इशान दत्त.
पटना.हिन्दूओं (सनातन) में एक गोत्र में शादी का प्रचलन नहीं है।शादी की बातचीत की शुरूआत ही गोत्र पूछकर की जाती है।वर्षों से चली आ रही इस परम्परा का कारण वैज्ञानिक है।
एक अध्ययन से पता चला है कि पहले चचेरे,ममेरे,फुफेरे भाइ-बहनों के बीच विवाह से उनके बच्चों में जेनेटिक डिसऑर्डर जैसे रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा, लेबर कंजेनिटल एमोरोसिस, स्टारगार्ड रोग और अशर सिंड्रोम होने का खतरा बढ़ जाता है।
ऐसे मामलों में यदि माता-पिता दोनों एक ही उत्परिवर्तन (विकार) के वाहक हैं, तो संभावना है कि बच्चे को एक विकार से प्रभावित किया जाएगा । और प्रभावित बच्चा सामान्य स्वस्थ जीवन नहीं जी सकता है।रूढ़िवादी जोड़ों से पैदा हुए शिशुओं में जेनेटिक डिसऑर्डर को उनके वंश में पारित होने का खतरा अधिक होता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, प्रत्येक 1,000 जीवित जन्में शिशुओं में कम से कम 10 शिशु कुछ या अन्य जेनेटिक डिसऑर्डर से पीड़ित होते हैं। इनमें से अधिकांश विकार घातक हैं और जीवन भर के लिए विकलांगता का कारण भी बन सकते हैं। इससे भी बुरी बात यह है कि कई लोग इन विकारों से अनभिज्ञ रहते हैं जब तक कि उनका प्रभावित बच्चा नहीं हो जाता।
पश्चिमी दुनिया के अधिकांश देशों में चचेरे भाइयों के बीच विवाह वर्जित है। संयुक्त राज्य अमेरिका में 50 में से 31 राज्यों ने पहले चचेरे भाइयों के बीच शादी की या केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में ही इसकी अनुमति दी। हालाँकि अमेरिका में चचेरे भाई की शादी पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, लेकिन इस प्रथा को सहन किया जाता है और यहाँ तक कि दुनिया के अन्य हिस्सों में भी इसे बढ़ावा दिया जाता है। उदाहरण के लिए, दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व में, 20-50% विवाह पहले चचेरे भाई या करीबी रिश्तेदारों के बीच होते हैं। दुनिया भर में 10% से अधिक लोग दूसरे चचेरे भाई या करीबी से शादी करते हैं, या उनके माता-पिता हैं जो चचेरे भाई हैं।
इसलिए भारत के सनातनी समाज में चचेरे,ममेरे,फुफेरे भाई-बहनों के बीच ही नहीं बल्कि एक गोत्र में भी शादी का प्रचलन नहीं है।मान्यता है कि एक गोत्र का मतलब ही है दोनों के बीच खून का रिश्ता। एक ही माता-पिता से विस्तारित परिवार।वर्षों से चली आ रही इस परम्परा का कारण वैज्ञानिक है जो वर्तमान समय में होने वाले विभिन्न अध्ययनों से खुलासा हो रहा है।