाठक व शत्रुघ्न प्रसाद सिंह के पशुपालन में भ्रष्टाचार से संबंधित ध्यानाकर्षण के जवाब में तब के मंत्री विद्या सागर निषाद ने कहा- इस मामले की जांच लोक लेखा समिति कर रही है।जांच के नतीजे के अनुसार कार्रवाई की जाएगी।इसी प्रकार आयकर अधिकारियों के छापेमारी में माफिया के घर से बरामद 20 करोड़ से संबंधित डॉ नीलाबंर चौधरी के सवाल पर मंत्री श्री निषाद ने कहा कि बिहार में कोई पशुपालन माफिया नहीं है।
8 जुलाई 93 को विधान परिषद में छत्रपति शाही मुंडा ने वित्त मंत्री से पशुपालन माफिया द्वारा अवैध निकासी पर सवाल पूछते हुए सीबीआई से जांच की मांग की तो सरकार ने जवाब दिया कि इस बारे में एक अखबार में छपी खबर की जानकारी सरकार को है।इस पर जांच हुई।जांच में अवैध निकासी प्रमाणित नहीं हुई।यह निकासी अवैध एवं कपटपूर्ण नहीं है।संबंधित रिकार्ड महालेखाकार के पास भेज दिया गया है।इसलिए इस बारे में विस्तार से जानकारी देना संभव नहीं है।
मार्च 93 में विधान सभा में भाजपा के सुशील मोदी ने एक अंग्रेजी अखबार में छपी पशुपालन माफिया द्वारा 1200 करोड़ अवैध निकासी की खबर का हवाला देते हुए घोटाले पर सवाल उठाया था।तब मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने सदन को आश्वत किया था कि वे अखबार में छपी खबर के बारे में पता करेंगे।सही आंकड़ा बताएंगे- कहां खर्च हुआ,कैसे खर्च हुआ, इस बारे में विस्तार से बताएंगे।लालू जी का आश्वासन कभी पूरा नहीं हुआ और संचिका वित्त विभाग में दफन हो गई।
एक बार तो विधान सभा में सीएम के नाते लालू प्रसाद ने यहां तक कह दिया था कि सीबीआई क्या,वे इसकी जांच यूएनओ से करा देंगे।उन दिनों चारा घोटाला मामले में लालू एंड कंपनी बार-बार विपक्ष की इसे साजिश बताकर अपने समर्थकों को बरगलाते रहे। लेकिन हाईकोर्ट के फैसले व हाईकोर्ट की मॉनेटरिंग में हुई सीबीआई जांच में सब खुलासा हुआ। लालू प्रसाद सहित अन्य कई को सजा मिली।लालू प्रसाद को वर्षों जेल में काटना पड़ा। चारा घोटाला की जांच यूएनओ से नहीं करानी पड़ी।

 

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