संवाददाता.पटना. बाढ़ केवल बिहार की ही नहीं बल्कि देश के कई राज्यों की समस्या है. हर साल जान-माल का भीषण नुकसान करने वाली इस आपदा से समग्र रणनीति बना कर ही निपटा जा सकता है, जिसके लिए केंद्र सरकार पूरी प्रतिबद्धिता के साथ काम कर रही है. इस विभीषका से निपटने के लिए सभी राज्यों से चर्चा व सहयोग काफी आवश्यक है.यह मानना है प्रदेश भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल का.
उन्होंने कहा कि कल चंडीगढ़ में संसद के जल संसाधन समिति के अध्यक्ष के रूप में, लोकसभा की पूरी समिति और केंद्रीय जल आयोग के पदाधिकारियों के साथ हिमाचल प्रदेश और हरियाणा के जल संसाधन और रक्षा मंत्रालय के हिमनद देखने वाले विभाग डीजीआरइ के पदाधिकारियों से इन्हीं विषयों पर विस्तृत चर्चा की. वहीं आज पंजाब सरकार के अधिकारियों के साथ हमारी बात-चीत हुई. कुछ दिनों पहले हम लोगों ने दिल्ली में बिहार, आसाम ,उत्तराखंड और केरल के जल संसाधन मंत्रालयों को गवाह के तौर पर भी बुलाया था. हम बिहार सरकार की रिपोर्ट को भी देख रहे हैं, जिसके बाद हम पूरी रिपोर्ट लोक सभा पटल पर रखेंगे.
उन्होंने कहा कि समिति के सभी सदस्यों और जल शक्ति मंत्रालय के अधिकारियों को लेकर चंडीगढ़ आने का सबसे बड़ा उद्देश्य पहाड़ों पर हिमनद, बादल फटने और अन्य होने वाली गतिविधियों के कारणों और उनसे मैदानी इलाकों में आने वाली विपदा से बचने के उपायों पर राज्य सरकारों के साथ विस्तार से चर्चा करना था, जिससे हर साल आने वाली बाढ़ के रोकथाम के लिए साझा रणनीति बन सके.
डॉ जायसवाल ने कहा कि बाढ़ से सबसे ज्यादा तकलीफ पूर्वोत्तर उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार और आसाम आदि राज्यों को होती है. बिहार में दिक्कत है कि यहां बहने वाली नदियां नेपाल से आती हैं और वहां बांध नहीं होने के कारण हमें बाढ़ प्रकोप झेलना पड़ता है. एक और समस्या यह है कि पहाड़ों पर होने वाली प्रक्रिया और उसके कारण मैदानों में बाढ़ पर अध्ययन और डाटा जल शक्ति मंत्रालय, पर्यावरण मंत्रालय, साइंस एवं टेक्नोलॉजी मंत्रालय , एनडीएमए अर्थात गृह मंत्रालय तथा डीजीआरइ अर्थात रक्षा मंत्रालय द्वारा होता है. इतने भागों में बंटे रहने के कारण सूचनाएं तेजी से जिला मुख्यालय को नहीं मिल पाती हैं. इसलिए हम लोग इस दिशा में काम कर रहे हैं कि कैसे इन पांचों मंत्रालयों का डाटा एक जगह हो और पहाड़ों पर होने वाले किसी भी तरह के परिवर्तन की सूचना शीघ्रता से मैदानी इलाकों पहुंचाई जा सके.
उन्होंने कहा कि आज अंतरिक्ष किसी के हाथ में नहीं है, इसलिए साइंस एवं टेक्नोलॉजी मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले मौसम विभाग के सैटेलाइटों के द्वारा हम नेपाल में भी होने वाले परिवर्तनों को जानकर उस हिसाब से मैदानी इलाकों मे बाढ़ की पूर्व तैयारी कर सकते हैं. 3 दिनों तक चंडीगढ़ में हुई इस लगातार बैठक का मूल उद्देश्य यही है कि हम इसी मॉनसून सत्र में बाढ़ से होने वाली विपदाओं पर पूरी रिपोर्ट लोकसभा में पेश करेंगे जिससे इन बिंदुओं पर कार्यवाही हो