लालू काल:जाने…घोटाला उजागर करने वालों का हश्र

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प्रमोद दत्त.
पटना.सीबीआई व ईडी की हो रही कार्रवाई के बाद राष्ट्रीय स्तर पर बहस चल रही है और आरोप लगाए जा रहे हैं कि विपक्षी नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है। लालू प्रसाद के पुत्र व बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव केन्द्र सरकार व भाजपा पर आक्रामक रूख अपनाए हुए हैं।लेकिन सच्चाई यह है कि घोटालेबाजों के संरक्षक रहे लालू प्रसाद के मुख्यमंत्रित्वकाल में जिस मंत्री ने घोटाला को उजागर किया या उजागर करने की कोशिश की उन्हें प्रताड़ित किया गया।
तत्कालीन कृषि व पशुपालन मंत्री रामजीवन सिंह ने चारा घोटाले पर संज्ञान लेते हुए संबंधित संचिका पर सीबीआई जांच की अनुशंसा कर दी थी।स्वाभाविक रूप से लालू प्रसाद इससे काफी नाराज हुए।इससे पूर्व विधानसभा की निवेदन समिति की सीबीआई जांच की अनुशंसा को यह कहकर टाला गया था कि निगरानी जांच चल रही है।नाराज लालू प्रसाद ने रामजीवन सिंह से पशुपालन विभाग लेकर भोलाराम तुफानी को पशुपालन मंत्री बना दिया। भोला राम तुफानी जैसे सीधे मंत्री से माफिया मनचाहा निर्णय करवाते रहे।जब घोटाला पकड़ा गया तब भोला राम तुफानी को ऐसा झटका लगा कि उन्होंने आत्महत्या की कोशिश की।
इसी प्रकार तत्कालीन राजस्व व भूमि सुधार मंत्री इंदर सिंह नामधारी ने 400 करोड़ के भूमि घोटाला को प्रेस के माध्यम से उजागर किया था।सिर्फ उजागर ही नहीं बल्कि उच्च स्तरीय जांच की पहल भी शुरू कर दी थी।यह लालू प्रसाद को नागवार गुजरा।श्री नामधारी को प्रताड़ित किया गया।बाद में वे लालू प्रसाद का साथ छोड़कर जदयू में चले गए और झारखंड गठन के बाद झारखंड विधान सभा के पहले स्पीकर बने।
लालू प्रसाद मंत्रिमंडल में नवल किशोर शाही शिक्षा राज्यमंत्री थे।उन्होंने तो मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डाल दिया।कॉलेज शिक्षक से विधायक-सांसद बने नेताओं द्वारा दोहरा वेतन (विधान सभा और विश्वविद्यालय) लेने का मामला उठाया गया। इस घोटाले को अंजाम देने वाले कई नेताओं की नाराजगी के कारण अल्पमत की सरकार चला रहे लालू प्रसाद बहुत नाराज हुए और नतीजतन नवल किशोर शाही को मंत्री पद का त्याग करना पड़ा था।

 

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