कांग्रेस: यूपी का झटका,बिहार में खटका

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प्रमोद दत्त.

पटना.यूपी में सपा और बसपा द्वारा दिए झटके से कांग्रेस बिहार के मामले में सतर्क है।महागठबंधन में सीटों के तालमेल के मुद्दे पर कांग्रेस स्पष्ट कर चुकी है कि उसकी भूमिका अब बड़े भाई के रूप में होगी। लेकिन राजद कांग्रेस को 8 से 10 सीटों से अधिक देने के मूड में नहीं दिखती है।सम्मानजनक सीटें कांग्रेस को नहीं मिली तो कांग्रेस सभी 40 सीटों पर लड़ने का फैसला ले सकती है।किसी भी परिस्थितियों के लिए कांग्रेस की आंतरिक तैयारियां चल रही है।

राजनीतिक सूत्रों के अनुसार बिहार कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भी महागठबंधन में सम्मानजनक समझौता चाहते हैं।लेकिन यूपी में जिसप्रकार सपा-बसपा ने कांग्रेस के लिए मात्र दो सिटिंग सीटें छोड़कर समझौता कर लिया और तेजस्वी यादव ने लखनऊ जाकर अखिलेश और मायावती से आनन फानन में मुलाकात की,इससे कांग्रेस का चौकन्ना हो जाना स्वाभाविक है।यही कारण है कि 15 जनवरी को सदाकत आश्रम में आयोजित दही-चुड़ा भोज में तेजस्वी को आने में देरी हुई तो कांग्रेसी नेताओं की बेचैनी बढ गई। वैसे,इससे पहले भी लालू प्रसाद ने कांग्रेस के लिए सिर्फ सिटिंग सीट छोड़कर एकतरफा उम्मीदवार घोषणा कर कांग्रेस को धोखा दे चुके हैं।2015 के विधान सभा चुनाव में भी नीतीश कुमार का दबाव नहीं होता तो कांग्रेस को महागठबंधन में 41 सीटें नहीं मिलती।

2014 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए 12 सीटें छोड़ी गई थी जिसमें सुपौल व किशनगंज में जीत मिली थी।कटिहार से एनसीपी के तारिक अनवर जीते थे जो अब कांग्रेस में वापस आ गए हैं।यूपी में सपा-बसपा गठबंधन के बाद कांग्रेस में इस लाईन पर भी मंथन किया जा रहा है कि बिहार में भी यूपी फॉर्मूला दोहराया जा सकता है।लेकिन सूत्रों की माने तो राहुल गांधी ने प्रदेश नेतृत्व को आश्वासन दे रखा है कि दबाव में समझौता नहीं किया जाएगा।पार्टी को मजबूत बनाना और विस्तार देना प्रधानमंत्री पद से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

प्रदेश कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि 2014 चुनाव में कांग्रेस को 12 में दो और राजद को 26 में चार सीटों पर जीत मिली।2014 की तुलना में 2019 में कांग्रेस बेहतर स्थिति में है।कम से कम जदयू-भाजपा के समान 50-50 प्रतिशत पर समझौता होना चाहिए।अगर सम्मानजनक समझौता नहीं हुआ तो कांग्रेस सभी 40 सीटों पर भी चुनाव लड़ सकती है।आंतरिक तौर पर पार्टी इसी रणनीति पर तैयारी कर रही है।

प्रेक्षकों का मानना है कि लालू प्रसाद कांग्रेस से अपनी पुरानी दोस्ती बरकरार रखना चाहते हैं लेकिन कांग्रेस को बिहार में मजबूत भी नहीं होने देना चाहते हैं।क्योंकि कांग्रेस का मजबूत होने का मतलब है क्षेत्रीय पार्टी का कमजोर होना।बिहार में भी जिस दिन कांग्रेस अपने पैर पर खड़ी हो गई मुस्लिम वोट राजद से खिसक कर कांग्रेस में शिफ्ट कर जाएगा।यह बात राहुल गांधी को भी समझा दी गई है इसलिए वे पार्टी के विस्तार व मजबूत जनाधार बनाने को प्राथमिकता दे रहे हैं।

महागठबंधन में राजद और कांग्रेस के अलावा रालोसपा,हम,शरद यादव तथा मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी को हिस्सेदारी चाहिए।महागठबंधन के बढते कुनबे से कांग्रेस में बेचैनी स्वाभाविक है।इसलिए कांग्रेस चाहती है कि सीटों के मुद्दे पर शीघ्र फैसला हो।दूसरी ओर लालू प्रसाद बहुत जल्दीबाजी में नहीं हैं।इसलिए कांग्रेस ने इसके लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया है।

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