प्रमोद दत्त.
पटना.देश के काला अध्याय आपातकाल के 46 वर्ष हो गए। 25 जून 1975 की रात्रि में देश में आपातकाल की घोषणा हुई थी।उस दिन लोकनायक जयप्रकाश नारायण गांधी शांति प्रतिष्ठान से गिरफ्तार हो गए।जेपी ने कहा था- विनाश काले विपरीत बुद्धि।
उसी रात कई अन्य विपक्ष के नेता भी गिरफ्तार कर लिए गए।किसी को यह नहीं मालूम था कि क्यों गिरफ्तार हो रहे हैं।जेपी को सोहना के एक अतिथिशाला में नजरबंद किया गया।वहीं पर दूसरे कमरे में मोरारजी देसाई को भी रखा गया था,लेकिन एक दूसरे से वे मिल नहीं सकते थे।सारा देश बेचैन था यह जानने के लिए कि जेपी किस जेल में हैं।
26 जून को सुबह लोगों को मालूम हुआ कि देस में आपातकाल लागू हो गया है और देश के बड़े-बड़े नेता नजरबंद हैं।पटना में भारी प्रतिक्रिया हुई।लोकतंत्र पर बहुत बड़ा आघात पहुंचा।अखबारों पर सेंसर लागू हो गया था।कई अखबार निकले ही नहीं।कई अखबार ने संपादकीय पृष्ठ को सादा छोड़ दिया था।
आपातकाल का विरोध जारी रहा।गिरफ्तारियां होती रही।इसी क्रम में बड़े-बड़े नेताओं के अतिरिक्त छोटे-छोटे नेता भी मैदान में उतर गए।बिहार में लगता ही नहीं था कि आपातकाल है।भय समाप्त हो गया था।कई शहरों में विरोध जुलूस निकाले गए।उन जिलों में आपातकाल धारा 144 से अधिक कुछ नहीं लगता था।इसी दौरान भारी संख्या में गिरफ्तारियां भी हुई।भूमिगत आंदोलन में सबसे अधिक जनसंघ,आरआरएस,विश्व हिन्दू परिषद के लोग थे।
बिहार में आपातकाल के दौरान सभी कार्यक्रम केन्द्र के निर्देश के अनुसार निभाए गए।लोगों को उम्मीद थी कि इंदिरा गांधी आपातकाल को 15 अगस्त,2 अक्तूबर या 14 नवम्बर को समाप्त कर देगी।लेकिन उनकी मंशा तो इससे अलग थी।इसलिए बिहार में आंदोलन तीव्र रहा।1 जुलाई 1975 को पीएम ने 20 सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की तथा 4 जुलाई को आरआरएस एवं कई संगठनों पर प्रतिबंध की घोषणा कर दी।बिहार में संघ कार्यालय,विद्यार्थी परिषद,सरस्वती शिशु मंदिर,वनवासी कल्याण केन्द्र,विश्व हिन्दू परिषद जैसे संगठनों के कार्यालय में छापेमारी करके बड़ी संख्या में गिरफ्तारियां हुई।लेकिन इसके परिणाम सभी कार्यकर्ता तेजी से आंदोलन में लग गए।गिरफ्तारी से बचे कार्यकर्ता रोड पर आ गए।आंदोलन तीव्र होता गया।बिहार के कार्यकर्ता अफसोस करते थे कि दिल्ली दूर है,नहीं तो आपातकाल चुटकी का खेल था।नारा था- देख लिया है देखेंगे,इंदिरा कितना लंबा जेल तुम्हारा।आंदोलनकारी मीसा का नाम बदलकर- मेंटेनेंस ऑफ इंदिरा संजय ऐक्ट, कहने लगे थे।( डॉ रमाकांत पाण्डेय की पुस्तक “जेपी आंदोलन का सच” से साभार)