संवाददाता.पटना.बिहार संग्रहालय में ‘भारतीय मुद्रा की यात्रा’ प्रदर्शनी समारोह के तहत शनिवार को आयोजित व्याख्यान के दूसरे दिन सिक्कों के विद्वान अमृतेश आनंद ने भारतीय कागजी मुद्रा के सफर पर अपना व्याख्यान दिया। इस दौरान म्यूजियम के डायरेक्टर युसूफ जी भी मौजूद थे।
उन्होंने बताया कि कागजी मुद्रा आपसी विश्वास और समझ का बेहरतीन नमूना है। इसकी शुरूआत सनारा द्वारा पामश्री नोट द्वारा हुई। फिर चेक बांडस आद मुद्रा के आदान – प्रदान का माध्यम बनी कागजी मुद्रा, जिसे नोट कहते हैं। यह बैंको द्वारा जारी किया जाने लगा। कागजी मुद्रा के प्रलन में अधिकता आने पर दुनिया में क्रेडिट और डेविट कार्ड का विकास हुआ, जिससे मुद्रा साथ लेकर चलने की बाध्यता समाप्त हो गई और अब इलेक्ट्रॉनिकल मनी ट्रांसफर होने लगा।
इंदौर के गिरिश भामा ने कहा कि भारतीय मुद्राओं की प्राचीनता अभी भी अनंत गहराईयों में छुपी है, जिनका अनुसंधान लगातार जारी है। बिहार संग्रहालय में आमंत्रित इस प्रदर्शनी में मेरी और मेरी धर्मपत्नी इदबाला भामा द्वारा प्रस्तुत सिक्का अत्यंत दुलर्भ और उत्कृष्ट है।भारत में सिक्कों का इतिहास काफी पुराना है। सातवाहन सिक्के जो चांदी, तांबा, कांसा, सीसा मिश्रित धातुओं द्वारा निर्मित होता है, वो अत्यंत सुंदर और महत्वपूर्ण हैं। गजलक्ष्मी सिक्के विदर्भ, उज्जैन एवं दक्षिण भारत के राजाओं द्वारा प्रचलित किये गए थे। नर्मदा घाटी सभ्यता के करूपरिका गणराज्य के सिक्के कांस्य धातु से निर्मित थे।
मौके पर पटना के संग्रहालीय सहायक डॉ विशि उपाध्यय ने बताया कि बिहार संग्रहालय में भारतीय मुद्रा की स्वर्णिम यात्रा, कौड़ी से क्रेडिट कार्ड तक की प्रदर्शनी और इसमें आयोजित व्याख्यान का आयोजन सफलता पूर्वक हुआ। इसमें पटना के साथ – साथ बाहर से आये लोगों की भी भागीदारी काफी अच्छी रही। यह अपने आप में एक अनोखा आयोजन था। आने वाले दिनों में भी किसी खास थीम पर प्रदर्शनी का आयोजन किया जायेगा। हो सकता है हम अपने ही सिक्कों की प्रदर्शनी आयोजित करें। इस प्रदर्शनी का मकसद था कि अपने सिक्के को प्रति लोगों में जनजागृति बने।