इशान दत्त.
भगवान शिव और उनके अवतार को मानने वाले शैव के अनुसार “शरभ अवतार” ब्रह्मांड की रक्षा के लिए भगवान शिव द्वारा लिया गया सबसे शक्तिशाली अवतार था।
भगवान शिव के इस अवतार का उद्देश्य भगवान विष्णु के भयंकर और उग्र नरसिंह अवतार (जो कि आधा मानव और आधा शेर का संयोजन था) को काबू करना था।अथर्व वेद के उपनिषदों के अनुसार, अपने प्रिय भक्त प्रहलाद को बचाने और हिरणकश्यप का वध करने के बाद भगवान नरसिंह नियंत्रण से बाहर हो जाते और विनाश शुरू करना शुरू कर देते ।उन्होंने सिर्फ गर्जना करके ब्रह्मांड में एक भयानक स्थिति पैदा कर दी।
सभी देवता भयभीत हो भगवान ब्रम्हा की शरण में गए। परमपिता ब्रम्हा उन्हें लेकर भगवान विष्णु के पास गए और उनसे प्रार्थना की कि वे अपने अवतार के क्रोध शांत कर लें भगवान विष्णु वापस उसे अपने अंदर समाने का प्रयास करते, मगर नरसिंह बेकाबू हो चुके थे। तब भगवान विष्णु ने सबको भगवान शिव के पास चलने की सलाह दी। उन्होंने कहा चूँकि भगवान शिव उनके आराध्य हैं इसलिए केवल वही नरसिंह के क्रोध को शांत कर सकते हैं। और कोई उपाय न देख कर सभी भगवान शिव के पास पहुंचे। भगवान विष्णु और सभी देवताओं ने भगवान शिव से नरसिंह को रोकने का अनुरोध किया।
भगवान विष्णु उनसे आग्रह करते हैं कि भगवान शिव नरसिंह अवतार को अपने नियंत्रण में लाये जिसके बाद वे उसे वापस से अपने अंदर समा सके । भगवान विष्णु और देवताओं के अनुरोध पर पहले भगवान शिव ने अपने अवतार वीरभद्र को भेजा लेकिन वे नरसिंह से मुक़ाबला न कर सके और हार गए।अपनी हार के बाद वीरभद्र ने महादेव से कहा कि नरसिंह अवतार को हराने के लिए, उन्हें स्वयं ऐसा रूप लेना होगा जो न तो भगवान है और न ही असुर या मानव, न तो पक्षी और न ही जानवर।इसके बाद ही भगवान शिव से शरभ अवतार का उदय हुआ।जिनके आठ हाथ थे और जो सिंह गरुड़ और हाथी का मिला जुला स्वरुप थे और जिसके पास सिंह और हाथी से ज्यादा ताक़त था और एक छलांग में घाटी को पार करने की क्षमता रखते हैं ।भगवान शिव का यह अवतार चपलता, शक्ति तथा बुद्धि का प्रतीक है।
भगवान शिव के शरभ अवतार और भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार के बीच लगभग 18 दिनों तक मुक़ाबला हुआ ।शरभ अवतार नरसिंह को अपने पंजों में फसा के खींच कर पाताल में ले गए। काफी देर तक भगवान शंकर ने भगवान नरसिंह को वैसे हीं अपने पंजों में जकड कर रखा। अपनी सारी शक्तियों और प्रयासों के बाद भी भगवान नरसिंह उनकी पकड़ से छूटने में सफल नहीं हो पाए।
शरभ के हमलों से घायल होकर, नरसिंह को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने शरभ से प्रार्थना की और सुंदर उपदेशों के साथ माफी मांगे जो कि बाद में विजयी भगवान का अष्टस्रोत बन गया।
भगवान शिव ने भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार के क्रूर स्वभाव के ठीक होने की पुष्टि की और इसलिए उन्हें चोट नहीं पहुंचाई।नरसिंह ने अपने शरीर को छोड़ने का फैसला किया लेकिन उसे पहले वह भगवान शिव को उनके मूल रूप में प्रकट होने का आग्रह किया।नरसिंह के इच्छा के अनुसार, भगवान शिव वहां प्रकट हुए और उन्हें बताते हैं कि उन्होंने भगवान विष्णु और अन्य देवताओं के अनुरोध शरभ का रूप धारण किया था।उसके बाद नरसिंह भगवान विष्णु में और शरभ भगवान शिव समा गए।
मूल रुप से यह कथा क्रोध पर विजय पाने की है जिसमें यह सीख मिलती है कि यदि हम किसी बलशाली से युद्ध करने जा रहे हैं तो स्वयं को परिपक्व कर लें। तभी हमारी विजय सुनिश्चित होगी। शरभ अवतार के स्वरूप में विद्यमान मृग फुर्ती तथा शरभ पक्षी बुद्धि तथा शक्ति का परिचायक है।
दक्षिण भारत में शिव के शरभ अवतार की पूजा की जाती है।शिव के इस अवतार से संबंधित श्रीलंका में मुनेश्वरम टेम्पल,तमिलनाडु में ऐराटेसरा मंदिर एवं त्रिभुवनम मंदिर व अन्य हैं। कर्नाटक के राज्य प्रतीक चिन्ह और मैसूर यूनिवर्सिटी के प्रतीक में शिव के शरभ अवतार दर्शाया गया है। माना जाता हैं की शरभ अवतार का पूजा पाठ करने से गुस्से से मुक्ति, भाग्यशाली , नुकसान से बचाव और विवादों में भी जीत मिलती है।