मो.तस्लीमुल हक.
हर वर्ष पौष माह में सूर्य से मकर राशि में प्रवेश करने पर मकर संक्रांति मनाया जाता है। संक्रांति साल में 12 बार आता है। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश से ही दिन बड़ा और रात छोटी होने लगती है। जबकि कर्क में सूर्य के प्रवेश से रात बड़ी और दिन छोटा होने लगता है। खगोलीय के अनुसार हर चौथे वर्ष सूर्य और पृथ्वी के बीच 20 से 22 मिनट का अंतर् आता है। जो 60 से 70 वर्ष में एक दिन के बराबर हो जाता है। मुगल काल में इस खगोलीय व्यवस्था के कारण मकर संक्रांति 10 जनवरी को मनाया जाता था। लेकिन 2018 में सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का समय 14 से 15 जनवरी के बीच होनेवाला है। 2012 में भी सूर्य का मकर राशि में प्रवेश 15 जनवरी को हुआ था। खगोलीय गणना के अनुसार आने वाले कुछ वर्षो तक मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनायी जाएगी।
जानिए मकर संक्रांति का महत्व –
- 1. महाभारत के युद्ध में जब भीष्म पितामह घायल होकर मृत्यु शय्या पर थे तो अपनी इक्छा मृत्यु का दिन मकर संक्रांति को चुना था। और आज के ही दिन भीष्म पितामह अपनी आंखे बंद की थी। अर्थात सीधे तौर पर कह ले कि मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।
- 2. आज के ही दिन गंगा जी भागीरथी के पीछे -पीछे चलकर कपिलमुनि के आश्रम से होकर बंगाल के सागर में जा मिली थीं। गंगासागर इसी कारण प्रसिद्ध है और श्रद्धालु इस दिन वहां स्नान करते है।
- 3. आज के दिन भगवान बिष्णु ने असुरों का अंत कर युद्ध की समाप्ति की थी। इसी दिन असूरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था।
- 4. भगवान कृष्ण के जन्म के लिए माँ यशोदा ने आज ही व्रत रखा था।
देश में कई दूसरे नाम से मनाया जाता है मकर संक्रांति-
उत्तर प्रदेश और उत्तरी बिहार में खिचड़ी पर्व के नाम से मकर संक्रांति को मनाया जाता है। तमिलनाडु में पोंगल ,आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में मकर संक्रममा ,गुजरात और राजस्थान में उत्तरायण ,मध्य प्रदेश में सकरात ,हरियाणा में मगही ,पंजाब में लोहड़ी ,असम में बिहू ,और कश्मीर में शिशुर संक्रांत के रूप में मनाया है ,
मकर संक्रांत विदेशों भी प्रचलित है –
नेपाल में माधे संक्रांति ,थाईलैंड में सांगकर्ण ,श्रीलंका में उलावर थिरुनाल ,लाओस में पी मा लाओ ,म्यांमार में थिंज्ञान ,और कम्बोडिया में मोहा संक्रमण के में है।