संवाददता.पटना.पूर्व मध्य रेल के राजभाषा विभाग द्वारा पटना जंक्शन परिसर में स्थित रेल सभागार में शनिवार को युवा कवि दिलीप कुमार की कविताओं का एकल पाठ आयोजित किया गया । कवि दिलीप कुमार ने अपने संग्रह अप डाउन में फंसी जिंदगी से कई कविताओं का पाठ किया जिसमें रेल कर्मियों के जीवन के विविध रंग देखने को मिले।
समय से रेस लगाते देखा/गाते और गुनगुनाते देखा/अपनी मंजिल की खैर नहीं/सबको मंजिल पर पहुंच आते देखा । रेल पटरियों की देखरेख करने वाले ट्रैकमैन के जीवन से जुड़ी कविता को श्रोताओं ने खूब पसंद किया : दहकता हुआ सूरज/समा गया है रेल की पटरियों में/ पैरों में पड़ गए हैं छाले/चौंधिया गई हैं आंखें/फिर भी पटरियों की देखरेख का क्रम जारी है/उसका समर्पण सूरज की तपिश पर भारी है ।
दिलीप कुमार ने बिहार के लोक जीवन और त्योहारों से जुड़ी कई कविताओं का पाठ कर श्रोताओं के दिल में जगह बनाई । सरल शब्द विन्यास के बावजूद दीप का सवाल कविता श्रोताओं को खूब पसंद आई : दीपावली के दिन अपने घर आंगन में दीप जलाया/धरती से आसमान तक अंधेरे को मार भगाया/फिर अपने मन में एक दीप क्यों नहीं जलाते/मन के अंधेरे को दूर क्यों नहीं भगाते ? इसी तर्ज पर उन्होंने रावण दहन से जुड़ी कविता औपचारिकता सुनाई: धू-धू कर जल गया रावण का पुतला/शहर के बीच मैदान में/लोगों ने देखा तमाशा/बजाई तालियां/और लौट गए/ अपने-अपने घर को/मन की बुराई, मन में ही समेटे । महिला श्रोताओं को जलती तो बाती है कविता को पसंद आई : दीया को जीवन मैंने दिया/जली रात भर, जग को रौशन किया/ मैं औरत हूं/मुझे औरत ही बनाती है/वही औरत जो दिन भर खाना पकाती है/और रात में सबसे अंत में खाती है/वही औरत जो अधूरेपन में जीती है/लेकिन पूर्णता में देती है/किसी उपलब्धि का कभी श्रेय नहीं लेती है/सभी औरतों की एक जैसी थाती है/नाम दीए का होता है,पर जलती तो बाती है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता स्टेशन निदेशक डॉ निलेश कुमार ने की । आयोजन के दौरान वरिष्ठ कवयित्री भावना शेखर ने कहा कि दिलीप कुमार की कविताओं में सादगी और सच्चाई है । मुकेश प्रत्यूष ने कहा कि इस्पाती चौखट में रहने के बावजूद उनकी कविताओं में मानवीय संवेदना है । मौके पर ध्रुव कुमार कुमार रजत, प्रणय प्रियंवद, शायर कासिम खुर्शीद, समीर परिमल, हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य वीरेंद्र यादव आदि उपस्थित रहे । कार्यक्रम का संचालन कवि राजकिशोर राजन और धन्यवाद ज्ञापन सिद्धेश्वर ने किया ।