गायक व संगीतकार बुलू घोष का निधन

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हिमांशु शेखर.रांची. झारखंड के गीत-संगीत के आसमान  में प्रकाशपुंज नक्षत्र की तरह चमक रहे बुलू घोष नहीं रहे। रांची स्थित अपने घर के छत पर वह चढ़े थे। बताया जाता है कि छत पर ही उन्हे हार्ट एटैक हुआ, तत्काल बगल के एक निजी अस्पताल में उन्हें ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गयी।

वह एक ऐसी शख्सियत थे, जिनकी चर्चा किये बगैर झारखंड-बिहार में गीत-संगीत का पन्ना मुकम्मल नहीं हो सकेगा। एक वक्त था, जब बुलु-पापा भाइयों की जोड़ी के पीछे लोगों की भीड़ उमड़ती थी।  बुलू-पापा आकेस्ट्रा का नाम लोगों की जुबान पर रहता था। हालांकि यह जोड़ी उस समय टूट गयी, जब काफी पहले पापा की मौत हो गयी। आखरी सांस तक बुलु का गीत-संगीत से जुड़ाव रहा। कल की ही तो बात है, जब पत्नी के साथ उन्होंने रांची के कांके स्थित बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में प्रोग्राम दिया था। किसी को नहीं पता था कि बुलु का यह प्रोग्राम उनकी जिंदगी का आखरी प्रोग्राम होगा।

उनकी पत्नी मिताली घोष भी एक पार्श्व गायिका हैं। हिंदी, नागपुरी, बांग्ला, भोजपुरी सहित अन्य भाषाओं में मिताली ने कई गीत गाये हैं। मिताली के छठ गीत तो छठ महापर्व के समय झारखंड-बिहार-यूपी और अन्य राज्यों में घर-घर में बजाये जाते हैं। दरअसल बुलु घोष का पूरा परिवार ही गीत-संगीत के लिए समर्पित रहा। बुलू घोष गायक के साथ-साथ एक बेहतरीन संगीतकार भी थे। उन्होंने झारखंड की कई फिल्मों में संगीत निर्देशन किया। उनके निधन की सूचना मिलते ही गीत-संगीत की दुनिया में शोक की लहर दौड़ गयी। किसी के लिए यह यकीन करना मुश्किल था कि कल तक गीत-संगीत से समा बांधने वाले बुलू दुनिया से रूखसत कर गये।

आज सुबह भी बुलु घोष रिकार्डिंग के काम में लगे हुए थे।  कुत्तों को पालने के बेहद शौकीन बुलु रिकार्डिंग छोड़कर अपने कुत्तों को देखने घर के छत पर गये, जहां उन्हें दिल का दौरा पड़ा। उनका अंतिम संस्कार कल किया जायेगा। उनके परिवार में एक बेटा और एक बेटी है। बेटा बंगलौर में रहता है और बेटी दिल्ली में। कल बेटा के रांची पहुंचने के बाद उनका अंतिम संस्कार किया जायेगा, तब तक उनका शव केसी रॉय मेमोरियल अस्पताल में ही रखा जायेगा।

बुलु के सफर पर एक नजर

सिर्फ 17 साल की उम्र में बुलु घोष ने संगीत की दुनिया में आ गये। 1972 में पढ़ाई के साथ-साथ वह संगीत के क्षेत्र में भी एक्टिव थे। उन्होंने अपने भाई के साथ मिलकर बुलु-पापा आर्केस्ट्रा की स्थापना की थी।  उन्होंने 1983 से म्यूजिक कैसेट की रिकार्डिंग और बिक्री का कारोबार शुरू किया। 1985 में उनके भाई पापा का निधन हो गया। 1997 में उन्होंने अन्य भाषाओं के अलावा नागपुरी गीत-संगीत की दुनिया में कदम रखा।

 

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