हिन्दी भले राष्ट्रभाषा न बनाई गई हो,पर यही राष्ट्र की भाषा है-राज्यपाल

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साहित्य सम्मेलन के ४२वें महाधिवेशन का हुआ उद्घाटन,सम्मेलन की सर्वोच्च मानद उपाधि ‘विद्या-वाचस्पति’ से विभूषित किए गए बिहार के राज्यपाल,प्रो राम मोहन पाठक और प्रो चक्रधर त्रिपाठी समेत 21 विद्वान हुए सम्मानित
संवाददाता.पटना.हिन्दी भले ही राष्ट्र भाषा न बनायी गयी हो, पर यही राष्ट्र की भाषा है। इसके विकास में हम सबको मिलकर योगदान करना चाहिए, इस भावना के साथ कि यह ‘मेरा काम है, किसी और का नहीं’। इनमें देश को एक सूत्र में जोड़ने की महान क्षमता है।
यह बातें शनिवार को  बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के 42वें महांधिवेशन के उद्घाटन के पश्चात अपने संबोधन में बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने कही। महामहिम राज्यपाल ने कहा कि साहित्य को समाज को प्रेरणा देने वाला होना चाहिए। जो समाज के लिए लाभकारी न हो, ऐसे साहित्य का क्या लाभ?
उन्होंने कहा कि हिन्दी भाषा में, संस्कृत का अधिक प्रचलन हुआ रहता तो दक्षिण भारत में इसकी स्वीकृति बहुत पहले हो चुकी होती। वह इसलिए कि दक्षिण की भाषाओं में संस्कृत शब्दों का बाहुल्य है। उन्होंने कहा कि, साहित्य से नयी पीढ़ी को जोड़ा जाना चाहिए। विद्यार्थियों और बच्चों में पाठ्यपुस्तकों के साथ रचनात्मक साहित्य की पुस्तकें पढ़ने की आदत डाली जानी चाहिए।
सम्मेलन के संस्थापकों में से एक और भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा राजेंद्र प्रसाद के पुण्य-स्मृति-दिवस की षष्टि-पूर्ति को समर्पित इस महाधिवेशन के उद्घाटन-सत्र में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने, महामहिम को सम्मेलन की सर्वोच्च मानद उपाधि ‘विद्या-वाचस्पति’ से विभूषित किया।
इस अवसर पर, महामहिम ने ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय, कोरापुट के कुलपति प्रो चक्रधर त्रिपाठी, सुप्रसिद्ध साहित्यकार और काशी-वाराणसी विरासत फ़ाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो राम मोहन पाठक, दूरदर्शन, बिहार के कार्यक्रम प्रमुख डा राज कुमार नाहर तथा काठमाण्डू, नेपाल की विदुषी हिन्दी सेवी प्रो कंचना झा सहित २१ विदुषियों और विद्वानों को, बिहार की महान साहित्यिक विभूतियों के नाम से नामित अलंकरणों से सम्मानित किया।

इसके पूर्व महामहिम ने साहित्य सम्मेलन द्वारा प्रकाशित, विदुषी लेखिका डा पूनम आनन्द के लघुकथा-संग्रह ‘१२१ लघुकथाएँ’, सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा कल्याणी कुसुम सिंह की पुस्तक ‘भाग लें’ , पर्यावरणविद कवि डा मेहता नगेंद्र सिंह की पुस्तक ‘पेड़ की चिंता’ तथा सम्मेलन पत्रिका ‘सम्मेलन-साहित्य’ के महाधिवेशन विशेषांक का लोकार्पण किया।
आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए, महाधिवेशन के स्वागताध्यक्ष और पूर्व सांसद डा रवीन्द्र किशोर सिन्हा ने कहा कि 75 वर्ष स्वतंत्रता के हो गए, किंतु अभी तक हम हिंदी को राष्ट्र भाषा घोषित नहीं कर सके यह अत्यंत दुःखदायी है।
अपने अध्यक्षीय संबोधन में डा अनिल सुलभ ने कहा कि साहित्य सम्मेलन देशरत्न की सेवाओं का ऋणी है। उनकी हिन्दी-सेवा किसी भी साहित्यकार से बड़ी है। उनके ही प्रयास और प्रेरणा से बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना हुई। वे हिन्दी की सेवा को ‘देश-सेवा’ ही मानते थे। सम्मेलन के हिन्दी-प्रचारक के रूप में उन्होंने दक्षिण-भारत के विभिन्न प्रांतों में अनेक यात्रएँ की और हिन्दी संस्थाओं की स्थापना की और करायीं।
डा सुलभ ने कहा कि देश की भावनात्मक एकता और सांस्कृतिक उन्नति के लिए यह आवश्यक है कि इसकी कोई एक राष्ट्र-भाषा हो। जिस देश की कोई राष्ट्र-भाषा नहीं होती, वह देश चाहे जितना शोर मचाए, गुंगा ही रह जाता है। उद्घाटन सत्र को केंद्रीय हिन्दी संस्थान के उपाध्यक्ष डा अनिल शर्मा जोशी, प्रो राम मोहन पाठक, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा कुमार अरुणोदय ने भी संबोधित किया। धन्यवाद-ज्ञापन सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिव वंश पाण्डेय ने तथा मंच का संचालन डा शंकर प्रसाद ने किया। समारोह के आरंभ में स्वागत समिति के उपाध्यक्ष सरदार महेन्दर पाल सिंह ‘ढिल्लन’ ने महामहिम समेत सभी मंचस्थ अतिथियों का गुरुद्वारा पटना साहिब की ओर से ‘सिरोपा’ और पिन्नी-प्रसाद देकर सम्मानित किया।
‘देशरत्न दा राजेंद्र प्रसाद: उनकी हिन्दी सेवा और ग्रामीण-चेतना’ विषयक प्रथम वैचारिक-सत्र का उद्घाटन करते हुए,  डा अनिल शर्मा जोशी ने कहा कि,राजेंद्र बाबू की हिन्दी-सेवा अत्यंत मूल्यवान है। उन्होंने कहा क हिंदी के प्रचार-प्रसार में महाराष्ट्र सहित दक्षिण भारतीय हिन्दी-सेवियों का बड़ा योगदान है। संत विनोवा भावे और काका कालेलकर इसके बदे उदाहरण हैं।
डा रवीन्द्र किशोर सिन्हा की अध्यक्षता में आयोजित इस सत्र में सत्र के मुख्य वक्ता और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अवकाश प्राप्त अधिकारी डा उपेन्द्रनाथ पाण्डेय, डा योगेन्द्र लाल दास तथ चितरंजन प्रसाद सिंहा ‘कनक’ ने भी अपने पत्र प्रस्तुत किए।धन्यवाद-ज्ञापन सम्मेलन की उपाध्यक्ष प्रो मधु वर्मा ने तथा मंच का संचालन, साहित्य मंत्री प्रो मंगला रानी ने किया।
आज के दूसरे सत्र का उद्घाटन प्रो राम मोहन पाठक ने किया। इस सत्र के विषय ‘हिन्दी साहित्य में कृषक विमर्श’ पर अपना विचार रखते हुए, उन्होंने कहा कि भारत एक कृषि प्रधान देश है और साहित्य मेन कृषकों की बात न हो तो साहित्य अधूरा-अधूरा लगता है। साहित्य सम्मेलन ने इस विषय पर विमर्श आरंभ कर बहुत सराहनीय कार्य किया हाई, जिसका दूरगामी प्रभाव होगा।
भूपेन्द्र नारायण मण्डल विश्व विद्यालय, मधेपुरा के पूर्व कुलपति प्रो अमरनाथ सिन्हा की अध्यक्षता मेन आयोजित इस सत्र डा विनोद कुमार सिन्हा, पद्मकन्या महिला महाविद्यालय, काठमांडू, नेपाल की प्राध्यापिका प्रो कंचना झा, प्रो मंगला रानी तथा डा अवधेश के नारायण ने भी अपने पत्र प्रस्तुत किए। अतिथियों का स्वागत सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा कल्याणी कुसुम सिंह ने, धन्यवाद-ज्ञापन अर्थ मंत्री प्रो सुशील कुमार झा ने तथा मंच-संचालन कवयित्री श्वेता ग़ज़ल ने किया।
महाधिवेशन के अतिथियों और प्रतिभागियों के सम्मान में आज की संध्या एक रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किया गया, जिसमें सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने ‘सरगम की एक शाम’ के ज़रिए अपनी ग़ज़ल-गायिका से श्रोताओं का दिल जीत लिया। वहीं दूरदर्शन, बिहार के कार्यक्रम-प्रमुख और सुप्रसिद्ध गायक और तबला-वादक डा राज कुमार नाहर ने अपने गायन से सभागार को झूमने पर विवश कर दिया। सांस्कृतिक कार्यक्रम की आख़िरी कड़ी में सम्मेलन की कलामंत्री डा पल्लवी विश्वास के निर्देशन में नृत्य-नाटिका ‘आनन्द भैरवी’ की प्रस्तुति से गदगद होकर सभी दर्शक विदा हुए।
इस मौके पर निम्नलिखित विदुषियों और विद्वानों को किया गया सम्मानित-
प्रो राम मोहन पाठक   देश-रत्न डा राजेंद्र प्रसाद हिन्दी-सेवी सम्मान
प्रो चक्रधर त्रिपाठी :  आचार्य शिव पूजन सहाय स्मृति सम्मान
डा राज कुमार नाहर : उपेन्द्र महारथी कला-साधना सम्मान
डा शैलेश पण्डित : फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ सम्मान
डा हेमराज मीणा : राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह सम्मान
डा जंग बहादुर पाण्डेय : आचार्य देवेंद्र नाथ शर्मा सम्मान
डा कंचना झा : विदुषी शैलजा बाला स्मृति सम्मान
डा बबीता कुमारी : डा उषा रानी ‘दीन’ स्मृति सम्मान
डा प्रशांत कर्ण : पं जनार्दन प्रसाद झा ‘द्विज’ स्मृति सम्मान
डा कुमारी मनीषा  : डा उर्मिला कॉल स्मृति सम्मान
श्रीमती उषा ओझा : स्नेहलता पारूथी स्मृति समान
डा पंपा सेन विश्वास : विदुषी किशोरी चतुर्वेदी स्मृति सम्मान
प्रो रेखा मिश्र : प्रकाशवती नारायण सम्मान,
प्रो उषा सिन्हा : डा मिथिलेश कुमारी मिश्र साहित्य सम्मान
डा कमल कुमार बोस : फादर कामिल बुल्के स्मृति सम्मान
श्री ब्रजेंद्र कुमार सिन्हा : आचार्य नलिन विलोचन शर्मा सम्मान
श्री अशोक कुमार सिंह : अनूप लाल मंडल सम्मान
डा कुमार विरल : महापंडित राहुल सांकृत्यायन सम्मान
श्री विष्णु देव सिंह : रघुवीर नारायण सम्मान
श्रीमती वीणा पाण्डेय ‘भारती’ : डा सुभद्रा वीरेन्द्र स्मृति सम्मान
श्रीमती निवेदिता श्रीवास्तव गार्गी : अंबालिका देवी सारस्वत-साधना सम्मान

 

 

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