मोहन कुमार.पटना.कांग्रेस से अखिलेश प्रसाद सिंह का राज्य सभा जाना लगभग तय हो गया है.इसके साथ ही बिहार कांग्रेस में नई उर्जा का संचार होगा.अशोक चौधरी और उसके समर्थकों द्वारा कांग्रेस के खिलाफ जो माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है न सिर्फ उसपर अंकुश लगेगा बल्कि बिहार में एनडीए के खिलाफ राजद-कांग्रेस को जनाधार बढाने में इनका भरपूर योगदान मिलेगा.
हालांकि कांग्रेस की नीति सोनिया-राहुल तय करेगें लेकिन बिहार में राजद-कांग्रेस के बीच मजबूत कड़ी की भूमिका अखिलेश सिंह बखूबी निभा सकते हैं.क्योंकि राजद से कांग्रेस में आए श्री सिंह का आज भी लालू प्रसाद से मधुर संबंध हैं.वे पहली बार 2000 में विधायक बने और उसी समय राबडी सरकार में स्वास्थ्य राज्य मंत्री भी बने.राज्य सरकार के मंत्री रहते हुए 2004 में मोतिहारी लोकसभा से राजद के टिकट पर चुनाव लड़े और विजयी हुए.केंद्र की यूपीए-1 सरकार में कृषि राज्य मंत्री बने.
2009 में मोतिहारी से लोकसभा चुनाव हारने के बाद 2010 में कांग्रेस में शामिल हो गए.तब से कांग्रेस में सक्रिय हैं. 2014 के लोकसभा के चुनावों में अखिलेश प्रसाद सिंह मुजफ्फरपुर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े. सम्भवतः अरवल जिले से सम्बन्ध रखने वाले पहले राज्य सभा सदस्य हैं,जो मूल रूप से जिला के निवासी हैं.वैसे तारिक अनवर के पूर्वजों का भी अरवल से सम्बन्ध रहा है.
अखिलेश प्रसाद सिंह के पास राजनीति का खासा अनुभव है.राज्य व केंद्र में मंत्री रहे.विधायक व सांसद(लोकसभा) की सदस्यता के बाद अब राज्यसभा के सदस्य बनेगें.राज्यसभा सदस्य के रूप में 2019 लोकसभा और फिर 2020 विधानसभा चुनाव में वे खुलकर कांग्रेस और सहयोगी दलों के पक्ष में माहौल बनाने का काम करेंगे.क्योंकि 6 वर्षीय सदस्यता(राज्यसभा) होने के कारण स्वाभाविक तौर पर खुद चुनाव नहीं लड़ेंगे.
राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि इसी रणनीति के तहत कांग्रेस आलाकमान ने इन्हें राज्यसभा में भेजने का निर्णय लिया ताकि इनका अधिक से अधिक उपयोग पार्टी के लिए किया जा सके.राज्य सभा चुनाव के बाद प्रदेश कांग्रेस की कमान भी इन्हें सौंपा जा सकता है.