डा.मनोज कुमार.
पेशे से इंजिनियर सुकेश अपनी एक खास बीमारी को बताना नही चाहते।हर वक्त यह डर सताता है कि कही उनको आनेवाला दौरा किसी रिश्तेदार के पास न शुरू हो जाये।यही सब कारणों से वह शादी तक नही कर रहे।वह कई बार परिवार के लोगों की सलाह पर ओझा से भी झाङ-फूंक करा चुके है।वह जब-जब दवा छोङते है तब-तब उनकों मिर्गी के दौरे आने लगते है।इन सब कारणों से वह कई बार अपनी जांब बदल चुके है।
दरअसल,सुकेश को लंबे समय से मिर्गी की समस्या है पर वह लोकलाज से घिर अपना संपूर्ण इलाज से कतरा रहे। एक दोस्त के कहने पर उनकी काउंसलिंग मेरे से पटना मे शुरू हुयी।अब वह अपनी बीमारी के बारे मे पुरी तरह से वाकिफ हो चुके है और हां इसके लिए कोई ताबिज नही बल्कि जीवनशैली मे सुधार लाया है।नियमित साइकोथेरेपी व मनोचिकित्सक के दवा खाने से उनकी यह बीमारी कंट्रोल मे है।
मिर्गी का कारण मस्तिष्क में होनेवाली उथल-पुथलता-
मिर्गी रोग का मुख्य कारण तंत्रिका तंत्र है। इसे अपस्मार व एपिलेप्सी भी कहते हैं। 10 से 20 वर्ष के बच्चे भी इसकी चपेट में आ सकते हैं। दौरा पड़ने पर रोगी 10 मिनट से लेकर 2-3 घंटे तक तक बेहोश रह सकता है। इस रोग का दौरा रोगी को कभी भी पड़ सकता है। आमतौर पर जब रोगी पानी या आग के पास होता है, अधिकांशत: उस समय दौरा पड़ जाता है। इसलिए मिर्गी के रोगी को आग व पानी (नदी या तालाब आदि) से दूर रहने की सलाह दी जाती है। आमतौर पर इस रोग में ऐलोपैथिक (अंग्रेजी) दवा देने वाले जमिनल, ब्रोमाइड आदि औषधियां देते हैं, जिससे मस्तिष्क के स्नायु सुन्न पड़ जाते हैं और रोगी को तत्काल लाभ मिल जाता है लेकिन इस दवा से रोग का समूल नाश नहीं होता। इससे केवल रोग के लक्षण दब जाते हैं।
मिर्गी के लक्षण-
जब मिर्गी का दौरा पड़ता है तो हाथ- पांव ऐंठने लगते हैं, दांत लग जाते हैं और मुंह से झाग निकलने लगता है। मल-मूत्र निकल जाता है।
मिर्गी के कारण-
मिर्गी रोग के अनुवांशिक कारण भी होते हैं। इसके अलावा सिर में चोट लगने, अतिशय शराब का सेवन करने, बहुत ज़्यादा मानसिक या शारीरिक कार्य करने, तेज़ बुखार, मैनिन्जाइटिस, लकवा, ब्रेन ट्यूमर, ज्ञान तंत्रों में ग्लूकोज़ की कमी, मस्तिष्क ऊत्तकों को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलने, मासिक धर्म में अनियमितता, मस्तिष्क कैंसर, पाचन तंत्र में ख़राबी, आंव, कृमि आदि कई कारण हो सकते हैं।
मिर्गी का दौरा पड़ने पर क्या करें और क्या न करें-
-रोगी को खुली हवा में ले जाएं।
-दाएं या बाएं करवट लिटा दें।
-मुंह पर पानी का छींटा मारें।
-दांतों के बीच देख ले की ताकि दांत लगने से जीभ न कटने पाए।
-इस दौरान उसे कुछ भी खिलाने- पिलाने का प्रयास न करें।
-सबसे जरूरी व अहम बात यह हैं कि इस तरह के रोगियों के परिवार के सभी सदस्यों की नियमित काउंसलिंग हो। (लेखक डा.मनोज कुमार, पटना में काउंसलिंग साइकोलाजिस्ट है। इनका संपर्क नं8298929114,9835498113 है।)