रोहतास के महोत्सव में क्यों जुटते हैं देश-विदेश के उरांव?

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मो.तसलीम उल हक.डिहरी ऑन सोन.रोहतासगढ़ पर उरांव जाति की महोत्सव  तीन दिन बाद सम्पन्न हुआ। इस महोत्सव  में देश के आठ राज्य सहित नेपाल देश से भी वनवासी भाग लेने यहां आये थे।

सन 1538 के युद्ध में  इसी बसंत के मौसम में किले के उरांव राजा पराजय हो गए थे। पहले यह किला आदिमुंडा जनो का आवास केंद्र था। यह किला उराव कुडुखा के कई पीढ़ियों का शक्तिकेंद्र रहा है। शेरशाह जब दिल्ली का सुल्तान बना ,तब उरांव के वनवासी को खरवार राजा हरिकृष्णा को युद्ध में पराजय मिली और वह उजड़ गए। उरांव के लोग इसी किले को अपना चारो धाम मानते है।

क्या है आस्था– उराव जाति के लोग अपने पीढ़ी का उद्गम इसी किला में और इसके क्षेत्र को मानते है। अपने जीवन में एक बार यहां आकर अपनों से मिलना ,कदम के पेड़ का दर्शन करनी की इच्छा रहती है। चाहे उराव  जाति के लोग आज कहीं भी हो बसंत के मौसम आते ही  वह यहां आते है और तीन दिन तक महोत्सव में भाग लेते है।

ऐसी मान्यता है कि  उराव जाति के लोग अपने परंपारिक गीत के अनुसार जब पुरुष सरहुल पर्व पर मद्यपान कर  मदहोश थे . तब खरवार राजा लुड़नी  ग्वालन दासी की मदद से आक्रमण कर रोहतासगढ़ पर अपना अधिकार कर लिया था।उराव के राजा रुईदास के पराजय के बाद यह जनजाति छोटानागपुर चले गए। छत्तीसगढ़ समेत भारत के कई प्रांतों में जाकर बस गए। लेकिन अब भी अपने पूर्वजों की धरती की यादें इनके दिलों में बनी हुई है।

कर्म के चार पेड़ है — किले के परिसर में चार कर्म के पेड़ों का दर्शन उसकी पत्तियों को अपने साथ ले जाना चाहते है। इन चारों कदम के  पेड़ को चारों धाम के समान मानते है। हर उराव जनजाति की कर्मभूमि एवं धर्मभूमि यही रही है। इस जाति के लोग अपने जीवन में एक बार यहां जरूर चाहते है।

किले  की  अहम बात – कैमूर पहाड़ी पर करीब 600 मीटर जंगल से पटी है। 1908 में जब अंगेजो ने कैमूर पहाड़ी को चारागाह घोषित किया था। तब से मैदानी क्षेत्र के अन्य लोग अपने पशुओं को चराने पहाड़ी पर कम ले जाने लगे। कभी राजा और जमीन के मालिक रहे वनवासी भूमिहीन हो गए। 1982 में कैमूर पहाड़ी 1350 वर्ग किलोमीटर व उत्तरप्रदेश के 501 किलोमीटर को मिलाकर कैमूर वन्यजीव आश्रय की स्थापना की गई। वन्य आश्रय में कुल  343 गांव है। इनमे कैमूर का 227 गांव और रोहतास  का 116  गांव शामिल है। इन गावों की आबादी 61 हज़ार 325 है।

 

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