इशान दत्त.पटना.एक ओर चिराग पासवान अपने चाचा पशुपति कुमार पारस को किसी तरह मंत्री नहीं बनने देना चाहते थे तो दूसरी ओर नीतीश कुमार किसी कीमत पर चिराग पासवान को मंत्री बनने से रोकना चाहते थे।इससे पशुपति पारस को लाभ मिल गया। लेकिन जदयू को नुकसान में रहना पड़ा।केन्द्र के सामने नीतीश कुमार की पहली शर्त थी चिराग को मंत्री नहीं बनाना है।जदयू कोटे से तीन-चार मंत्री बनाने की नीतीश कुमार की दूसरी शर्त थी। नीतीश कुमार की पहली शर्त मान ली गई इसलिए दूसरी शर्तों पर समझौता कर लिया गया।और इस प्रकार चिराग तले अंधेरा कायम हो गया।
राजनीतिक गलियारे में एकबार फिर चिराग और उनकी लोजपा के भविष्य को लेकर चर्चा शुरू है।पारस को मंत्री बनाकर भाजपा नेतृत्व ने साफ कर दिया कि उनकी नजर में पारस नेतृत्व वाली लोजपा ही मूल पार्टी है।पारस को मंत्री बनाकर रामविलास पासवान का उतराधिकारी मान लिया गया।
चिराग को अब दो फ्रंट पर लड़ना है.एक पार्टी के अस्तित्व को बचाने के लिए और दूसरा अपना राजनीतिक भविष्य तय करने के लिए।भाजपा नेतृत्व के कदम से साफ हो गया कि नीतीश के दबाव में अब चिराग की इंट्री एनडीए में नहीं होगी।उधर राजद की ओर से चिराग को ऑफर मिलने लगे हैं।चिराग के सामने तत्काल एक ही विकल्प हैं कि अपनी पार्टी को महागठबंधन का हिस्सा बना दें।लेकिन चुनाव आयोग द्वारा पार्टी को मान्यता नहीं मिली और चिराग को नए नाम से पार्टी बनाकर जीरो से शुरूआत करनी पड़ी तब राजद द्वारा भी इतना महत्व नहीं दिया जाएगा।