संवाददाता.पटना.(Buxwaha Abhiyan : save the forest) : भारत के हृदय स्थली में बसे मध्य प्रदेश राज्य के छतरपुर जिले के अंतर्गत बक्सवाहा जंगल है। 7.30 करोड़ की आबादी वाले इस राज्य में 75 लाख लोगों को ऑक्सीजन देने वाला बक्सवाहा जंगल का अस्तित्व आज खतरे में है। यहां पर कुछ हीरो के लिए ढाई लाख जंगल काटा जा रहा है।पूरे भारत देश से कई संस्थाएं इस बक्सवाहा आंदोलन में आ रही हैं जिन्होंने जंगल को कटने से रोकने का बीड़ा उठाया है।
बिहार में पर्यावरण योद्धाओं ने इसके संरक्षण के लिये अभियान पिछले कई महीनों से शुरू कर रखा है। आज देश-विदेश के लाखों लोग प्रतिदिन सोशल साइट्स इलेक्ट्रॉनिक प्रिंट मीडिया जंगल को बचाने की दिशा में एकजुट होकर काम कर रहे हैं। इस अभियान के तहत पर्यावरण संरक्षकों का एक जत्था पीपल नीम तुलसी के संस्थापक डॉ धर्मेंद्र कुमार के नेतृत्व में बक्सवाहा में दिनांक सात, आठ, नौ को जाना सुनिश्चित हुआ है।
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इस अभियान (Buxwaha Abhiyan : save the forest) में ग्लोबल कायस्थ कॉन्फ्रेंस गो ग्रीन अभियान की राष्ट्रीय सह प्रभारी एवं दीदी जी फाउंडेशन की संस्थापिका डॉ नम्रता आनंद, पीपल नीम तुलसी के संस्थापक डॉ धर्मेंद्र कुमार, कानपुर की रितिका गुप्ता, भोपाल मध्य प्रदेश से आनंद पटेल, पंजाब से अनुराग विश्नोई और राजीव गोधरा, दिल्ली से ज्योति डंगवाल, मध्य प्रदेश से शिवानी चौहान और ज्योति सिसोदिया, झारखंड से राजेश कुमार, उत्तर प्रदेश से ओपी चौधरी, इंदौर से काजल इंदौरी, कोलकाता से नीना गुप्ता, उड़ीसा से शुभेंदु राय, राजस्थान से ओमप्रकाश विश्नोई, गुजरात से निलेश गौरव, उत्तराखंड से अल्पना देशपांडे, बिहार पटना से डॉ नम्रता आनंद, बक्सर से उषा मिश्रा,नेपाल से विक्रम यादव, राजेश गौरव बक्सवाहा आंदोलन में भाग ले रहे हैं।
चलो बक्सवाहा अभियान के तहत जैव विविधता को बचाने की मुहिम में राजकीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित समाज सेविका डॉ नम्रता आनंद शिरकत करने जा रही डॉ नम्रता आनंद कहती हैं,इस कोरोना महामारी में ऑक्सीजन के लिए तरस रहे विश्व में ढाई लाख पेड़ों को काटने की तैयारी वास्तव में निंदनीय है। बक्सवाहा जंगल बचाने की जिम्मेदारी हम सभी की है तभी हमारा आने वाला भविष्य नदी, झरना, पहाड़, जंगल विलुप्त हो रहे पशु पक्षी अथवा अन्य प्राकृतिक सौंदर्य को हम देख सकेंगे और प्रकृति में ऑक्सीजन की कमी नहीं होगी। वन्य जीव पशु पक्षी के साथ 22000 वर्ष पुरानी शैल चित्रों का भी अस्तित्व खतरे में है।