क्या पासवान की गलती दोहरा रहे हैं चिराग ?

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प्रमोद दत्त.

पटना.समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर से पंगा लेने की गलती रामविलास पासवान कर चुके हैं.तब विपक्ष की धूरी लोकदल से उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था.कर्पूरी ठाकुर को प्रतिपक्ष के नेता पद से हटाने की मुहिम पासवान को भारी पड़ी थी.आज नीतीश कुमार के खिलाफ लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान ने मोर्चा खोल रखा है.सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या चिराग भी वही गलती दोहरा रहे हैं.

उन दिनों सत्ता के केन्द्र में कांग्रेस थी.1984 लोकसभा और 1985 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की आंधी में विपक्ष का सूपड़ा साफ हो गया था.नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी प्रमुख विपक्ष लोकदल के कर्पूरी ठाकुर को तो मिली लेकिन विधायक की संख्या ठीक दस प्रतिशत ही थी.दो-तीन विधायक का समर्थन खींच लेने से प्रतिपक्ष की कुर्सी खिसक जाने की स्थिति थी.विधान सभा उपाध्यक्ष के लिए नाम के चयन में कर्पूरी ठाकुर और रामविलास पासवान में मतभेद हो गया.मतभेद इतना गहराया कि पासवान ने अपने समर्थक तीन विधायकों को कर्पूरी ठाकुर के खिलाफ खड़ा कर दिया.नतीजतन कर्पूरी ठाकुर की प्रतिपक्ष के नेता की कुर्सी चली गई.अंतिम समय तक कर्पूरीजी को यह घटना कचोटती रही. कर्पूरी-विरोधी छवि बना चुके पासवान तब न तो सांसद थे और न ही विधायक.1984 के राजीव लहर में हाजीपुर चुनाव हार चुके थे.

उनदिनों रामविलास पासवान भारी संकट में फंसे थे.कांग्रेस में जा नहीं सकते थे और लोकदल का दरवाजा बंद हो गया था.उन्होंने दलित सेना को मजबूत करना शुरू किया.इसी बीच कर्पूरी ठाकुर का निधन हो गया और केन्द्र में वीपी सिह के विद्रोह से राजीव गांधी की राजनीतिक पकड़ कमजोर पड़ने लगी.इसका लाभ जनता दल बनाकर उठाया गया.कर्पूरी ठाकुर की अनुपस्थिति में पासवान के लिए भी रास्ता खुला.हाजीपुर से चुनाव जीते और वीपी सिंह सरकार में मंत्री बने.

जब से रामविलास पासवान ने चिराग पासवान को लोजपा का दायित्व सौंपा है तब से चिराग की महत्वकांक्षा बढ गई है.हालांकि यह माना जाता है कि चिराग कोई भी कदम अपने पिता की सहमति से ही उठा रहे हैं.उनके समर्थक चिराग को भावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट कर रहे हैं.पप्पू यादव जैसे नेता ने तो खुलकर यह मांग कर दी.प्रेक्षकों का मानना है कि बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट का नारा देकर लगातार नीतीश कुमार की आलोचना का मकसद खुद को नीतीश कुमार के बराबर में खड़ा करने की है.एनडीए में रहकर भाजपा से दोस्ती और जदयू से बैर का साफ मतलब है कि समाजवादी नीतीश का विरोध कर समाजवादी लालू प्रसाद के करीब दिखने की कोशिश है.अगर भाजपा केन्द्र में मजबूत नहीं होती और रामविलास पासवान केन्द्र में मंत्री (अभी चार साल बाकी) नहीं होते तो चिराग एनडीए छोड़ महागठबंधन में शामिल होने का निर्णय ले लेते.

लेकिन नीतीश कुमार का विरोध कर चिराग वही गलती कर रहे हैं जो उनके पिता पहले कर चुके हैं.कारण, महागठबंधन में पहले से युवा के नाम पर तेजस्वी सबसे मजबूत दावेदार हैं.लालू प्रसाद भी युवा तेजस्वी के सामने युवा चिराग को खड़ा करना नहीं पसंद करेंगें.नीतीश कुमार से सीधा पंगा लेकर चिराग कुर्मी,अत्यन्त पिछड़ा और गैर पासवान दलितों को नाराज कर लेंगें.जब भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व नीतीश कुमार को नेता मान चुका है तो लगातार नीतीश सरकार की आलोचना कर अपरोक्ष रूप में वे भाजपा को भी कटघरे में खड़ा कर रहे हैं.ऐसी स्थिति में भाजपा में भी अपनी साख बिगाड़ रहे हैं.जगजीवन राम के निधन के बाद रामविलास पासवान दलित नेता की राष्ट्रीय छवि बनाने के लिए बिहार से बाहर बिजनौर और हरिद्वार लोकसभा लड़ने गए और दोनों चुनाव वे हार गए.महत्वकांक्षी होना गलत नहीं है लेकिन इतनी जल्दीबाजी भी चिराग के लिए ठीक नहीं है.प्रेक्षकों का मानना है कि चिराग को अभी अभी लोजपा का नेतृत्व मिला है पहले पार्टी को मजबूत कर अपना राजनीतिक अनुभव बढाना चाहिए.बिहार की समस्याओं का बखूबी अध्ययन करना चाहिए.ऐसा न हो कि उनकी जल्दीबाजी उनके लिए मंहगा साबित हो जाए.

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