विश्व हीमोफिलिया दिवस (17 अप्रैल) पर विशेष

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इशान दत्त.

हीमोफीलिया आनुवंशिक रोग है जिसमें शरीर के बाहर बहता हुआ रक्त जमता नहीं है। इसके कारण चोट या दुर्घटना में यह जानलेवा साबित होता है क्योंकि रक्त का बहना जल्द ही बंद नहीं होता।  इस रोग का कारण एक रक्त प्रोटीन की कमी होती है, जिसे ‘क्लॉटिंग फैक्टर’ कहा जाता है। इस 13 फैक्टर की विशेषता यह है कि यह बहते हुए रक्त के थक्के जमाकर उसका बहना रोकता है।

हीमोफीलिया सोसाइटी, पटना के सचिव, कुमार शैलेन्द्र ने बताया कि  इस रोग से पीड़ित रोगियों की संख्या बिहार में 1450 है। जिसमे फैकटर 8 ; 1325 एवं फैकटर 9 : 100 एवं 25 अन्य हैं । बिहार के सभी जिलो मे 30 – 50 रोगी है, किंतु पटना मे 250 एवं अररिया, शिवहर, शेखपुरा मे 10 रोगी से कम है।इस रोग में रोगी के शरीर के किसी भाग में जरा सी चोट लग जाने पर बहुत अधिक मात्रा में खून का निकलना आरंभ हो जाता है। इससे रोगी की मृत्यु भी हो सकती है।

यह बीमारी रक्त में थ्राम्बोप्लास्टिन नामक पदार्थ की कमी से होती है। थ्राम्बोप्लास्टिक में खून को शीघ्र थक्का कर देने की क्षमता होती है। खून में इसके न होने से खून का बहना बंद नहीं होता है।इस बीमारी के लक्षण हैं – शरीर में नीले नीले निशानों का बनना, अधिक खून का बहना, तथा जोड़ों  की सूजन आदि। इस रोग में खून के जमने  का समय  बढ़ जाता है।

उपचार-

हीमोफीलिया का सबसे महत्वपूर्ण इलाज फैक्टर है। इसके अंतर्गत उन क्लॉटिंग फैक्टर्स 7, 8 और 9 को  रोगी को दिए जाते हैं।फैक्टर बिहार में मेडिकल कालेज असपताल ( पटना, दरभगा, गया, मुजफफरपुर)एवं न्यू गार्डिनर रोड अस्पताल में मुफ्त में मिलता है।अभी पावापुरी, बेतिया, भागलपुर, मधेपुरा मेडिकल कालेज असपताल मे फैकटर नही मिलता है।

बचाव :  हीमोफीलिया रोगियो को सावधानी से रहना चाहिए। चोट एंव भारी काम से बचना चाहिए। जिनके परिवार मे हीमोफीलिया है  उनके परिवार के महिलाओ को वाहक जाॅच (खून)करा लेना चाहिए। जेनेटिक केउसलिगं एंव खून जांच से हीमोफीलिया के 70% नए रोगियों को रोका जा सकता है।

कुमार शैलेन्द्र ने बताया कि लाक डाउन में भी हीमोफीलिया के मरीज इलाज के लिए असपताल आ सकते है।

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